कुरुक्षेत्र की अष्टकोशी परिक्रमा दिलाती है मोक्ष की प्राप्ति

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कुरुक्षेत्र की अष्टकोशी परिक्रमा के लिए देश विदेश से श्रद्धालुओं का होता है आगमन
मनोकामनाएं होती है पूर्ण और संकटों का होता है हरण

श्रीनारद मीडिया, वैध पण्डित प्रमोद कौशिक, हरियाणा

कुरुक्षेत्र : अष्टकोशी कुरुक्षेत्र परिक्रमा और महात्म्य, चैत्र कृष्ण चौदस 28 मार्च 2025
प्रारम्भ प्रातः 5:00 बजे से सायं 6:00 बजे समापन।
कुरुक्षेत्र की सीमा का निर्धारण वैसे तो 48 कोस के अंतर्गत है धर्म परायण लोग इस क्षेत्र में स्थापित 192 पवित्र तीर्थो की यात्रा कर मोक्ष की कामना करते हैंइसी प्रकार कुरुक्षेत्र की अष्टकोशी परिक्रमा भी पितृजन की मुक्ति दिलाने वाली व अक्षय फल प्राप्त गामी होती है।

कुरुक्षेत्र अष्टकोशी परिक्रमा हजारों साल पुरानी है सर्वप्रथम ब्रह्मा विष्णु महेश त्रिदेवों ने उपवास रख जन नियंता भगवान ने सृष्टि का निर्माण करने के लिए अष्टकोशी की परिक्रमा की और अपने-अपने देवत्व भार को ग्रहण कर सृष्टि संयोजन का कार्य प्रारंभ किया त्रिदेवों के पश्चात सैकड़ो सालों से सदैव प्रतिवर्ष देवता और धार्मिक पुरुषों ने अष्टकोशी भूमि की यात्रा अनवरत रूप से जारी रखी एक बार यात्रा करने पर मनुष्य की समस्त मनोकामना को पूरा करने वाली दो बार अष्टकोसी यात्रा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है तीन बार अष्टकोसी यात्रा करने पर अक्षय लोको की प्राप्ति होती है

एक बात उल्लेखनीय है अष्टकोशी कुरुक्षेत्र का यह क्षेत्र महाभारत युद्ध से विमुक्त था।अष्टकोशी तीर्थ यात्रा में कौन-कौन से तीर्थ आते हैं।

कुरुक्षेत्र अष्टकोशी परिक्रमा क्रमशः

आदिकाल से चली आ रही यह परिक्रमा साहसिक तीर्थ यात्रा है खेतों की छोटी-छोटी पगडंडी पर सरस्वती नदी के किनारे किनारे चलते हुए लगभग 24 किलोमीटर की यह यात्रा सूर्य उदय से नाभकमल मंदिर से चलकर नाभकमल मंदिर में सूर्य अस्त तक पूर्ण होती है।कुरुक्षेत्र मोक्षदायक धार्मिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ है। यह केवल महाभारत युद्ध भूमि ही नहीं भगवान कृष्ण के मुखारविंद से प्रकट हुई गीता जन्मस्थली भी है। राजा कुरु के अष्टांग योग यज्ञ,तप,सत्य, क्षमा, दया,शौच,दान,ब्रह्मचर्य से परिपूर्ण मोक्ष प्रदायक स्थान भी है।

वामन अवतार व ब्रह्मा जी की उत्पत्ति स्थान इस धरा पर राम भी आए कृष्ण भी आए रावण, कुबेर, कुम्भकर्ण, विभिक्षण ने तप कर मनोवांछित फल पाए ऐसे आदिकाल तीर्थ की परिक्रमा अंनत फल प्रदायिनी है।

यह यात्रा नाभकमल तीर्थ से सरस्वती के किनारे ओजस तीर्थ और वहीं से सरस्वती के किनारे किनारे होते हुए स्थानेश्वर तीर्थ, कुबेर तीर्थ, बदर पाचन तीर्थ, क्षीर सागर तीर्थ, पूर्ववाहिनी सरस्वती तीर्थ खेडी मारकंडा, दधीचि तीर्थ,वृद्ध कन्या तीर्थ, रंतुक यक्ष,पावन तीर्थ,औघड़ तीर्थ, बाणगंगा, उपगया तीर्थ, नरकउतारी बाणगंगा से होते हुए नाभकमल पर समाप्त होती है।

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