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अटल जी भारतीय राजनीति में त्याग व सादगी के प्रतिमूर्ति थे- प्रो. जी.गोपाल रेड्डी। - श्रीनारद मीडिया

अटल जी भारतीय राजनीति में त्याग व सादगी के प्रतिमूर्ति थे– प्रो. जी.गोपाल रेड्डी।

अटल जी भारतीय राजनीति में त्याग व सादगी के प्रतिमूर्ति थे– प्रो. जी.गोपाल रेड्डी।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार द्वारा राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी ‘अटल बिहारी वाजपेयी: व्यक्तित्व एवं विचार’ का आयोजन किया गया।
ई-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. जी. गोपाल रेड्डी ने कहा की अटल बिहारी वाजपेयी आजीवन भारत को विश्वगुरू बनाने हेतु कार्य करते रहे।वे दस बार लोकसभा के लिए विभिन्न क्षेत्रों से निर्वाचित होते रहे,यह उनके लोकप्रियता को दर्शाता है। उनका मानना था की भारत की आत्मा गांव में बसती है उसे सड़कों से जोड़ने गांव में पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता को उपलब्ध कराया,जिसका हमें व्यक्तिगत अनुभव है।

हमारी आठ हजार वर्षों की जीवन्त संस्कृति है और उस संस्कृति से एक अच्छे शासन की बात निकलती है जो अटल जी ने अपने कार्यों में करके दिखाया है। विकास को सर्वोपरि मानते हुए उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जो देश को आगे ले जाने में काफी महत्वपूर्ण रहा। उनका जीवन राजनीतिज्ञों के लिए अनुकरणीय है,उन्होंने चालीस वर्षो तक विपक्ष की राजनीति की और कहीं भी इसे विचलित नहीं हुए।

ऐसे मनीषी के व्यक्तित्व और विचार को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।इस प्रकार की संगोष्ठी में भाग लेने वाले वक्ताओं और आयोजित करने वाले सभी को हार्दिक बधाई देता हूं।


अटल जी सर्वे भवन्तु सुखिनः के पुरोधा थे–राकेश उपाध्याय।

ई संगोष्ठी मे मुख्य अतिथि के तौर पर भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. राकेश उपाध्याय ने सारगर्भित उद्बोधन मे कहा की अटल जी का जीवन हिमालय सरीखा था,अपने संपूर्ण जीवन में सनातन ज्ञान सांस्कृतिक को लेकर वे विश्व भर में भ्रमण करते रहें। भारतीय राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों का वे मार्गदर्शन करते रहे। आजादी के बाद भारत के विपक्ष की राजनीति को उन्होंनेग अवशय प्रभावित किया है।

देश को नई दिशा प्रदान करने में अथक प्रयास किया।वे कहा करते थे कि कंकर-कंकर जोड़कर मैने शंकर बनाया है,हम इस धरा के लिए जिएंगे। वाकपटुता के धनी अटल जी वाणी पर सरस्वती का वास था, यही कारण है कि उन्हें सुनने के लिए प्रधानमंत्री नेहरु तक इंतजार किया करते थे। सारा देश को अपना घर मानने वाले अटल जी वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिनः के प्रबल समर्थक थे।

तेरह दिन,तेरह महीने और सिर्फ पांच वर्ष सरकार चलाकर उन्होंने अपनी ताकत का एहसास कराया। उनके व्यक्तित्व का आलम यह था कि
विपक्ष का नेता होते हुए भी वे विश्व मंच पर देश का प्रतिनिधित्व किये।

अपनी सटीक शब्दों की प्रयोग से भाषण में चार चांद लगा देते थे।बड़ी से बड़ी बात अटल जी बड़े सहज ढंग से कह जाते थे। उनके ह्रदय की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कलाम साहब को राष्ट्रपति बनवाया।

एक राजनीतिज्ञ के रूप में,एक पत्रकार के रूप में एक साहित्यकार के रूप में उनके द्वारा किये गये कार्य काल के कपाल पर अमिट है।वैचारिक भिन्नता की बावजूद भी वे मानवता के पुजारी थे।धन्य है वह भारत माता जो ऐसे रत्न को पैदा करती है। उनके जीवन से बहुत कुछ सिखा जा सकता है।


अटल जी बहुआयी व्यक्तित्व के शाश्वत स्वरूप थे–डॉ सौरभ मालवीय।

वहीं ई-संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के डॉ. सौरभ मालवीय ने बताया कि अटल जी के लिए राजनेता होना एक छोटा सा विशेष थावे तो सच्चे मायने में भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते थे पंडित अटल जी भारतीय संस्कृति के परंपरा के संवाहक थे संवेदना से भरे हुए उनकी शैली मोहिनी थी उनके लेखों में राष्ट्रीय एवं राष्ट्रवाद जीवित हैं। भारत संस्कृति के संवाहक के रूप में अटल जी पूरी दुनिया में देश का पताखा फहराये। सदन में वह हमेशा सहज,सरल और सुलभ रहते थे,यही कारण था कि नेहरु जी ने अक्सर कहा करते थे कि आप भविष्य के नेता हैं।

अटल जी का मानना था कि संस्कार से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों के सानिध्य से उनका व्यक्तित्व विराट होता चला गया। भारत, भारती, राष्ट्र की सेवा को उन्होंने सर्वोपरि माना। जो उनकी लेखनी में स्पष्ट रुप से उभर कर सामने आती है। पत्रकारिता अटल जी के ह्रदय में बसती थी वे कहते थे कि पत्रकार समाज का श्वास होता है। सचमुच में अटल जी एक व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे,संस्था थे।

संगोष्ठी में आगंतुक अतिथियों का स्वागत परिचय डॉक्टर संतोष कुमार त्रिपाठी,अधिष्ठाता, शोध एवं विकास प्रकोष्ठ ने कराया, वही पूरे कार्यक्रम का संचालन अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ विमलेश कुमार सिंह ने किया। जबकि ई-संगोष्ठी का धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के आचार्य डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने किया उन्होंने विशेष रुप से कुलपति, प्रतिकुलपति, मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि एवम विभिन्न संकायों के अध्यक्षों का धन्यवाद किया।

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