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क्या आतंकवाद और युद्ध दोनों अमानवीय है? - श्रीनारद मीडिया

क्या आतंकवाद और युद्ध दोनों अमानवीय है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सबसे पहले तो 7 अक्टूबर को हमास के आतंकवादियों द्वारा एक म्यूजिक फेस्टिवल में जिस तरह से निर्दोष इजराइलियों पर हमला किया, 260 से ज्यादा लोगों को मार डाला और दर्जनों को बंधक बना लिया, उसकी पुरजोर तरीके से निंदा करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।

उसने उसी समय इजराइल के नागरिक और सैनिक ठिकानों पर बम भी बरसाए, जिनमें हजारों लोग हताहत हुए। हमास एक घोषित आतंकी संगठन है, जो इजराइल के नियंत्रण वाली गाजापट्टी से संचालित होता है और उसकी वहशियत और क्रूरता जघन्य है।

प्रसिद्ध क्वांटम साइंटिस्ट डेविड बोम ने एक बार बड़े नाटकीय तरीके से बताया था कि कैसे एक ही वास्तविकता अलग कोण से देखने पर भिन्न दिखाई दे सकती है। उन्होंने एक आयताकार फिश-टैंक का उदाहरण दिया, जिसे दो टीवी कैमरा एक निश्चित कोण से देखते थे और एक ही टैंक होने के बावजूद कैमरे की तस्वीरें अलग सच्चाइयां बयां करती थीं। इजराइल-हमास के बीच चल रहे मौजूदा टकराव को समझने के लिए यह उदाहरण उपयोगी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इस पर भिन्न-भिन्न दृष्टियां प्रस्तुत की जा रही हैं।

भारत ने इस आतंकी हमले की निंदा करके ठीक ही किया। हम दुनिया में होने वाले हर प्रकार के आतंकवाद के विरोधी हैं। इजराइल से हमारे नजदीकी रणनीतिक सम्बंध भी हैं और वह रक्षा और खुफिया क्षेत्रों में हमारा सहयोगी है। हर देश अपने हितों से संचालित होता है और जब प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के प्रति अपना पूर्ण समर्थन जताया तो भारत भी इसी नीति का पालन कर रहा था। लेकिन अगर डेविड बोम के दूसरे कैमरे से इसी चित्र को देखें तो एक भिन्न दृश्य उभरकर सामने आता है।

हिटलर की जर्मनी में यहूदियों को नरसंहार का सामना करना पड़ा था और यूरोप के दूसरे देशों में भी यहूदी-विरोध चरम पर था। लेकिन उनके ‘प्रॉमिस्ड होमलैंड’ की स्थापना यूरोप में नहीं की गई। इसके बजाय यूएन के द्वारा अपनाए गए ब्रिटेन पार्टिशन रिज़ोल्यूशन के तहत इजराइल का निर्माण किया गया और इसके लिए ऐतिहासिक फिलिस्तीन की भूमि का बड़े बेढंगे तरीके से विभाजन किया गया।

1967 के छह-दिवसीय युद्ध में इजराइल ने फिलिस्तीन की बची-खुची धरती पर भी कब्जा कर लिया और वेस्ट बैंक (जिसमें पूर्वी यरूशलम शामिल था) और गाजापट्टी पर आधिपत्य जमा लिया। युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने अपने रिज़ोल्यूशन 242 में ‘न्यायोचित और दीर्घकालीन शांति’ का आग्रह किया।

रिज़ोल्यूशन के मुताबिक इसे सुनिश्चित करने का पहला कदम यह था कि ‘इजराइली सशस्त्र-बलों द्वारा जिन क्षेत्रों पर कब्जा किया गया था, उन्हें वे खाली कर दें।’ इजराइल ने इस आग्रह का पूरी तरह से पालन नहीं किया। इसके उलट, उसने आक्रामक तरीके से अपने ऑकुपेशन वाले इलाके में अपनी बस्तियां बढ़ा दीं।

वर्तमान में इजराइल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम की 250 बस्तियों में कोई साढ़े सात लाख लोग रहते हैं। इजराइल ने वर्ष 2008, 2012, 2014 और 2021 में गाजा पर बमबारियां भी की हैं, जिसमें हजारों फिलिस्तीनियों की मृत्यु हुई है। इनमें अधिकतर सिविलियंस थे। वर्तमान में 60 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी पड़ोसी मुल्कों लेबनान, सीरिया, जोर्डन और मिस्र के रिफ्यूजी कैम्प में रहते हैं।

इतिहास के कथानक सीधी रेखाओं वाले नहीं होते। वे हमेशा ही न्यायपूर्ण भी नहीं होते। एक राज्यसत्ता के रूप में इजराइल को अपने अस्तित्व की रक्षा करने का अधिकार है। लेकिन फिलिस्तीनियों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। इजराइल को अमेरिका का सहयोग प्राप्त है, जहां 80 लाख प्रभावशाली यहूदी रहते हैं।

अमेरिकी प्रशासन इतनी ताकतवर लॉबी को अपने से दूर नहीं कर सकता। हमास के प्रतिकार में इजराइल द्वारा गाजा पर किए जा रहे जवाबी हमले में पहले ही हजारों की जानें जा चुकी हैं, लेकिन यूएन या विश्व-समुदाय ने तुरंत संघर्ष विराम की मांग नहीं की है। हमास का आतंकवाद चाहे जितना निंदनीय हो, इजराइल का जवाबी हमला भी अमानवीय है। निर्दोष नागरिकों की जानें जा रही हैं। प्राथमिकता लड़ाई पर रोक लगाने की होनी चाहिए।

वर्तमान में दुनिया में दो अधूरे प्रोजेक्ट्स स्थायी शांति की राह में रोड़ा बने हैं। पहला है शीतयुद्ध के समापन के बाद यूरोप के सुरक्षा-तंत्र का अपूर्ण ढांचा, जिसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध को जन्म दिया। दूसरा है इजराइल और फिलिस्तीन का मामला। भारत ने इस दूसरे वाले मामले पर अपनी राय स्पष्ट जाहिर की है, लेकिन शायद ‘न्यायोचित और दीर्घकालीन शांति’ की जरूरत पर बल देने की गुंजाइश अभी बाकी है।

भारत ने इजराइल और फिलिस्तीन के मामले पर अपनी राय स्पष्ट जाहिर की है, लेकिन शायद ‘न्यायोचित और दीर्घकालीन शांति’ की जरूरत पर बल देने की गुंजाइश अभी बाकी है। लड़ाई पर रोक लगाना प्राथमिकता होनी चाहिए।

 

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