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राजेन्द्र अवस्थी को जैसा मैंने पाया:- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'. - श्रीनारद मीडिया

राजेन्द्र अवस्थी को जैसा मैंने पाया:- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’.

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राजेन्द्र अवस्थी जी का आज जन्मदिन है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजेन्द्र अवस्थी (जन्म: 25 जनवरी सन् 1930-मृत्यु: 30 दिसम्बर 2009) जी कादम्बिनी और साप्ताहिक हिंदुस्तान के सम्पादक थे। मैं इस संस्मरणात्मक लेख में चर्चा कर रहा हूँ कि राजेन्द्र अवस्थी जी को जैसा मैंने पाया।
आठवें नौवें दशक की साहित्यिक – सामाजिक पत्रकारिता में वे तीन बड़े सम्पादकों में से एक थे। वे तीन सम्पादक हैं राजेंद्र अवस्थी, धर्मवीर भारती और राजेन्द्र यादव।

मध्य प्रदेश के जबलपुर में 25 जवनरी 1930 को पैदा हुए राजेंद्र अवस्थी ने बुधवार 30 दिसंबर 2009 वर्ष को उनकी मृत्यु हुई थी।
हिन्दी की कादम्बिनी और साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी चर्चित पत्रिकाओं के संपादक जो पत्रकारिता के एक सितारे थे।

ऐसे राजेंद्र अवस्थी जी के सानिध्य में मुझे दिल्ली और दिल्ली की चकाचौंध से लेकर साहित्य/पत्रकार के कार्यक्रमों में सम्मिलित होने का अवसर मिला।

वह एक जाने-माने सम्पादक के रूप में बहुत प्रसिद्ध थे। साहित्यिक गलियारों, राजनीतिक गलियारों से लेकर दिल्ली की शाम अनेक बड़े होटलों से लेकर काँफ़्रेस सेंटर और दिल्ली के विभिन्न दूतावासों की पार्टियों में साथ-साथ जो सीखने-समझने और सम्मिलित होने का महीनों अवसर और सानिध्य मिला वह मुझे हमेशा याद रहेगा।

उनका ह्रदय का आपरेशन हुआ था। उन्होंने 30 दिसम्बर 2009 को दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था।

वह अपने पीछे तीन बेटे और दो पुत्रियाँ छोड़ गए हैं। उनका बड़ा बेटा मुन्ना हिंदुस्तान टाइम्स में कार्यरत था और मझिला बेटा शिवशंकर अवस्थी (मुन्नू) डी ए वी स्नाकोत्तर महाविद्द्यालय में राजनीति शास्त्र में प्रोफ़ेसर, कवि और फ़िल्मकार है तथा राजेंद्र अवस्थी जी के निधन के बाद आथर्स गिल्ड आफ इण्डिया के महामंत्री भी हैं. उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।

मैं उनकी तेरहवीं पर उनके घर गया था पर जंगपुरा एक्सटेंशन में उनके निवास पर ताला लगा हुआ था।
विदेशों में उनके अनेक मित्रों में खास थे प्रो. मोहन कान्त गौतम (हालैंड), निर्मल चौबे (अमेरिका) और नार्वे में मैं था।
प्रारम्भिक जीवन जबलपुर में:
राजेन्द्र अवस्थी जी ने मंडला में प्रारंभिक शिक्षा व जबलपुर में उच्च शिक्षा अर्जित की। शिक्षा के दौरान ही साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया।
पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की शुरूआत की। वे नवभारत में सहायक संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल की।
राजेन्द्र अवस्थी ने कादंबिनी के ‘कालचिंतन’ कॉलम के माध्यम से अपना एक खास पाठक वर्ग तैयार किया था।

भारतीय प्रवासी दिवस 2009 में हम दोनों के मित्र डॉ मोहन कान्त गौतम के साथ उनकी यादें ताज़ा कीं।

दो बार नार्वे आये थे:
वह बहुत खुश हुए थे जब मैं नार्वे में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त करने वाला पहला भारतीय बना था।
वह दो बार नार्वे भी आ चुके हैं हमारे कार्यक्रमों में एक बार भारतीय पत्रकारिता पर आयोजित सेमिनार में और दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय लेखक सेमिनार और सांस्कृतिक महोत्सव में। उनके साथ पहली बार डॉ सत्य भूषण वर्मा और दूसरी बार डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी आये थे।
मारीशस और लन्दन में वह हिंदी सम्मेलनों में भी मिले और मेरे कमरे में जमी साहित्यकारों की महफ़िलों में भी भाग लिया था। लन्दन में तो कमलेश्वर जी, प्रसिद्ध प्रकाशक विजय प्रकाश बेरी जी भी मेरे साथ थे।
अवस्थी जी एक रंगीन मिजाज के, उदार पर कोमलराग के लेखक में थे। यदि गुटबंदी वाली राजनीति से अवस्थी जी अलग होते तो बात ही कुछ और होती। निजी झगड़ों को साहित्यिक मंच पर नहीं लाना चाहिए।

साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी के कार्यालय में:
उनके साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी के कार्यालय में सब मिलाकर छे महीने साथ कार्य किया या यह कहूं कि पत्रकारिता का अभ्यास किया तो सही होगा। वह मुझसे इतना प्रभावित थे कि उन्होंने मेरे लिए साप्ताहिक हिंदुस्तान में काम दिलाने के लिए कोशिश भी की थी। परन्तु वेतन कम होने के कारण मुझे वापस नार्वे आना पड़ा।
वह बहुत उदार थे अपने घर पर मुझे अनेकों बार रुकाया एक बार तो मैं उनके घर पर तीन महीने रह चुका हूँ । मेरे लिए उनका परिवार शिष्ट और उदार रहा। घर- बाहर खाने पीने में उनका कोई सानी नहीं था।

शिक्षा के दौरान ही साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की शुरूआत की। वे नवभारत में सहायक संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल की। प्रभाष जोशी के बाद उनके जाने से कर्मठ संपादकों के आकाश का एक और भव्य सितारा अस्त हो गया था।
बड़े साहित्यकारों से परिचय:
उनके साथ रहकर मुझे बहुत बड़े-बड़े और वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलने का अवसर मिला था। अज्ञेय जी, रघुवीर सहाय , अश्क जी, भिक्खु जी, गंगा प्रसाद ‘विमल’, बालेश्वर अग्रवाल, ब्रिज नारायण अग्रवाल, दुर्गाप्रसाद शुक्ल, मंथन नाथ गुप्त, जय प्रकाश भारती और अन्य से परिचय कराया था।

राजीव गाँधी और अमिताभ से मिलाया:
कांग्रेस के तत्कालीन महामंत्री भगवत झा आजाद के बेटे की शादी में दिल्ली में अवस्थी जी के साथ ही मुझे प्रधानमंत्री राजीव गांधी और महानायक अमिताभ बच्चन से पहली बार मिलने का अवसर मिला था। दो बार भारतीय संपादक सम्मेलन में भाग लेने का अवसर उन्हीं की कृपा से मिला था।

उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा:
उन्होंने एक बार जबलपुर से मुंबई व दिल्ली का रुख करने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सरिता, नंदन और कादम्बनी जैसी चर्चित पत्रिकाओं का संपादन बखूबी संभाला। उनका कॉलम ‘कालचिंतन’ पाठकों में बेहद लोकप्रिय था। संघ लोक सेवा आयोग सहित कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के सदस्य रहे। उन्होंने अनेक उपन्यासों, कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ऑथर गिल्ड आफ इंडिया के वर्षों तक पदाधिकारी रहे हैं. आजकल उनका बेटा शिवशंकर अवस्थी आथर गिल्ड्स आफ इंडिया का सचिव है ।
दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें 1997-98 में साहित्यिक कृति सम्मान से नवाजा था। उनके उपन्यासों में सूरज-किरण की छाँव, जंगल के फूल, जाने कितनी आँखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछली बाजार शामिल हैं। मकडी के जाले, दो जोडी आँखें, मेरी प्रिय कहानियाँ और उतरते ज्वार की सीपियाँ, एक औरत से इंटरव्यू आदि कथा साहित्य है।
उन्होंने कई यात्रा वृतांत भी लिखे हैं।

कुछ भूले बिसरे क्षण:
शायद यह सन् १९८५-८६ की घटना है। हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी जी की पुस्तक छपने वाली या छपी थी।
गोपाल चतुर्वेदी जी एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं और लखनऊ में संस्कृति संस्थान उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष रह चुके हैं।
दिल्ली में किसी पांच सितारा होटल में पार्टी दी गयी थी। रात का समय था। हम सभी लोग साहित्यिक बातचीत में सराबोर थे। वहाँ से निकलने में रात काफी हो गयी थी। पार्टी में अवस्थी जी के कुछ ज्यादा पैक लग गए थे। रास्ते में एक जगह अँधेरे में दिखाई नहीं पड़ा और कार एक गाय से टकरा गयी थी। गाय और हम लोग बाल-बाल बच गए थे।

दूसरी घटना सन् 1990 की मुंबई की है। मुझे अवस्थी जी अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेदिक सम्मलेन में मारीशस ले गए थे। दिल्ली से हम लोग मुंबई पहुंचे। शाम को हम सभी का सार्वजनिक सम्मान होने के बाद बांद्रा में एक ऐसे डांस बार में चले गए जिसका नाम था सीजर्स। हमारे कैमरे जमा करा लिए गए थे। वहां जाकर देखते ही हैरान रह गया कम आयु से लेकर युवा लड़कियां कम कपड़ों में बहुत संख्या में नृत्य कर रही थीं। बाद में पता चला की होटल- बार एक स्मगलर का है जिसका क़त्ल हो गया और वह होटल बंद हो गया।

साथ-साथ मारीशस यात्रा
सन १९९० में राजेंद्र अवस्थी जी के साथ मारीशस गया था। वहाँ अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेदिक सम्मलेन और कवि सम्मेलन था । कादम्बिनी के पूर्व वरिष्ठ सहायक संपादक सुरेश नीरव भी साथ थे। वहाँ मेरी और कुंवर बेचैन की पुस्तकों का लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किये था। वह एक यादगार यात्रा थी. मंत्री श्री गोबर्धन और श्री चुन्नी का व्यवहार बहुत शालीन था. मारीशसवासियों का व्यवहार बहुत अच्छा था।

प्रह्लाद रामशरण और अभिमन्यु अनथ के घर गए। हमको एक समुद्र के किनारे होटल में ठहराया गया था जहाँ पर हमारी मुलाकात एमेसट्राडम, हालैंड के राजाराम जी से हुई थी. यह मेरी पहली मारीशस यात्रा थी।

मेरी दूसरी मारीशस यात्रा 1993 में चौथे विश्व हिंदी सम्मलेन में हुई थी जिसमें पूर्व कादम्बिनी के वरिष्ठ सह संपादक धनञ्जय सिंह जी और कवियित्री अनीता अलघ थी । अनीता जी ने बाद में 1996 में मेरी पहली फिल्म ‘तलाश’ में डॉ रेखा व्यास के साथ कलाकार की तरह काम किया।

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