अवसाद से जूझते सेना के जवान.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए गृह मंत्रालय ने हाल में सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में एक कार्यबल (टास्क फोर्स) का गठन किया है। यह सैनिकों द्वारा पिछले दिनों आत्महत्या के किए गए प्रयास, साथियों पर जानलेवा हमले, गुस्सा, बीमारी, शराब या नशीली दवाओं के दुरुपयोग, आक्रामक प्रवृत्ति और तनावपूर्ण जीवन की घटनाओं की पड़ताल करेगा।
इसका मकसद जवानों में व्याप्त तनाव, क्रोध और अवसाद को कम करके उन्हें मौत के मुहाने पर जाने से पहले रोकना है। इससे पहले सीआरपीएफ द्वारा ‘चौपाल पर चर्चा’ और ‘संस्कारशाला’ तथा रक्षा मनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान द्वारा ‘मिलाप’ और ‘सहयोग’ जैसे कार्यक्रम भी इसी उद्देश्य से चलाए गए थे।
आंकड़े देखकर लगता है कि देश की रक्षा का बीड़ा उठाने वाले सेना के जवान गहरे अवसाद की समस्या से जूझ रहे हैं। सेवारत सैनिकों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। हर साल सेना के लगभग सौ जवान विभिन्न कारणों से आत्महत्या करते हैं। मार्च 2020 में रक्षा राज्य मंत्री द्वारा लोकसभा में बताए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में 95, 2018 में 107 और 2017 में 103 जवानों ने आत्महत्या की। 2011 से 2018 के बीच 891 तथा 2014 से 2017 के बीच तीन वर्षों में प्रत्येक तीन दिन में सेना के एक जवान ने आत्महत्या कर ली।
गत 19 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में सीआरपीएफ के एक हेड कांस्टेबल ने अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मार ली। उसी दिन पंजाब में बीएसएफ के एक जवान ने भी ऐसा ही किया। वहीं 30 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के रामबन में सेना के एक जवान ने आत्महत्या कर ली। चिंताजनक यह भी है कि जवानों का गुस्सा और अवसाद उनके साथियों के जीवन के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। 2018 से 2021 के बीच जवानों द्वारा अपने साथियों पर 13 बार फायरिंग की घटनाओं को अंजाम दिया गया जिसमें 40 जवानों की मौत हो गई।
गृह मंत्रालय ने जवानों में अवसाद और आत्महत्याओं के पीछे पारिवारिक एवं जमीन संबंधी विवाद, तनाव, बीमारी और वित्तीय समस्याएं बताई हैं। हालांकि यह हतप्रभ करने वाला है कि विषम परिस्थितियों में देश का मस्तक ऊंचा रखने के लिए प्रतिबद्धता दिखाने वाले जांबाज सैनिक अपनी ही जान के दुश्मन बनते जा रहे हैं। बहादुरी और शौर्य के साथ हर कठिनाइ पर विजय पाने वाले ऐसे कई सैनिकों ने खुद से अपनी इहलीला समाप्त कर ली। ऐसे में चिंता होनी ही चाहिए कि आखिर कौन से कारक हमारे जवानों को आत्महत्या करने को मजबूर कर रहे हैं? साथ ही उनके समाधान पर भी चर्चा करनी होगी, ताकि मानसिक अवसाद से जूझ रहे जवानों को सही मार्गदर्शन मिल सके।
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