सिमलीपाल बायोस्फीयर रिज़र्व में आग के प्रबंधन हेतु शुरू हुआ जागरूकता अभियान.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वन प्रशासन और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) ने इस वर्ष सिमलीपाल बायोस्फीयर रिज़र्व में आग के प्रबंधन हेतु जागरूकता अभियान शुरू किया है।
- इससे पहले वैज्ञानिकों ने सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व (STR) में ओडिशा के ‘ब्लैक टाइगर्स’ के रंगों के पीछे के रहस्य को उज़ागर किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- सिमलीपाल का नाम ‘सिमुल’ (Simul- सिल्क कॉटन) के पेड़ के नाम पर पड़ा है।
- टाइगर रिज़र्व के लिये इसका चयन आधिकारिक रूप से वर्ष 1956 में किया गया था, जिसको वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के अंतर्गत लाया गया।
- भारत सरकार ने जून 1994 में इसे एक जैवमंडल रिज़र्व (Biosphere Reserve) क्षेत्र घोषित किया।
- यह बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 2009 से यूनेस्को के विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) का हिस्सा है।
- यह सिमलीपाल-कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व (Similipal-Kuldiha-Hadgarh Elephant Reserve) का हिस्सा है, जिसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व (Mayurbhanj Elephant Reserve) के नाम से जाना जाता है।
- यह जंगल वनाग्नि से ग्रस्त है। वर्ष 2021 में सिमलीपाल में फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में वनाग्नि की घटना देखी गई थी।
- अवस्थिति:
- यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में स्थित है जो भौगोलिक रूप से पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित है।
आवृत्त क्षेत्र:
- यह जैववमंडल 4,374 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जिसमें 845 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र (बाघ अभयारण्य), 2,129 वर्ग किमी. का बफर क्षेत्र और 1,400 वर्ग किमी. का संक्रमण क्षेत्र शामिल है।
वनस्पतियाँ:
- सिमलीपाल में 1,076 फूलों की प्रजातियाँ और ऑर्किड की 96 प्रजातियाँ हैं।
- इसमें उष्णकटिबंधीय अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन, शुष्क पर्णपाती पहाड़ी वन और विशाल घास के मैदान मौजूद हैं।
जनजातियाँ:
- इस बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र में दो जनजातियाँ यथा- इरेंगा खारिया (Erenga Kharias) और मैनकर्डियास (Mankirdias) निवास करती हैं, जो आज भी पारंपरिक कृषि गतिविधियों (बीज और लकड़ी का संग्रह) के माध्यम से खाद्य संग्रहण करती हैं।
वन्यजीव:
- सिमलीपाल बाघों और हाथियों सहित जंगली जानवरों की एक विस्तृत शृंखला का निवास स्थान है, इसके अलावा यहाँ पक्षियों की 304 प्रजातियाँ, उभयचरों की 20 प्रजातियाँ और सरीसृप की 62 प्रजातियाँ निवास करती हैं।
वनाग्नि का कारण और शमन:
- वनाग्नि:
- प्राकृतिक: इस क्षेत्र में सूर्य की तपिश और बढ़ता तापमान जैसे प्राकृतिक कारक वनाग्नि (Forest Fire) का कारण बन सकते हैं।
- मानव निर्मित कारण: शिकारियों द्वारा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिये आग का प्रयोग किया जाता है जो वनाग्नि का कारण हो सकता है।
- शमन रणनीतियाँ:
- इन रणनीतियों में आग की आशंका वाले दिनों का पूर्वानुमान, इस क्षेत्र के समुदायों के सदस्यों के साथ मिलकर आग की घटनाओं को कम करने के लिये कंट्रोल फायर लाइन का निर्माण, सूखे बायोमास को हटाना, शिकारियों पर कार्रवाई करना आदि शामिल हैं।
ओडिशा के अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र:
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान
- बदरमा वन्यजीव अभयारण्य
- चिल्का (नलबण) वन्यजीव अभयारण्य
- हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
- बैसीपल्ली वन्यजीव अभयारण्य
- कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
- नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य
- लखारी घाटी वन्यजीव अभयारण्य
- गहिरमाथा (समुद्री) वन्यजीव अभयारण्य
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