क्या बिहार में जमीन बंटवारे को लेकर नियम तय है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अब स्वघोषित वंशावली के साथ भी लोग अपनी जमीन का आपसी बंटवारा कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें वंशावली के साथ बंटवारा संबंधी आवेदन संबंधित अंचल अधिकारी को देना होगा। जमीन निबंधन नियमावली (Land Registration Rules) में बदलाव के बाद विभागीय नियम में यह बदलाव किया गया है तथा स्वघोषित वंशावली के साथ दिए जाने वाले बंटावारा आवेदन के आधार पर भी अंचल अधिकारी को ऑनलाइन दाखिल-खारिज करने का निर्देश दिया है।

पहले ये था दाखिल-खारिज का प्रावधान

इससे पूर्व फिफो के तहत वंशावली के साथ बंटवारा आवेदन पर दाखिल-खारिज करने का प्रविधान था। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सचिव जय सिंह ने पूर्व से सृजित जमाबंदी में छूटे हुए खाता, खसरा, रकबा एवं लगान को अपडेट करने व पारिवारिक बंटवारा हेतु वंशावली के लिए शिविर आयोजित करने का निर्देश दिया है।

इस मुद्दे को लेकर सचिव ने जिले के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक करके भी निर्देश दिया। उन्होंने सप्ताह में कम से कम तीन दिन यथा-मंगलवार, बुधवार एवं गुरुवार को हलका मुख्यालय में इसका प्रचार-प्रसार कर शिविर आयोजित करने को कहा है।

आयोजित होंगे शिविर

उन्होंने आवश्यकता अनुसार शिविर की तिथि व दिवस को विस्तारित करने की बात भी कही। उन्होंने डीएम को पंचायत भवन, ग्राम कचहरी एवं सामुदायिक भवन आदि को हलका मुख्यालय के रूप में चिह्नित करने तथा उक्त चिह्नित स्थल पर शिविर का आयोजन करने का निर्देश दिया।

शिविर के पर्यवेक्षण हेतु अधिकारियों को प्रतिनियुक्त करने, शिविर में पूर्व से सृजित जमाबंदी में छूटे हुए खाता, खेसरा, रकवा एवं लगान को अद्यतन करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य के साथ परिमार्जन के लिए आवेदन प्राप्त करने की बात भी कही है।

जमीन जमाबंदी की नई नियमावली से बढ़ी परेशानी

बताते चलें कि जमीन निबंधन के वर्तमान नियमावली के तहत जिनके नाम जमीन की जमाबंदी है, उन्हें ही जमीन की बिक्री व दान करने का अधिकार दिया गया है। इस नई नियमावली के कारण ऐसे लोगों की परेशानी बढ़ गई है, जिनके जमीन की जमाबंदी आज भी पूर्वजों के नाम है। इस नई नियमावली के बाद राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग बिहार ने लोगों की परेशानियों को कम करने की कवायद शुरू की है।

मेरी जमीन किसी और ने बेची दी। किसी ने अपने भाई के हिस्से की जमीन बेच दी, तो किसी ने बहन के। किसी ने चाचा की जमीन ही बेच दी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब जमीन केवल वही आदमी बेच सकेगा, जिसके नाम पर जमाबंदी है। रजिस्ट्री का अधिकार केवल उसी को होगा।

पुश्तैनी जमीन बेचने के लिए जरूरी होगा कि उसका बंटवारा कानून के अनुसार हो जाए और जमाबंदी खुद के नाम से कायम हो जाए। यानी की पुश्तैनी जमीन बेचने के लिए बंटवारे का कागजात पहले तैयार करना होगा। इसके लिए बिहार सरकार ने सभी निबंधन और अवर निबंधन कार्यालयों को चिट्ठी भेज दी है। इसका असर भी शुरू हो गया है।

गुरुवार को बक्सर और डुमरांव निबंधन कार्यालय में गिने-चुने डीड की ही रजिस्ट्री हो सकी। इस आदेश का असर लंबा होने की संभावना है। सरकार के राजस्व पर भी इसका असर पड़ेगा, लेकिन जमीन विवाद के मामले अब काफी हद तक घट जाएंगे। साथ ही भू-माफिया के धंधे पर गहरी चोट पड़ेगी।

उत्पाद, मद्य निषेध एवं निबंधन विभाग द्वारा बुधवार को हाई कोर्ट पटना से पारित आदेश को लागू कराने के लिए बक्सर के निबंधन पदाधिकारी और डुमरांव के अवर निबंधन पदाधिकारी को पत्र जारी कर आदेश दिया गया है। अब रजिस्ट्री के वक्त जमीन की बिक्री करने वाले व्यक्ति के नाम से जमाबंदी होने का प्रमाण देना होगा। विक्रेता के नाम पर जमाबंदी नहीं होने की स्थिति में जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो पाएगी।

यह नियम 10 अक्टूबर 2019 को ही बिहार सरकार ने जमाबंदी नियमावली के जरिए लागू किया था, लेकिन मामला हाई कोर्ट में चला गया और वहां से तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगा दी गई थी। गत सप्ताह हाई कोर्ट द्वारा बिहार सरकार द्वारा 2019 में लागू जमाबंदी नियमावली को वैध ठहराते हुए आदेश जारी किया गया था। इसे अब निबंधन कार्यालयों में लागू कर दिया गया है। गुरुवार को जिले के दोनों निबंधन कार्यालयों में हीं जमाबंदी के आधार पर ही चुनिंदा दस्तावेज की ही रजिस्ट्री हो पाई।

कम हो जाएंगे भूमि विवाद के मामले

जमाबंदी नियमावली के लागू होने जाने से अब जमीन विवाद स्वतः कम होने लगेंगे। इसका असर कुछ दिनों में साफ देखने को मिलेगा। इसके पहले पिता, बाबा, दादा के नाम पर दर्ज जमाबंदी की जमीन में अपना हिस्सा बता कर बेरोक-टोक जमीन की बिक्री कर दी जाती थी।

मारपीट और हत्या जैसे अपराध की भी बड़ी वजह यह था। भू माफिया की अब कमर टूट जाएगी जमीन रजिस्ट्री में नए जमाबंदी नियमावली लागू हो जाने के बाद भू माफिया की कमर अब टूट जाएगी। पहले भू माफिया की शहर या बाजार के जिस कीमती भूखंड पर नजर लग जाती थी, उस परिवार के किसी एक सदस्य को लालच देकर अपना कब्जा जमा लेते थे। असली मालिक कोर्ट-कचहरी में फंसकर रह जाता था या अपराधियों के डर से अपना हक छोड़ देता था।

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