बाहुबली मो.शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन का 13 साल बाहर व 18 साल जेल में गुजरा।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सीवान के पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन की कोरोना से हुई मौत की सूचना मिलते ही समर्थकों में शोक की लहर दौड़ गई। निधन की जानकारी मिलते ही सभी अपने अपने स्तर से खबर की सच्चाई जानने में जुट गए, अंत में मौत की पुष्टि हो गई। शहाबुद्दीन का जन्म सिवान के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में 10 मई 1967 को हुआ था। शहाबुद्दीन कॉलेज के दिनों से ही चर्चा में रहे। राजद के पूर्व सांसद बाहुबली शहाबुद्दीन पर 21 साल की उम्र 1986 में पहला मामला दर्ज हुआ था। शहाबुद्दीन पर उम्र से भी ज्यादा 56 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से आधा दर्जन में उन्हें सजा हो चुकी थी। भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण व हत्या के मामले में वह आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे।
बताया जाता है कि 16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि-विवाद के निपटारे को लेकर पंचायत के दौरान मारपीट हो गई थी। इस दौरान किसी ने सिवान के गौशाला रोड के निवासी व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के घर में रखा तेजाब फेंक दिया। यह मामला शहाबुद्दीन तक पहुंच गया। उसी दिन चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश, सतीश व राजीव रोशन का अपहरण कर लिया गया। दो भाइयों गिरीश कुमार व सतीश कुमार का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। शवों को टुकड़ों में काटकर बोरियों में भर ठिकाने लगा दिया गया था। आरोप है कि दोनों की प्रतापपुर ले जाकर तेजाब से नहलाकर हत्या की गई।
इस कांड के चश्मदीद गवाह राजीव रौशन की भी 16 जून 14 को डीएवी मोड़ पर गोली मारकर जान ले ली गई थी। तीनों बेटे की मां व व्यवसायी चन्दकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू की पत्नी कलावती देवी ने मुफस्सिल थाने में एफआइआर दर्ज कराई थी। उस समय एफआइआर में दो आरोपित व पांच अज्ञात थे। हालांकि इन अभियुक्तों का अलग मुकदमा चल रहा है। 2009 में सीवान के तत्कालीन एसपी अमित कुमार जैन के निर्देश पर केस के आइओ ने शहाबुद्दीन, असलम, आरिफ व राज कुमार साह को अप्राथमिकी अभियुक्त बनाया था।
कई चर्चित कांडों में आया था नाम
शहाबुद्दीन का नाम जितनी तेजी से राजनीति में आया उतनी ही तेजी से अपराध के क्षेत्र में भी चर्चित हुआ। शहाबुद्दीन की छवि ऐसी बनी कि लोग सरेराह नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझते थे। शहाबुद्दीन के समर्थक साहेब के नाम से उन्हें बुलाते थे। बता दें कि एक समय ऐसा था कि चुनाव लड़ने के दौरान शहर में शहाबुद्दीन की पार्टी को छोड़ किसी दूसरी पार्टी का बैनर या पोस्टर जिले में नहीं लगता था।
1990 में पहली बार जीते थे चुनाव
जिले के जिरादेई विधानसभा से शहाबुद्दीन ने पहली बार जनता दल के टिकट पर चुनाव जीता था और विधानसभा पहुंचे थे। उस समय शहाबुद्दीन सबसे कम उम्र के जनप्रतिनिधि थे। दोबारा उसी सीट से 1995 में चुनाव में जीत दर्ज की। 1996 में वह पहली बार सिवान से लोकसभा के लिए चुने गए। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाए जाने की बात चर्चा में ही आई थी कि मीडिया में शहाबुद्दीन के आपराधिक रिकॉर्ड की खबरें छपीं। इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का मामला पीछे रह गया।
डीएम और एसपी ने ठाना, खत्म करेंगे शहाबुद्दीन का खौफ
तेजाब कांड की वारदात के बाद सिवान के तत्कालीन डीएम सीके अनिल और एसपी एस रत्न संजय कटियार ने ठान लिया कि वह शहाबुद्दीन के खौफ को खत्म कर देंगे। दोनों अफसरों ने मिलकर पूरी प्लानिंग की और भारी पुलिस बल के साथ शहाबुद्दीन के प्रतापपुर वाले घर की घेराबंदी कर दी। शहाबुद्दीन के समर्थक भी पहले से ही तैयार बैठे थे। उन्होंने पुलिस बल पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। हालांकि पुलिस बल भी पूरी तैयारी के साथ गई थी और जबरदस्त तरीके से पलटवार किया।
शहाबुद्दीन के घर से मिले थे पाकिस्तानी हथियार
पुलिस का दावा है कि गोलीबारी थमने के बाद पुलिस जब शहाबुद्दीन के प्रतापपुर वाले घर के अंदर दाखिल हुई तो उसके होश उड़ गए। शहाबुद्दीन के घर में भारी मात्रा में पाकिस्तानी हथियार बरामद हुए थे। घर से पाकिस्तानी आर्डिनेंस कंपनी की मुहर लगी एके-47 राइफल भी बरामद हुई थी। कई ऐसे हथियार मिले जिसे केवल पाकिस्तानी सेना प्रयोग करती है। छापेमारी में इस बाहुबली नेता के घर से बहुमूल्य जेवरात और नकदी के अलावा जंगली जानवर जैसे शेर और हिरण की खाल भी बरामद हुई थी।
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