बदनाम हुआ बाबाधाम…त्रिकूट पहाड़ी पर दिखा तबाही का मंजर…

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बाबा बैजनाथ की नगरी देवघर के त्रिकुट पहाड़ी पर रामनवमी के दिन हुए रोपवे हादसे ने तीन लोगों की जान ले ली और दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। इस हादसे ने देवघर की पौराणिक और रोमांच से भरी छवि के विपरीत एक अलग तरह का बदनाम पर्यटन स्थल बना दिया है। दो दिनों तक चले राहत-बचाव कार्यों को देखने के लिए यहां साइट पर हजारों लोग आ गए थे।

हंडीहा गांव जहां पहाड़ी स्थित है, वहां से बड़ी संख्या में लोग तो पहुंचे ही, देवघर के अन्य हिस्सों और दूसरे जिलों से भी यहां बड़ी संख्या में लोग मौके पर रेस्क्यू ऑपरेशन देखने पहुंचे। बिहार और पश्चिम बंगाल के कुछ परिवार भी पहुंचे और बचाव अभियान समाप्त होने तक तलहटी के पास डेरा डाला। 1500 फीट की ऊंचाई से 30 घंटे बाद सकुशल और सुरक्षित निकाले गए पर्यटकों ने रुंधे गले से तबाही का खौफनाक-दर्दनाक मंजर बयान किया। बताया कि रात गहराते ही कैसे उन्होंने जिंदा रहने की आस छोड़ दी थी। प्यास बुझाने के लिए अपना मूत्र तक पीने की तैयारी थी।

भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्थानीय लोगों ने बचाव अभियान में मदद का हाथ बढ़ाया। हालांकि हम संकट की स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित और संसाधनों से सुसज्जित हैं, लेकिन कई बार भौगोलिक स्थलाकृति का ज्ञान और आपातकालीन स्थिति को संभालने में स्वदेशी तरीके अधिक प्रभावी होते हैं। उन्होंने स्थानीय युवाओं के एक समूह की ओर इशारा करते हुए कहा, जिन्होंने बचाव दल की सहायता करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

जबकि दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड द्वारा बचाव दल के रूप में कार्यरत एक स्थानीय पन्नालाल ने लटकती केबल कारों से 11 लोगों को निकालने में मदद की। उन्हें एक अन्य ग्रामीण पप्पू सिंह ने सहायता प्रदान की, जो शुरुआत में सिर्फ एक दर्शक के रूप में वहां पहुंचे थे। पन्नालाल को बुधवार को देवघर डीसी मंजू नाथ भजंत्री द्वारा एक लाख रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कुछ अन्य स्थानीय लोगों ने बचाव अभियान में लगे लोगों या तलहटी में बेसब्री से अपने प्रियजनों के लौटने का इंतजार कर रहे लोगों के परिवार के सदस्यों के लिए भोजन, पानी और चाय की व्यवस्था की।

हालांकि, कुछ ही ऐसे थे जो उत्सुकता से या राज्य के सबसे बड़े बचाव अभियान को देखने के लिए कार्यक्रम स्थल पर आए थे। बिहार के सीतामढ़ी की शोभा गुप्ता परिवार के सदस्यों और बच्चों और कुछ दोस्तों के साथ एक कार में बचाव कार्यों को देखने के लिए त्रिकूट हिल आई थीं। बताया कि हमने पिछले साल इस रोपवे का दौरा किया था। जब हमने मोबाइल पर वीडियो क्लिप देखी, तो हम वास्तव में खुद देखना चाहते थे कि त्रासदी कैसे हुई।

पश्चिम बंगाल से एक और परिवार देवघर पहुंचा और उसके बाद पहाड़ी तक पहुंचने के लिए एक ऑटोरिक्शा किराए पर लिया। तीन स्थानों पर सामूहिक भीड़ थी। त्रिकुट पहाड़ी की तलहटी जहां 2000-3000 लोग बचाव कार्यों के दौरान लगातार बने रहे, अस्थायी हेलीपैड जहां पीड़ितों को बचाव हेलिकॉप्टर ला रहे थे और उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस खड़ी की गई थी और कुछ और लोग सदर अस्पताल में डटे रहे। हालांकि देवघर पुलिस को पूरे राहत-बचाव अभियान को बाधित करने से दर्शकों को दूर रखने के लिए काफी मशक्कत करना पड़ा।

एनडीआरएफ के एक अधिकारी ने हेलीपैड से अस्पताल तक के रास्ते को भीड़ से मुक्त रखने के लिए स्थानीय पुलिस का सहयोग मांगा, जबकि एक अन्य समूह को भीड़ नियंत्रण के लिए तलहटी में तैनात किया गया था। रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो-साइकियाट्री एंड एलाइड साइंसेज के वरिष्ठ सलाहकार मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने कहा कि इस हादसे को डार्क टूरिज्म नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह नजारा भयावह नहीं था।

उन्होंने कहा कि कोई खून या क्षत-विक्षत शव नहीं था। इसके बजाय लोग कमांडरों और उनके बचाव दल द्वारा एक वीरतापूर्ण कार्य के सकारात्मक पहलू को देखने के लिए यहां एकत्र हुए। सिन्हा ने कहा कि बचाए गए लोगों को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) का अनुभव हो सकता है और उन्हें मनोरोग परामर्श की पेशकश की जानी चाहिए। उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहत और बचाव कार्य में लगे भारतीय सेना के जवानों के साथ लंबी बातचीत कर पूरे मामले को गंभीरता से समझा और खुले मन से राहत बचाव दल की प्रशंसा की।

 

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