साइबर अपराध के लिए फिलहाल कोई प्रभावी कानून ही नहीं,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इसे रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग की जरूरत महसूस की जा रही है। तभी भारत यूरोपीय यूनियन के साथ साइबर सहयोग पर संवाद कर रहा है। अलग-अलग देश साइबर फ्रॉड व अपराध रोकने के लिए खास कानून बना रहे हैं। आस्ट्रेलिया में चंद रोज पहले साइबर सुरक्षा के नए कानून को मंजूरी दी गई है तो अमेरिका भी साइबर सुरक्षा के लिए जल्द कानून लाने जा रहा है। यह देखना रोचक होगा कि जिस तरह साइबर अपराधी अपने क्रिया कलाप बदलते हैं, उसमें भारत समेत विश्व भर में बन रहे कानून कितने प्रभावी बनते हैं।
साइबर फ्रॉड से हो रहा करोड़ों का नुकसान
पिछले वर्ष साइबर फ्रॉड से अमेरिका को 12.5 अरब डालर का नुकसान झेलना पड़ा। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार का इलेक्ट्रानिक्स व आइटी मंत्रालय पिछले वर्ष डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट लेकर तो आ गया, लेकिन अब तक इसे अमल में नहीं लाया जा सका है। डीपीडीपी एक्ट लागू होने पर साइबर फ्राड खासकर व्यक्तिगत रूप से होने वाले फ्रॉड को रोकने में मदद मिलेगी। इस एक्ट में किसी भी व्यक्ति के डिजिटल डाटा को बेचना या किसी और को देना आसान नहीं रह जाएगा।
बिना अनुमति नहीं उपयोग हो सकेगा डिजिटल डाटा
बैंक कर्मचारियों की तरफ से खाताधारकों के डाटा को जालसाजों के हाथ बेचने के कई मामले सामने आ चुके हैं। डाटा मिलने से जालसाज को उस व्यक्ति की महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है और उसके साथ धोखा करना आसान हो जाता है। अभी ई-कामर्स कंपनी या इंटरमीडिएरिज के पास बड़े पैमाने पर लोगों का डाटा होता है और उसका कैसे इस्तेमाल हो रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं होती। डीपीडीपी एक्ट अमल में आने पर डाटा इस्तेमाल सीमित हो जाएगा।
साइबर सुरक्षा अनुसंधान से जुड़ी कंपनी इनेफु लैब के संस्थापक तरुण विग ने बताया कि डाटा लीक, फिशिंग और मालवेयर के जरिये भी बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत डाटा और गोपनीय सूचनाएं चुराई जा रही हैं।
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