घर के अच्छे और जिम्मेदार पुरुष बनें.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
मुझे नहीं पता कि वह हमारे घर कितने साल बच्ची को लेकर काम करने आई। वह शांत बच्ची अकेले खेलती रहती थी। हाथ में खिलौना लिए, लेटे-लेटे छत को निहारती रहती। कभी-कभी खिलौना मुंह में डाल लेती और पंखे को घूमता देखती रहती। एक दिन अचानक वह ‘फैन’ को ‘आन’ बोली और उस दिन उसकी मां बहुत रोई। ये खुशी के आंसू नहीं थे क्योंकि उसकी बेटी ने 11 महीने में पहला शब्द बोला था।
वह दु:खी होकर बोली, ‘ज्यादातर बच्चों का पहला शब्द ‘आई या बाबा’ होता है, मेरी बदकिस्मती देखिए कि बच्ची का पहला शब्द ‘फैन’ है।’ उसकी भावनाएं देखकर हमारी आंखें भी नम हो गईं। उस दिन से हम बच्ची को ‘आई’ शब्द सिखाने का प्रयास करने लगे और अनजाने में ही हमने ‘बाबा’ नहीं सिखाया।
उसकी मां को भी इससे फर्क नहीं पड़ा। तीन हफ्तों में, उसके एक साल के होने से पहले ही हम उससे वह खूबसूरत शब्द बुलवाने में सफल हो गए। यह उसकी मां के लिए जन्मदिन का हमारा तोहफ़ा था और बच्ची के लिए शब्दों के मामलों में रिश्तों का पहला सबक। बच्ची के जन्मदिन पर ‘बाबा’ हमेशा की तरह गायब था।
अगले दिन उसकी मां जलने के जख्मों के साथ आई। पूछने पर पता चला कि मारपीट करने वाले उसके शराबी पति ने वे पैसे छीन लिए, जो हमने बच्ची को दिए थे। मैंने एक पुलिस मित्र की मदद से उसे चेतावनी दी लेकिन उसी शाम उसने बच्ची के सारे नए कपड़े बेचकर बेहिसाब शराब पी। बच्ची के दादा भी शराब के कारण मरे थे।
अपने पहले जन्मदिन से ही उसने प्रताड़ना और भूख देखी थी और इसीलिए वह कभी हमारे घर आकर पालतुओं के साथ खेलना नहीं भूलती थी। उसकी मां कॉलोनी के दूसरे घरों में काम करने चली जाती थी, तब भी वह हमारे घर खेलती रहती। कई बार वह अपनी किताबें मेरी टेबल पर रखकर खाली हाथ घर जाती क्योंकि वह स्कूल जाना चाहती थी पर उसे पिता पर भरोसा नहीं था जिसने एक बार किताबें रद्दी में बेच दी थीं।
धीरे-धीरे हमने उसकी मां को वेतन की जगह किराना दिलाना शुरू किया क्योंकि शराबी पति पैसे छीन लेता था। हमने उस बच्ची की 10 साल ऐसे पिता से सुरक्षा की, जो चाहता था कि पढ़ने की बजाय बच्ची मर जाए। बाद में हमने बच्ची को कोंकण में उसकी नानी के घर भेज दिया और कुछ वित्तीय सहायता भी की। कुछ सालों में सब बंद हो गया। मां ने आना बंद कर दिया, पति गुजर गया. पर उसने हमसे कभी वित्तीय मदद नहीं मांगी और माता-पिता के घर रहने लगी।
कुछ साल पहले एक खूबसूरत युवती अपनी मां के साथ हमारे पास एक अजीब निवेदन लेकर आई। वह चाहती थी कि नाना-नानी ने उसके लिए जो रिश्ता देखा है, हम उसकी जांच कर अनुमति दें। दरअसल उसकी एक ही शर्त थी कि उसके घर में कभी शराब की बदबू नहीं आनी चाहिए।
हमने उसका निवेदन मान लिया। शादी को पांच साल हो गए हैं। उसकी चार वर्षीय बेटी की जिंदगी में अब तक शराब नहीं आई और पिता बच्ची पर जान छिड़कता है। मेरे लिए यह महिला दिवस की सबसे सफल कहानी है- एक घरेलू नौकरानी की बेटी कुछ साल पहले अपनी बच्ची की स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग में शामिल हुई।
फंडा यह है कि अगर आप चाहते हैं कि आपके परिवार की महिलाएं खुशी-खुशी महिला दिवस मनाएं, तो घर के अच्छे और जिम्मेदार पुरुष बनें।