क्या नीतीश की राह में रोड़े नहीं, बड़े-बड़े 9 पत्थर हैं ?

क्या नीतीश की राह में रोड़े नहीं, बड़े-बड़े 9 पत्थर हैं ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार के मिशन 2024 का तीन दिन का पहला दिल्ली दौरा खत्म हो रहा है। इस दौरान वो भाजपा विरोधी कई दलों के नेताओं से मिले जिनमें कांग्रेस के राहुल गांधी, जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी, सीपीएम के सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी राजा, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, इंडियन नेशनल लोकदल के ओम प्रकाश चौटाला, आरजेडी के शरद यादव, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव, सीपीआई एमएल के दीपांकर भट्टाचार्य और एनसीपी के शरद पवार शामिल हैं।

नीतीश का मिशन 2024 उनके और उनकी पार्टी के शब्दों में लोकसभा चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का प्रयास है और उनके समर्थकों के शब्दों में पीएम पद की उनकी रेस का आगाज है। मिशन का दो बड़ा लक्ष्य तो यही दिख रहा है। विपक्षी एकता और मोदी के सामने टक्कर का प्रधानमंत्री कैंडिडेट। जेडीयू के पटना दफ्तर पर जो पोस्टर लगे हैं वो भी तो कह ही रहे हैं कि प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा और आगाज हुआ, बदलाव होगा।

नपा-तुला बोल रहे हैं नीतीश कुमार, पार्टी कह रही है- पीएम मैटेरियल हैं, कैंडिडेट नहीं

बिना लाग लपेट के यह कहा जा सकता है कि नीतीश नाप-तौल कर चल रहे हैं इसलिए पार्टी कह रही है कि उनको विपक्षी एकता के लिए अधिकृत किया है, वो पीएम पद के योग्य तो हैं लेकिन कैंडिडेट नहीं हैं। नीतीश चाहते हैं कि अभी विपक्षी एकता पर ही फोकस रखा जाए, माहौल समझा जाए, भाजपा विरोधी गठबंधन का दायरा दूसरे राज्यों तक बढ़ाया जाए, और जब सब आ ज्यादातर आ जाएं तो फिर अगली बात यानी पीएम कैंडिडेट की बात छेड़ी जाए।

लेकिन नीतीश के घोषित और अघोषित दोनों मिशन की बात करें तो उनके सामने छोटे-मोटे राजनीतिक रोड़े नहीं, बड़े-बड़े पत्थर हैं। विपक्षी एकता और व्यापक राष्ट्रीय गठबंधन के रास्ते में जहां 9 पत्थर हैं तो पीएम पद की रेस में 6 बड़ी चट्टानें भी हैं। अब एक-एक कर समझते हैं कि कौन सा नेता और कौन सी पार्टी नीतीश के इस मिशन में उनका साथ दे सकती है और कौन से नेता और पार्टी अड़ंगा लगा सकते हैं।

बीजेपी विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की कोशिश में नीतीश को मिल सकता है इनका साथ

कांग्रेस साथ रहे तो नीतीश के बीजेपी विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की कोशिश में उनको झारखंड से हेमंत सोरेन की जेएमएम, तमिलनाडु से एमके स्टालिन की डीएमके, बिहार में लालू यादव की आरजेडी, कर्नाटक से एचडी देवगौड़ा व एचडी कुमारस्वामी की जेडीएस, महाराष्ट्र से उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी का साथ मिल सकता है। इनमें ज्यादातर दल इस समय कांग्रेस के साथ हैं भी।

नीतीश के इस गठबंधन में कांग्रेस नहीं आती है और वो यूपीए को ही मजबूत करना चाहती है तो हेमंत, स्टालिन, देवगौड़ा, ठाकरे और पवार ना चाहते हुए भी नीतीश को दुखी कर सकते हैं। ऐसे में नीतीश पर भी यूपीए में आने का दबाव बन सकता है क्योंकि बिहार में उनके पार्टनर लालू यादव कांग्रेस को छोड़ नहीं सकते।

नीतीश की राह के रोड़े नहीं पत्थर, विपक्षी गठबंधन की असली परीक्षा लेंगे ये 9 नेता

अब बात उन 9 नेताओं और पार्टियों की जो इस वक्त ना बीजेपी के साथ हैं और ना कांग्रेस के, जो नीतीश के विपक्षी गठबंधन की परीक्षा में सबसे बड़े सवाल हैं। इन सबकी पसंद एक ऐसा गठबंधन हो सकता है जिसमें कांग्रेस ना हो। लेकिन तब राष्ट्रीय स्तर पर तीन गठबंधन होंगे और फिर मुकाबला भी त्रिकोणीय हो सकता है जो मौजूदा राजनीति में बीजेपी के पक्ष में जाती है। नीतीश चाहते हैं कि 2024 का चुनाव दोतरफा चुनाव हो जिसमें एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ बाकी दल हों।

शुरुआत यूपी से जहां अखिलेश यादव की सपा, जयंत चौधरी की आरएलडी और मायावती की बसपा विपक्ष में प्रभावी वोट बैंक वाली पार्टियां हैं। मुश्किल ये है कि मायावती और अखिलेश साथ आते नहीं दिख रहे। इस समय की राजनीति के हिसाब से जयंत चौधरी वहीं जाएंगे जहां अखिलेश होंगे। नीतीश के लिए यहां अखिलेश को साधना ज्यादा आसान है लेकिन फिर कांग्रेस का क्या होगा। यूपी में विपक्षी गठबंधन की सफलता इस बात से तय होगी कि अखिलेश यादव कांग्रेस को साथ लेना चाहते हैं या नहीं और कांग्रेस उतनी सीटों को ही सम्मानजनक मानती है या नहीं जो समाजवादी पार्टी उसे लड़ने के लिए दे।

ममता बनर्जी – नवीन पटनायक, बिना गठबंधन के सफल हैं दोनों नेता

यूपी के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी का साथ नीतीश के लिए अग्निपरीक्षा साबित होगी। ममता का रवैया बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ लड़ने का है। विधानसभा चुनाव में लेफ्ट-कांग्रेस का गठबंधन उनके खिलाफ था फिर भी बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई जबकि लेफ्ट से कांग्रेस तक जीरो पर आउट हो गए। ममता को बीजेपी से लड़ना तो है लेकिन इसमें उनको कांग्रेस या लेफ्ट का साथ चाहिए या नहीं, इस सवाल से नीतीश को बंगाल में गठबंधन का जवाब मिलेगा।

नवीन पटनायक की बीजेडी को लड़ना तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों से है लेकिन वो भी बंगाल में ममता की टीएमसी की तरह ओडिशा में किसी दूसरे की मोहताज नहीं दिखती। पटनायक भी न्यूट्रल राजनीति कर रहे हैं। ना बीजेपी के साथ, ना कांग्रेस के साथ। ऐसे में उनको कांग्रेस के साथ गठबंधन में लाना नीतीश के लिए बड़ी चुनौती होगी।

केसीआर, केजरीवाल, केरल में लेफ्ट: कांग्रेस से लड़ें या गठबंधन करें ?

बीजेपी और कांग्रेस दोनों के विरोध की राजनीति कर रहे के चंद्रशेखर राव को तेलंगाना में और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को साथ लाना भी बहुत मुश्किल है। केसीआर तेलंगाना में ऐसा गठबंधन पसंद करेंगे जिसमें कांग्रेस ना हो। केसीआर नीतीश से मिलने पटना भी गए थे और खुद बीजेपी विरोधी गठबंधन के एक पैरोकार रहे हैं। इसलिए केसीआर को मनाना नीतीश के लिए थोड़ा आसान हो सकता है।

लेकिन केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस को साथ लेकर लड़ना नहीं चाहेंगे जबकि वो एक बार कांग्रेस के समर्थन से 49 दिन की सरकार चला चुके हैं। दिल्ली में बिहारी वोटर काफी हैं। नीतीश का साथ लोकसभा में हर बार हार रही आम आदमी पार्टी को दिल्ली में कुछ सीट दे सकती है। केजरीवाल की आप पंजाब में भी कांग्रेस के अलावा अकाली दल से लड़ रही है। नीतीश से केजरीवाल के रिश्ते अच्छे हैं लेकिन क्या यह उनको गठबंधन में लाने के लिए काफी होगा, ये आने वाला वक्त ही बताएगा।

नीतीश ने सीताराम येचुरी और डी राजा से मुलाकात की और इन दोनों की पार्टियां बिहार में नीतीश सरकार को समर्थन दे रहे महागठबंधन में भी है। लेकिन केरल में सीपीएम की अगुवाई वाली लेफ्ट सरकार कांग्रेस से लड़ती है। चुनाव बाद गठबंधन में तो लेफ्ट कांग्रेस साथ आ जाते हैं लेकिन चुनाव से पहले सीपीएम का केरल गुट ऐसा होने देगा, इसमें संदेह है। सीपीएम के अंदर की राजनीति में इस समय पिनराई विजयन के नेतृत्व में केरल गुट बहुत मजबूत है जो कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले तालमेल का जमकर विरोध करेगा।

जगनमोहन रेड्डी या चंद्रबाबू नायडू, नीतीश को चाहिए किसका साथ

और आखिरी पत्थर, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस। जगन मोहन को लेकर बीजेपी और बीजेपी को लेकर जगन मोहन नरम दिखते हैं। जगन का केसीआर से संबंध बेहतर है लेकिन पहले खुद केसीआर तो गठबंधन में आने को तैयार हों तो जगन को राजी करें। संभावना तो ये भी है कि केसीआर अगर नीतीश के समझाने पर राष्ट्रीय विपक्षी गठबंधन में आ भी जाएं तो भी जगन ना आएं। ऐसे में आंध्र में नीतीश को चंद्रबाबू नायडू का सहारा मिल सकता है। नायडू की पार्टी कमजोर हो चुकी है और कांग्रेस जीरो पर है।

नीतीश के पीएम कैंडिडेट बनने की राह में खड़े हैं ये 6 विपक्षी नेता

देश में इस समय 2024 के चुनाव के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुले तौर पर दो ही नाम हैं। एक राहुल गांधी और दूसरा अरविंद केजरीवाल। राहुल गांधी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस की पसंद हैं तो स्वाभाविक रूप से पीएम कैंडिडेट हैं। अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने उनके लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है। नीतीश की पार्टी उनको पीएम मैटेरियल बता रही है लेकिन कह रही है कि वो कैंडिडेट नहीं हैं।

राहुल और केजरीवाल के अलावा बंगाल से ममता बनर्जी, महाराष्ट्र से शरद पवार, उत्तर प्रदेश से अखिलेश यादव और मायावती भी गठबंधन में पीएम के संभावित कैंडिडेट हो सकते हैं। वैसे मायावती का मामला कमजोर हो चला है। ना पार्टी में दमखम दिखता है और ना नेता में तेवर। नीतीश को विपक्षी राष्ट्रीय गठबंधन बनाने में कामयाबी मिल भी जाती है तो पीएम कैंडिडेट बनने या चुनने के लिए उनको राहुल, केजरीवाल, ममता, अखिलेश और पवार को एक साथ हैंडल करना होगा।

ये सब सिर्फ एक ही सूरत में साथ आ सकते हैं जब सबका एकमात्र ध्येय ये हो जाए कि पहले किसी भी तरह से बीजेपी को हटाओ, बाकी बातें बाद में हो जाएगी। लेकिन विपक्ष में पार्टियों के अंतर्विरोध काफी हैं। फिर हर बड़े राज्य में एक नेता पीएम पद का दावेदार है। बीजेपी को भी लगता है कि एकजुट होने की चाहत भले सबकी हो लेकिन असल में ये गठबंधन होने वाला है नहीं।

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