रिश्तों और रणनीति के भी कुशल शिल्पकार थे बाबू कुंवर सिंह: गणेश दत्त पाठक
सीवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर विजयोत्सव के संदर्भ में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महान राष्ट्रीय नायक बाबू कुंवर सिंह को श्रद्धासुमन किया गया अर्पित
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
1857 की लड़ाई के महानायक बाबू कुंवर सिंह सिर्फ एक कुशल योद्धा ही नहीं थे अपितु रिश्तों और रणनीति के महान शिल्पकार थे। सीमित संसाधनों के बूते तत्कालीन बेहद शक्तिशाली ब्रिटिश हुकूमत के लिए बड़ी चुनौती पेश करने वाले बाबू कुंवर सिंह के व्यक्तित्व का उदार स्वरूप और सामाजिक समरसता और सौहार्द का कलेवर उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
‘सबको साथ जोड़ो तो जीत सुनिश्चित है’ यह उनका महान विजय सूत्र था। जो भारतीय संस्कृति का आधार वाक्य भी है। साथ ही, राष्ट्र की जीवंतता के संदर्भ में सामाजिक समरसता और सौहार्द एक अनिवार्य तथ्य भी है। बाबू कुंवर सिंह ने ताजिंदगी अपने को अभिजात्य मनोवृति से दूर रखा तथा जनसामान्य के साथ रिश्तों को अपने उदार स्वभाव से सींचते रहे।
जो बुजुर्ग होने पर भी उनकी अनंत ऊर्जा का आधार रहा। जिसके बल पर 80 साल की उम्र में ब्रिटिश हुकूमत को नाको चने चबवा दिया। ये बातें शनिवार को विजयोत्सव के संदर्भ में सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर बाबू कुंवर सिंह को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर संस्थान से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले मोहन यादव, रागिनी कुमारी, मीरा कुमारी, आकाश कुमार आदि अभ्यर्थी तथा संस्थान के स्टॉफ सदस्य मौजूद थे।
इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बाबू कुंवर सिंह का व्यक्तित्व विलक्षण प्रतिभा से संपन्न था। रिश्तों को सहेजने और रणनीति को बुनने में माहिर बाबू कुंवर सिंह ने जनता के साथ सदैव उदार व्यवहार किया। जो उनकी लोकप्रियता का मजबूत आधार था। अभिजात्य वर्ग से होने के बावजूद बाबू कुंवर सिंह के व्यक्तित्व में समानता और बंधुता की भावना का समावेश, उन्हें विशेष ऐतिहासिक व्यक्तित्व के तौर पर सुप्रतिष्ठित कर जाता है।
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