बांग्लादेश का तख्तापलट भारत के लिए अच्छी खबर नहीं,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में जान-माल और लोकतंत्र को भारी नुकसान के बाद आखिरकार शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हो ही गया। देश की कमान अब सेना के पास है और उसने अंतरिम सरकार का गठन करवाने की बात कही है। शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के लिए बांग्लादेश में जिस तरह का अभियान चलाया गया उसने दूसरे इस्लामिक देशों के सत्ताधारियों की नींद उड़ा दी है।
शेख हसीना का सत्ता से बाहर होना कट्टरपंथियों की बहुत बड़ी जीत है। यह जीत दर्शाती है कि दुनिया भर में हावी होते इस्लामिक कट्टरपंथी अब भारत के बगल में भी प्रभावी हो रहे हैं। दुनिया में कई इस्लामिक देश उदारवादी माने जाते हैं अब उन्हें यह खतरा सता रहा है कि यदि कट्टरपंथी उनके यहां भी हावी हुए तो वर्तमान सत्ताधारियों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाकर उन्हें शासन से बाहर किया जा सकता है।
जहां तक शेख हसीना की बात है तो उनके शासनकाल में पहली बार देश में हालात इस कदर बेकाबू हुए कि उन्हें इस्तीफा देकर अपना देश छोड़कर ही भागना पड़ा। शेख हसीना के खिलाफ इस समय नाराजगी भले चरम पर पहुँच चुकी थी लेकिन जब वह 2009 का आम चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनी थीं तब उनकी लोकप्रियता देखने लायक थी। 2009 के बांग्लादेश चुनाव के नतीजों से सबसे बड़ा झटका शेख हसीना की मुख्य प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया को नहीं बल्कि कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को लगा था।
जमात-ए-इस्लामी वही संगठन है जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान का पक्ष लिया था। खालिदा जिया की सरकार के दौरान आतंकवादी संगठन बांग्लादेश में खूब फले-फूले थे और कट्टरपंथियों का वहां बोलबाला हुआ करता था। जमात-ए-इस्लामी के भी उस समय 20 सांसद हुआ करते थे। यही नहीं, खालिदा जिया के जमाने में आतंकी तत्व बांग्लादेश की धरती का उपयोग भारत के खिलाफ गतिविधियां चलाने में किया करते थे। उस समय उल्फा तथा कई अन्य उग्रवादी संगठनों के ठिकाने बांग्लादेश में हुआ करते थे। इस संबंध में जब भी भारत सरकार ने तत्कालीन बांग्लादेश सरकार को कार्रवाई के लिए कहा तब-तब खालिदा जिया की सरकार कह देती थी कि भारत की ओर से दी जा रही सूचनाएं गलत हैं।
खालिदा जिया ने सत्ता से हटने के बाद काफी प्रयास किया कि वह दोबारा सरकार में लौट सकें लेकिन जनता ने उन्हें हमेशा खारिज किया। खालिदा जिया धीरे-धीरे मुख्यधारा की राजनीति से दूर हो गयीं जिससे ऐसे उत्पाती और आतंकी तत्वों के लिए अस्तित्व बचाने का सवाल खड़ा हो गया जोकि खालिदा जिया के शासन की छत्रछाया में पनपते थे।
इन तत्वों ने सरकार के विरोध में योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाया और छात्रों को आगे कर वह अपना उद्देश्य हासिल करने में सफल रहे। बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है वह वहां के लिए तो घातक है ही साथ ही भारत के लिए भी यह मुश्किल बढ़ने वाली बात है। भारत ने हालांकि बांग्लादेश सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी है लेकिन अब देश को चीन और पाकिस्तान की सीमा के अलावा बांग्लादेश सीमा पर भी काफी सावधानी बरतनी होगी। ढाका में दिल्ली समर्थक सरकार का नहीं रहना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है।
हम आपको बता दें कि 2009 में शेख हसीना सरकार के आने के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंधों में प्रगाढ़ता आई थी। इससे पहले जब शेख हसीना 1996 से 2001 के बीच सत्ता में थीं तब भी भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहतर रहे थे। शेख हसीना ने बांग्लादेश की कमान संभालने के बाद कट्टरपंथियों पर लगाम लगाई थी और भारत विरोधी गतिविधियां संचालित कर रहे संगठनों पर भी अंकुश लगाया था।
यही नहीं, शेख हसीना बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं को भी अक्सर सुरक्षा का पूरा भरोसा दिलाती रहती थीं और उनके धार्मिक आयोजनों में भी शामिल होती थीं। शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद हिंदुओं पर हमले बढ़ने और हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुँचाये जाने की आशंकाएं बलवती हो रही हैं। पहले भी वहां हिंदुओं पर वीभत्स हमले होते रहे हैं ऐसे में अब उनके लिए खतरा और बढ़ गया है।
वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि शेख हसीना ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को भी संकटों से उबारा था लेकिन यह भी तथ्य है कि हाल के वर्षों में खासकर महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी। बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई के चलते शेख हसीना के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही थी। देखा जाये तो बांग्लादेश में मौजूदा अशांति का कारण सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरियों की संख्या नहीं बढ़ना भी है।
उस पर से बांग्लादेश सरकार के हालिया आरक्षण संबंधी फैसले से छात्रों में नाराजगी बढ़ गयी थी। इसके अलावा, बांग्लादेश के कपड़ा कारखाने पूरी दुनिया में मशहूर हैं लेकिन अब यह क्षेत्र सिकुड़ रहा है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है। साथ ही बांग्लादेश में महंगाई के 10 प्रतिशत के आसपास बने रहने, बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार के सिकुड़ते जाने और देश पर विदेशी कर्ज बढ़ते जाने जैसे कई अन्य कारक भी रहे जोकि शेख हसीना सरकार के खिलाफ आम जनता की नाराजगी बढ़ा रहे थे।
उस पर से जब शेख हसीना ने यह कह दिया कि आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोग छात्र नहीं बल्कि इस्लामिक पार्टी, जमात-ए-इस्लामी और मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के लोग थे तो छात्रों का गुस्सा और भड़क गया। इसके बाद शेख हसीना ने और कड़ा रुख अपनाते हुए कह दिया कि जो लोग हिंसा कर रहे हैं वे छात्र नहीं बल्कि आतंकवादी हैं जो देश को अस्थिर करना चाहते हैं इसलिए सरकार उनके साथ सख्ती से निबटेगी। उनके इस बयान के बाद तो आंदोलनरत छात्रों ने आर पार की लड़ाई का मन बना लिया और आखिरकार वह अपने उद्देश्य को हासिल करने में सफल रहे।
बांग्लादेश से जो दृश्य सामने आ रहे हैं वह दर्शा रहे हैं कि प्रदर्शनकारियों का मकसद सिर्फ सत्ता बदलना नहीं था। बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के आवास और अन्य महत्वपूर्ण इमारतों में घुसकर प्रदर्शनकारियों ने जो हरकतें की हैं वह दर्शा रही हैं कि अब देश अराजकतावादियों के हाथ में चला गया है। बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के आवास में जिस तरह मस्ती करते या संपत्ति को नुकसान पहुँचाते युवकों का वीडियो सामने आया है उसने श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में घुसे प्रदर्शनकारियों और अफगानिस्तान में तख्तापलट के दौरान सरकारी इमारतों में घुसते तालिबानियों की याद दिला दी है। बांग्लादेश में प्रदर्शनकारियों को समझना होगा कि मूर्तियों को तोड़ने, सरकारी इमारतों को नुकसान पहुँचाने और किसी देश के विरोध में अभियान चलाने से देश की अर्थव्यवस्था सुधर नहीं जायेगी।
बांग्लादेश में लोकतंत्र के नहीं रहने का सबसे बड़ा खामियाजा यह होगा कि विदेश कर्ज हासिल करने के जो प्रयास किये जा रहे थे, या बांग्लादेश में जो निवेश आने वाला था, अब वह बाधित हो जायेगा। बांग्लादेश में लोकतंत्र के नहीं रहने का खामियाजा यह होगा कि विदेशी सरकारें उसकी मदद करने से कतराएंगी। दुनिया का कोई भी लोकतांत्रिक देश दूसरे देश की सरकार से ही बातचीत करने या कोई करार करने को वरीयता देता है। सैन्य नियंत्रण वाले देशों से लोकतांत्रिक देश अक्सर दूरी बनाये रखते हैं।
बहरहाल, बांग्लादेश की सेना और राष्ट्रपति को चाहिए कि जल्द से जल्द अंतरिम सरकार का गठन किया जाये और संभव हो तो नये चुनाव कराये जाएं। यह सर्वविदित है कि हिंसा किसी मसले का हल नहीं है, लूटपाट और उत्पात से देश को नुकसान ही होगा और पिछले वर्षों में आगे बढ़ने के लिए जो मेहनत की गयी थी उस पर भी पानी फिर जायेगा। इसलिए समय की आवश्यकता है कि बांग्लादेश एकजुट होकर इस मुश्किल घड़ी से बाहर निकले।
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