बांग्लादेशी पीएम ने दिया बंग बंधु का नारा,200 साल पुराना है ब्रिगेड का इतिहास.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कभी बंगाल के तत्कालीन सीएम ज्योति बसु ने अटल बिहारी वाजपेयी से मिलाया हाथ तो कभी बांग्लादेश के प्रधानमंत्री ने बंग बंधु का नारा लगाया। ब्रिटिश हुकूमत की परेड से बोफोर्स के बिगुल तक, ममता के बदलाव के दावे और मोदी के परिवर्तन की पुकार। बंगाल का मशहूर मैदान जिसने अपने हर कोने में इतिहास को संजोया हुआ है। जहां कि हर हुंकार-पुकार सियासत में घर कर जाती है तो नेताओं में सत्ता का ख़्वाब भी जगाती है। चुनावी मंच परिवर्तन की पुकार और ममता सरकार पर सबसे तीखा प्रहार। प्रहार उस नारे पर जिसके दम पर ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटी हैं। पीएम मोदी ने बंग भूमि से बदलाव का बिगुल फूंका तो खेला होबे वाले नारे को ही दीदी के खिलाफ हमले का सबसे धारदार हथियार बना डाला। कोलकाता के बिग्रेड ग्राउंड में मोदी के निशाने पर ममता बनर्जी ही रही।

कोलकाता के परेड ग्राउंड से जो सियासी गूंज उठी उसका असर पूरे बंगाल चुनाव के दौरान दिखना तय है। राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि बिग्रेड मैदान जिसका बंगाल भी उसका। करीब 1 हजार एकड़ का दायरा और तीन किलोमीटर की लंबाई। कोलकाता का दिल माने जाने वाला ब्रिगेड परेड ग्राउंड जिसे यहां के लोग मैदान कहकर पुकारते हैं। कहा जाता है कि जब अंग्रेज फोर्ट विलियम महल बना रहे थे तो उस वक्त ये पूरा घना जंगल हुआ करता था। अंग्रेजों ने इस जंगल को काटकर बिग्रेड मैदान को बनाया। ऐसे में आज आपको इस ऐतिहासिक मैदान के बनने की कहानी और सत्ता के लिए बिग्रेड की सियासी परेड से भी रूबरू करवाते हैं।

इस मैदान को अंग्रेजों ने प्लासी की जीत के बाद अपने परेड के लिए बनाया था। 1757 में अंग्रेजों ने प्लासी का युद्ध जीता था इसके बाद कोलकाता में फोर्ट विलियम महल बनाया गया जो कि इंग्लैंड के तीसरे किंग “किंग विलियम” के नाम पर था। फोर्ट विलियम महल में अंग्रेजी फौज रहा करती थी। परेड के लिए महल के सामने एक मैदान बनाया गया। जिसका नाम ब्रिगेड परेड ग्रांउड रखा गया था।

ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 1919 में पहली राजनीतिक रैली

ये मैदान इतिहास के कई सभाओँ का भी गवाह रहा है। साल 1919 में देशबंधु चितरंजनदास ने ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून रॉलेट एक्ट के खिलाफ इसी मैदान में रैली की थी। ऑक्टरलोनी स्मारक के पास इन क्रांतिवीरों ने बैठक की। ऑक्टरलोनी स्मारक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी के याद में बनवाया गया था। ऑक्टोरलोनी ने 1804 में हुए एंग्लो-नेपाली युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया था। अब इस स्मारक को शहीद मीनार कहा जाता है। इसके साथ ही साल 1955 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के साथ इसी मैदान पर रैली की थी। 29 जनवरी 1955 को इस मैदान पर सोवियत प्रीमियर निकोल एलेक्जेंड्रोविच और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव खुश्चेव का स्वागत हुआ।

बांग्लादेश की आजादी का जश्न 

बांग्लादेश बनने के बाद साल 1972 में इंदिरा गांधी ने भी यहां रैली की थी। जिसमें करीब दस लाख लोग जुटे थे। इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री मुजीब-उर-रहमान के साथ इसी मैदान पर विशाल जनसभा को संबोधित किया था। जहां मुजीबुर रहमान ने बंग-बंधु का नारा दिया था। इसी मैदान पर जय भारत जय बांग्ला का नारा भी दिया गया। यूं तो इस मैदान का राजनीतिक इस्तेमाल आजादी की लड़ाई के दौर में ही शुरू हो गया था मगर इसकी राजनीतिक अहमियत सबसे पहले वामपंथी दलों ने पहचानी। एनटी रामाराव, रामकृष्ण हेगड़े, ज्योति बसु, फारुक अब्दुल्ला और चंद्रशेखर जैसे बड़े नेताओं ने 1984 में केंद्र सरकार के खिलाफ इसी मैदान पर अपना शक्ति प्रदर्शन किया था।

बोफोर्स तोप घोटाले को लेकर विपक्ष की रैली 

वीपी सिंह सरकार ने भ्रष्टाचार बोफोर्स तोप दलाली का मुद्दा उठाते हुए राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दे दिया। शहीद मीनार के पास विपक्षी नेताओं ने एक सभा की। वह रैली राजनीतिक समभाव की मिसाल थी क्योंकि सत्ता के खिलाफ विरोधी विचारधाराओं का मेल हो रहा था। एक ही मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी, ज्योति बसु, वीपी सिंह, जॉर्ज फर्नांडीज, मधु दंडवते मौजूद थे।

ममता ने दिया बदला नहीं बदलाव का नारा 

25 नवंबर 1992 को ममता बनर्जी की रैली यहां हुई थी जिसके बाद ममता सीपीएम के खिलाफ कांग्रेसी चेहरा बनकर उभरी थीं। ममता ने नारा दिया था बदला नहीं बदलाव चाहिए। कांग्रेस ने ममता को चेहरा बनाया और उसने वाम सरकार को उखाड़ फेंका। लोकसभा चुनाव 2019 के शंखनाद से पहले जनवरी की सर्द दोपहरी को कोलकाता के बिग्रेड मैदान में ममता बनर्जी जब विपक्षी एकता की हुंकार भर रही थीं। तब उनकी नजर दिल्ली की कुर्सी पर गड़ी थी। शरद पवार, एचडी देवेगौड़ा, चंद्रबाबू नायडू सहित एक मंच पर 22 पार्टियों को तब ममता ने जुटा तो लिया था। 2019 में ममता बनर्जी ने इसी मैदान पर केंद्र सरकार के खिलाफ जा रहे विपक्षी पार्टियों को एकट्ठा करके महागठबंधन बनाया था। लेकिन जब चुनाव की बारी आई तो एकला चलो रे की तर्ज पर अकेले ही चुनाव में जाने का फैसला किया।

2019 के वक्त दिखी मैदान की हनक 

बताया जाता है कि ममता ने परेड ग्राउंड की रैली में पीएम मोदी को चुनौती देते हुए कहा था कि अगर उनमें माद्दा है तो वे इस मैदान को भरकर दिखाएं। जिसके बाद इस मैदान की हनक 2019 में देखने को मिली थी जब प्रधानमंत्री मोदी की रैली लोकसभा चुनाव के वक्त इतनी ज्यादा भीड़ जुटी थी कि ममता के समर्थन में आया महागठबंधन भी इतनी भीड़ नहीं जुटा पाया था।

जब अंग्रेजी शासन का अंत हुआ तो किला भारतीय सेना के कब्जे में आ गया। जहां अब पूर्वी कमान का मुख्यालय है और किले के सामने का ब्रिगेड परेड ग्राउंड सरकार की संपत्ति। राजनीतिक जानकारों की माने तो जैसे मुंबई के शिवाजी पार्क और दिल्ली के रामलीला मैदान में कुछ होता है तो वह ऐतिहासिक हो जाता है। उसी तरह इस ग्राउंड का भी अपना महत्व है। देश में बड़े-बड़े मैदानों की पहचान दो ही तरह से की जाती है। पहली खेल के लिए दूसरी तख्त पर बैठे हुक्मरानों को वास्तवकिता के पटल पर लाने के लिए। सिंहासन खाली करो की जनता आती है जैसा नारा देने वाला पटना का गांधी मैदान इसी श्रेणी में आता है। वहीं दिल्ली का रामलीला मैदान जिन्ना से अन्ना तक बदलते इतिहास का गवाह रहा है।

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