देश की छवि खराब करने की हो रही कोशिश- मोहन भागवत
अपने शताब्दी वर्ष में पहुंच रहा RSS
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के अवसर पर ‘शस्त्र पूजा’ की। आरएसएस प्रमुख ने समारोह को संबोधित भी किया और हिंदुओं को इकट्ठा होने का संदेश दिया। भागवत ने कोलकाता कांड, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा पर भी बात की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि बांग्लादेश की घटना ने विश्व के हिंदू समाज को बता दिया की असंगठित और दुर्बल रहना अत्याचारों को निमंत्रण देता है। इसलिए हिंदुओं को संगठित और सशक्त होने की जरूरत है।
देश की छवि खराब करने की हो रही कोशिश
मोहन भागवत ने आगे कहा कि विश्व भी शक्ति को ही स्वीकार करता है। परंतु कुछ शक्तियां जिनका निजी स्वार्थ प्रभावित होता है वह भारत को बलशाली होता देखना नहीं चाहती। ये सभी वे देश हैं जो विश्व शांति के लिए अपने आपको प्रतिबद्ध बताते हैं परंतु जब उनकी स्वयं की सुरक्षा और स्वार्थों का प्रश्न आता है तब दूसरे देशों पर आक्रमण करने या चुनी हुई सरकारों को अवैध या हिंसक तरीके से उलट देने से नहीं चुकते हैं। ये शक्तियां भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास करती रहती है।
अपने शताब्दी वर्ष में पहुंच रहा RSS
भागवत ने संघ के स्थापना दिवस के शताब्दी वर्ष में पहुंचने की भी चर्चा की। RSS विजयादशमी पर हमेशा अपना स्थापना दिवस मनाता है। विजयादशी के दिन ही 1925 में डॉ. बलराम कृष्ण हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी।
भागवत ने कहा कि ये लोग जानते हैं कि भारत शक्तिशाली होगा तब विश्व में शांति और सौहार्द रहेगा और आरएसएस भारत को शक्तिशाली बनाने के प्रयास में पिछले 99 वर्षों से लगा है। कार्यक्रम का आयोजन रेशिमबाग स्थित मैदान में किया गया था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इसरो के पूर्व अध्यक्ष डाक्टर के राधाकृष्णन थे। लगभग 1.13 घंटे के अपने संबोधन में मोहन भागवत ने देश व विदेश के कई मुद्दों को उठाते हुए कई देशों पर बिना नाम लिए प्रहार भी किया।
देश में टकराव उत्पन्न करने का चल रहा प्रयास
भागवत ने कहा कि आज भारत में सामान्य समाज को जाति, भाषा , प्रांत आदि छोटी विशेषताओं के आधार पर अलग कर टकराव उत्पन्न करने का प्रयास चल रहा है। छोटा स्वार्थ और छोटी पहचान में उलझ कर सर पर मंडरा रहे बड़े संकट को समझ ना सके यह व्यवस्था की जा रही है। इसके चलते देश की बाहरी सीमा से लगे पंजाब, जम्मू कश्मीर, लद्दाख , समुद्री सीमा पर स्थित केरल, तमिलनाडु तथा बिहार से मणिपुर तक का संपूर्ण पूर्वांचल अस्वस्थ है।
बिना कारण कट्टरपन की घटनाओं में हुई वृद्धि
देश में बिना कारण कट्टरपन को उकसाने वाली घटनाओं में अचानक वृद्धि हुई है। स्थिति या नीतियों को लेकर मन में संतुष्टि हो सकती है परंतु उसको व्यक्त करने और विरोध करने के प्रजातांत्रिक मार्ग होते हैं। उसका अवलंबन ना करते हुए हिंसा पर उतरना, समाज के किसी विशिष्ट वर्ग पर आक्रमण करना, बिना कारण हिंसा पर उतारू होना, भय पैदा करने का प्रयास करना यह गुंडागर्दी है। इसको उकसाने के प्रयास होते हैं या योजनाबद्ध तरीके से किए जाते हैं। ऐसे आचरण को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने अराजकता कहा है। हाल ही में गणेशोत्सव पर पथराव उसी का उदाहरण है। प्रशासन तो अपना काम करेगा परंतु समाज को सतर्क रहने की जरूरत है।
सबको प्रसन्न नहीं किया जा सकता
मोहन भागवत ने कहा कि अपना देश विविधताओं से भरा हुआ है। हमारी विविधताएं सृष्टि की स्वाभाविक विशेषताएं हैं। इस विविधता के चलते समाज जीवन में तथा देश के संचालन में होने वाली सभी बातें सदा सर्वदा सबके अनुकूल अथवा सबको प्रसन्न करने वाली होगी ही ऐसा नहीं होता। इसकी प्रतिक्रिया में कानून को अपने हाथ में लेकर अवैध व हिंसात्मक मार्ग से उपद्रव खड़े करना देशहित में नहीं है।
फिर कुछ लोगों द्वारा किए गए गलत कामों से समाज के किसी एक संपूर्ण वर्ग को दोषी ठहरा देना भी ठीक नहीं है। अपने व्यवहार से किसी की श्रद्धा का, श्रद्धास्पद स्थान, महापुरुष, ग्रंथ , अवतार व संत आदि का अपमान नहीं हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
कार्यक्रम में कई अतिथियों को आमंत्रित किया गया था। उनमें रांची से झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के उप रजिस्ट्रार शिवेंद्र प्रसाद व उनकी पत्नी भी थी।
संबोधन की बातें
- विज्ञान व तकनीक के सहारे जीवन को हमने सुविधाओं से पूर्ण बनाया है, परंतु स्वार्थों के कलह हमें विनाश की ओर धकेल रहे हैं। इजरायल के साथ हमास का युद्ध कहां तक फैलेगा यह चिंता सबके सामने है। अपने देश में भी परिस्थितियों में आकांक्षाओं के साथ चुनौतियां और समस्याएं भी विद्यमान हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत विश्व में सशक्त और प्रतिष्ठित हुआ है। युवा पीढ़ी में स्व का गौरव बढ़ते जा रहा है। जम्मू-कश्मीर सहित सभी चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हो गए। इसके बाद भी देश को अशांत और अस्थिर करने के प्रयास में तेजी आई है।
- ड्रीप स्टेट, वोकिजम, कल्चरल मार्क्सिस्ट ऐसे शब्द आजकल चर्चा में है। सभी सांस्कृतिक परंपराओं के ये घोषित शत्रु हैं। भारत के सीमावर्ती तथा जनजातीय जनसंख्या वाले प्रदेशों में कई तरह के कुप्रयास चल रहे हैं।
- युवाओं को बर्बाद कर रहा है विकृत प्रचार और नशीले पदार्थ। हमारे बच्चे मोबाइल पर क्या देख रहे हैं उस पर नियंत्रण नहीं है। वैसी सामग्री है जिसका उल्लेख यहां नहीं कर सकते हैं। ऐसी सामग्री पर कानून का नियंत्रण जरूरी है। युवा पीढ़ी में नशीले पदार्थों की आदत बढ़ती जा रही है। यह समाज को खोखला करता जा रहा है। इसलिए अच्छाई की ओर ले जाने वाले संस्कार बच्चों में लाने होंगे।
- संस्कार क्षय के कारण ही समाज में बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में घटी घटना सारे समाज को कलंकित करने वाली है। उस घटना के खिलाफ पूरा समाज तो खड़ा हुआ परंतु कुछ लोगों द्वारा अपराधियों को संरक्षण देने का जिस तरह का घृणित प्रयास हुआ यह ठीक नहीं है।
- संघ अपने शताब्दी वर्ष पर समाज में सामाजिक समरसता बनी रहे, पर्यावरण की रक्षा हो, पानी को बचाएं, पेड़ लगाएं और प्लास्टिक का उपयोग नहीं करें, इसके लिए स्वयंसेवक अपने घरों के साथ साथ समाज के बीच जाएंगे।
- बच्चों में संस्कार जगाने के प्रयास किए जाएं। सभी लोग नागरिक अनुशासन का पालन करें। देश में जो बनता है उसे बाहर से नहीं लाना। देश का रोजगार चले बढ़े इसका ध्यान रखना होगा। जो चीजें देश में नहीं बनती उसके बिना ही काम चलाना चाहिए, जिसके बिना काम चलता नहीं वह केवल विदेश से लाना चाहिए। घर के अंदर भाषा, भवन, भ्रमण भजन सब अपना हो।
मोहन भागवत ने ये भी कहा कि भगवान बिरसा मुंडा की डेढ़ सौ वीं जयंती 15 नवंबर से प्रारंभ होगी। इस दौरान जनजातीय बंधुओं की गुलामी तथा शोषण से , स्वदेश पर विदेशी वर्चस्व से मुक्ति, अस्तित्व व अस्मिता की रक्षा एवं स्वधर्म रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा द्वारा प्रवर्तित उलगुलान की प्रेरणा का स्मरण लोगों को कराया जाएगा। जनजातीय बंधुओं के स्वायमान और राष्ट्रीय जीवन में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
दयानंद सरस्वती और अहिल्या देवी होल्कर को किया याद
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती का यही वर्ष है। पुण्य श्लोक अहिल्या देवी होल्कर की 300वीं जन्मशती का वर्ष मनाया जा रहा है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश, धर्म, संस्कृति व समाज के लिए जीवन लगा देने वाले ऐसी विभूतियों को हम लोग इसलिए याद करते हैं कि इन लोगों ने सबके हित में तो कार्य किया ही, स्वयं के जीवन से हमारे लिए अनुकरणीय जीवन व्यवहार का उत्तम उदाहरण उपस्थित किया। हम सभी से आज इसी प्रकार के जीवन व्यवहार की अपेक्षा परिस्थिति कर रही है।
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