Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
जब तक सनातन धर्म विद्यमान है तब तक हिंदी का अस्तित्व रहेगा-प्रो.संजय श्रीवास्तव,कुलपति - श्रीनारद मीडिया

जब तक सनातन धर्म विद्यमान है तब तक हिंदी का अस्तित्व रहेगा-प्रो.संजय श्रीवास्तव,कुलपति

जब तक सनातन धर्म विद्यमान है तब तक हिंदी का अस्तित्व रहेगा-प्रो.संजय श्रीवास्तव,कुलपति

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, मोतिहारी, (बिहार):

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार, राजभाषा क्रियान्वयन समिति राजभाषा प्रकोष्ठ तथा हिंदी विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़ा 2023 के अंतर्गत आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी हिंदी का भविष्य: चुनौतियां एवं संभावनाएं,कार्यक्रम का समापन समारोह चाणक्य परिसर स्थित राजकुमार शुक्ला सभागार में शुक्रवार को हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक व विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में लगभग एक हजार वर्ष से विद्यमान है। हिंदी जनमानस की भाषा है और जब तक सनातन धर्म विद्यमान है तब तक हिंदी का अस्तित्व रहेगा। भारतीय सांस्कृतिक परिषद द्वारा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए विदेश के विश्वविद्यालयों में हिंदी प्रचार प्रसार हेतु अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था होती है। हम सभी हिंदी के विकास के लिए निरंतर प्रयास करें।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आभासी मंच से जुड़े भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री,उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि वर्तमान सरकार ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए है। हिंदी एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है। इसकी सहजता और सरलता सबको प्रिय है। साहित्य से आगे बढ़कर हिंदी ज्ञान विज्ञान की भाषा बने,यह हम सभी का प्रयास होना चाहिए।

समारोह में अभासी मंच से जुड़े अमेरिका के यूनिवर्सिटी आफॅ इलिनायॅ, अरबाना-शैमपैन से भाषा विज्ञान विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. मिथिलेश मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी का प्रेम मेरे अंदर नेतरहाट विद्यालय से ही बीज के रूप में संरक्षित है। भाषाओं के ज्ञान से बौद्धिक विकास होता है। हिंदी में संभावनाएं अनंत है। हिंदी का भविष्य उज्जवल है लेकिन इसके लिए अभी परिश्रम करना शेष है। देश के बाहर हमारी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा ही हमारी सहायक हो सकती है। मीडिया ने हिंदी के विकास को बढ़ावा दिया है। हमें हिंदी के साथ-साथ अन्य भाषाओं से भी प्रेम करना आना चाहिए और निश्चित रूप से हमें एक अन्य भाषा भी सीखने चाहिए क्योंकि भाषा एक सम्मान की बात होती है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर बुल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय से विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आभासी मंच से जुड़ी प्रो. कंचन शर्मा ने कहा की हिंदी सांस्कृतिक अस्मिता का प्रश्न है। राजभाषा के रूप में हिंदी में काम करने के लिए इच्छा शक्ति का अभाव है, यही कारण है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। हिंदी सबको साथ लेकर चलती है यही इसकी अनंत शक्ति है। हिंदी की त्रासदी यह है कि उसे ऑकडों के जाल में उलझा कर, क्षेत्रीय राजनीति में बांटकर कमजोर कर दिया गया है। हिंदी हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है। हिंदी स्वतंत्रता संग्राम की भाषा रही है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने से यह मजबूत होगी, जबकि आम जनता ने तो हिंदी को राष्ट्रभाषा मान ही लिया है। हिंदी को लेकर उन नागरिकों के मस्तिष्क से इस भय को निकलना होगा कि हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने से उन्हें कोई भय होना चाहिए बल्कि हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने से उनकी भाषा और मजबूत होगी। अनुवाद को लेकर हिंदी में चुनौती मौजूद है लेकिन इसे दूर किया जा सकता है। योग ने वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ाया है।अपने संकल्प शक्ति को सुदृढ करते हुए यह संभव है कि हम हिंदी को नई ऊंचाई तक ले जा सकते है। हिंदी को लेकर वर्तमान सरकार एवं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने आशा और उम्मीद की अलख जगायी है।


कार्यक्रम के संरक्षक और मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि हिंदी हमारी संस्कृति की वाहिका है। हमने भाषा को लेकर समन्वय बनाने की कोशिश की है। हिंदी हमारी प्रतिनिधि भाषा के रूप में विद्यमान है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए इसे थोपने की आवश्यकता नहीं है यह स्वत: ग्राहय है। हिंदी की चुनौतियों पर बात करें तो हिंदी को तकनीक से समन्वय बनाने की आवश्यकता है साथ ही इसके व्याकरण को सशक्त करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष एवं राजभाषा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा की
हिंदी मध्यकाल से संघर्ष की भाषा रही है। सभी भाषाओं में हिंदी ने कहीं अधिक संघर्ष किया है। अंग्रेजों ने हिंदी के विकास को अवरुध्द किया। 19वीं शताब्दी में हिंदी-उर्दू संघर्ष ने भी हिंदी को कमजोर किया। स्वतंत्रता के बाद हिंदी का विरोध प्रारंभ हो गया इससे वह राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। हिंदी विभाग एवं हिंदी बोलने वाली जनता ने भी इसे हतोत्साहित किया है। ज्ञान विज्ञान की भाषा को लेकर हिंदी में चुनौतियां हैं लेकिन जैसे-जैसे भारत का उत्तरोत्तर विकास होता जाएगा वैसे-वैसे हिंदी अवश्य समृद्धि होती जाएगी।
कार्यक्रम में सर्वप्रथम मां सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए दीप प्रज्वलित करके समारोह का शुभारंभ किया गया। मंच पर उपस्थित अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं अंग वस्त्र भेंट किया गया। मंच का सफल संचालन शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया जबकि कार्यक्रम में सभी की उपस्थिति के लिए शोधार्थी विकास कुमार ने धन्यवाद किया।
इस अवसर पर हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ. आशा मीणा सहित कई विभाग के शोधार्थी और परास्नातक के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

 

यह भी पढ़े

जय जवान जय किसान दिवस के रूप में इस वर्ष मनाए जा रही शास्त्री जी की जयंती  

सांसद ने ब्लाक पब्लिक हेल्थ यूनिट का किया शिलान्यास 

नागलीला मेला में श्रीकृष्ण बलराम द्वारा कंस वध का हुआ मंचन

 स्कूल की छात्राओं के मुंह  उदंड छात्रों ने विषाक्त पाउडर फेख किया अचेत

मशरक के बंगरा गांव में पागल कुते ने दो शख्स पर किया हमला

मशरक में आंगनबाड़ी सेविका- सहायिकाओं की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

आग लगने से  फुस का घर जलकर हुआ राख, एक पशु की हुई मौत

Leave a Reply

error: Content is protected !!