आजाद हिंद फौज ने सिंगापुर में भारत की बनाई थी सरकार.

आजाद हिंद फौज ने सिंगापुर में भारत की बनाई थी सरकार.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

नेताजी सुभाष चंद्र बोस रहे संस्थापक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

15 अगस्त , 2022 को आजादी के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे है। इसको ध्यान में रखते हुए 75वीं वर्षगांठ से एक साल पहले यानी इस साल 15 अगस्त 2021 को इन कार्यक्रमों की शुरुआत की गई है, जिसके तहत देश में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। आजादी का अमृत महोत्सव 15 अगस्त 2023 तक जारी रहेगा। आज 21 अक्टूबर का दिन देश के इतिहास में बेहद ही खास है। साल 1943 में आज ही के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत की सरकार गठन किया था। इसी सरकार को ‘आजाद हिंद फौज’ सरकार भी कहा जाता है।

आजाद हिंद फौज का विचार आने से लेकर इसके गठन तक कई स्तरों पर कई लोगों के बीच बातचीत हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में रहने वाले रास बिहारी बोस ने इसकी अगुवाई की। जुलाई 1943 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से जापान के नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे। वहीं से उन्होंने दिल्ली चलो का नारा दिया था।

फौज को आधुनिक युद्ध के लिए तैयार करने में जापान ने बड़ी मदद की थी। जापान ने ही अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को सौंपे थे। सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान का नाम बदलकर शहीद द्वीप और निकोबार का स्वराज द्वीप रखा था। इम्फाल और कोहिमा के मोर्चे पर कई बार भारतीय ब्रिटिश सेना को आजाद हिंद फौज ने युद्ध में हराया था। नेताजी ने इस सरकार की स्थापना के साथ ही ब्रिटिशर्स को ये बताया था कि भारतवासी अपनी सरकार खुद चलाने में पूरी तरह सक्षम हैं। सरकार का अपना बैंक, अपनी मुद्रा, डाक टिकट, गुप्तचर विभाग और दूसरे देशों में दूतावास भी थे।

आज जिस मॉर्डन इंडिया को हम देख पा रहे हैं, उसका सपना नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बहुत पहले देखा था। भारत के लिए उनका जो विजन था, वो अपने समय से बहुत आगे का था।” नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वो महान व्यक्ति जिनको भारत और भारत का इतिहास कभी भूल नहीं पायेगा।

नेताजी के बारे में कौन नहीं जानता, पूरे देश को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से थे, जिनसे आज के दौर का युवा वर्ग भी प्रेरणा लेता है। उनके द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ का नारा पूरे देश का राष्ट्रीय नारा बन गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने विचारों से लाखों लोगों को प्रेरित किया। नेताजी का मानना था कि स्त्री और पुरुष में कोई भेद संभव नहीं है। सच्चा पुरुष वही होता है, जो हर परिस्थिति में नारी का सम्मान करता है। यही कारण था कि महिला सशक्तिकरण का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने आजाद हिंद फौज  में ‘रानी झांसी रेजीमेंट’ की स्थापना की थी।

दरअसल, भारत के प्रत्येक निवासी का ये कर्तव्य है कि वो नेताजी से प्रेरित होकर देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान करने का संकल्प ले। नेताजी कहा करते थे कि अगर हमें वाकई में भारत को सशक्त बनाना है, तो हमें सही दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है और इस कार्य में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर हमें नेताजी को याद रखना है, तो अपने विचार को जन समूह के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाले संचारक के रूप में याद रखना चाहिए। आजादी के पूर्व सीमित संचार साधनों के बाद भी अपनी सरलता और सहजता के कारण नेताजी लोकप्रिय हुए। अपने विचारों से उन्होंने असफल और निराश लोगों के लिए सफलता के नए द्वार खोल दिए।

21 अक्टूबर को ही हुई थी “आज़ाद हिन्द फ़ौज” की स्थापना 

21 अक्टूबर का दिन इसलिए खास है क्योंकि आज ही के दिन 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी थी. इसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी. जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिए थे. सुभाष उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया. इस सरकार को आजाद हिन्द सरकार कहा जाता था. इस सरकार के पास अपनी फौज से लेकर बैंक तक की व्यवस्था थी.

महिलाओ को सशक्त बनाना चाहते थे नेताजी

‘महिला सशक्तीकरण नेताजी अपने युग के बहुत आगे की सोच रखते थे. उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज में महिला रेजिमेंट का गठन किया था, जिसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन के हाथों में थी. इसे रानी झांसी रेजिमेंट भी कहा जाता था.  सशस्त्र महिला रेजिमेंट की शुरुआत नेताजी ने ही की थी

दरअसल, सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि आज़ादी की इच्छा हर भारतीय के दिल में उठे तो भारत को स्वतंत्र होने से कोई रोक नहीं सकेगा. इसके लिए उन्होंने अपने लेखों, भाषणों में लिखना-बोलना शुरू किया. उन्होंने ‘फॉरवर्ड’ नाम से पत्रिका के साथ ही आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की और जनमत बनाया. बेहद कम साधनों के साथ आज़ाद हिंद फ़ौज, आज़ाद हिंद सरकार, आज़ाद हिंद रेडियो और रानी झांसी रेजिमेंट नेताजी की विशेष उपलब्धियां रही.

छिपकर रहने वाले नहीं थे सुभाष चंद्र बोस

रानी झांसी रेजिमेंट की सेकेंड लेफ्टिनेंट रही आशा चौधरी का मानना है कि नेताजी जैसे दृढ़ व्यक्ति वर्षों तक छिप कर रहने वाले नहीं थे। इन्होंने व उनके पापा नेताजी के निकट सहयोगी व द्वितीय आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल स्व. आनंद मोहन सहाय ने बहुत पहले ही सरकार तथा जांच आयोगों को भारी मन से बता दिया था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ताइवान के फारमोसा में 1945 में हुए विमान दुर्घटना में दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से शहीद हो चुके हैं। उनकी पवित्र अस्थि-राख जापान के टोक्यो स्थित रेंकोजी मंदिर में रखी हुई है। वहां से उसे स्वदेश लाया जाए। लेकिन देश के चोटी के नेताओं को न उनकी बातों पर भरोसा हुआ था और न नेताजी की अस्थि राख स्वदेश लाई गई।

जब हार कर भी जीत गई थी  आज़ाद हिंद फ़ौज

इंफाल और कोहिमा के मोर्चे पर कई बार भारतीय ब्रिटेश सेना को आज़ाद हिंद फ़ौज ने युद्ध में हराया. लेकिन जर्मनी और इटली की हार के साथ ही 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया. युद्ध में लाखों लोग मारे गए. जब यह युद्ध ख़त्म होने के क़रीब था तभी 6 और 9 अगस्त 1945 को अमरीका ने जापान के दो शहरों- हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरा दिए.

इसमें दो लाख से भी अधिक लोग मारे गए. इसके फौरन बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया. डॉक्टर राजेंद्र पटोरिया अपनी किताब ‘नेताजी सुभाष’ में लिखते हैं, “जापान की हार के बाद बेहद कठिन परिस्थितियों में फ़ौज ने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर सैनिकों पर लाल क़िले में मुक़दमा चलाया गया.

जब यह मुक़दमा चल रहा था तो पूरा भारत भड़क उठा और जिस भारतीय सेना के बल पर अंग्रेज़ राज कर रहे थे, वे विद्रोह पर उतर आए.” “नौसैनिक विद्रोह ने ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में अंतिम कील जड़ दी. अंग्रेज़ अच्छी तरह समझ गए कि राजनीति व कूटनीति के बल पर राज्य करना मुश्किल हो जाएगा. उन्हें भारत को स्वाधीन करने की घोषणा करनी पड़ी.”

Leave a Reply

error: Content is protected !!