कोलाहल में ओझल बेहतरीन कदम: फिरोज वरुण गांधी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कृषि कानूनों के विरोध में पिछले कुछ समय से जारी चंद किसान संगठनों के विरोध-प्रदर्शन के बीच कई अहम तथ्य कहीं पीछे छूट गए हैं। उन पर गौर करने से वस्तुस्थिति को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। इसी कड़ी में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश केंद्र के हालिया बजट पर भी दृष्टि डाली जाए। उसमें कृषि के लिए 1.23 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसकी तुलना में 2018-19 में यह आवंटन 57,600 करोड़ रुपये था। वह भी पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के 2013-14 के बजट की तुलना में तीन गुना अधिक था। इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गहरे जुनून से प्रेरित सरकार शोर-शराबे से दूर किसानों के उत्थान के लिए मदद का दायरा बढ़ा रही है।
कृषि इनपुट के मोर्चे पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के असर को समझें। यह योजना जुलाई 2015 में शुरू की गई थी। इसका लक्ष्य प्रत्येक खेत को पानी उपलब्ध कराया जाना था। साथ ही पानी के इस्तेमाल की समग्र दक्षता में सुधार करना भी इसका मकसद था। इसके लिए ‘मोर क्रॉप पर ड्रॉपÓ जैसा प्रेरक नारा गढ़ा गया। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय में इसके लिए एक मिशन निदेशालय का गठन किया गया। सिंचाई लाभ कार्यक्रम को जल्दी पूरा करने के लिए 99 से अधिक परियोजनाओं को चिन्हित भी किया गया। परिणामस्वरूप 2019 तक कुल 76 लाख हेक्टेयर भूमि को इससे फायदा मिला। नाबार्ड के दीर्घकालिक सिंचाई कोष के माध्यम से 40,000 करोड़ रुपये की मदद उपलब्ध कराई गई।
इसके अलावा इस योजना के तहत माइक्रो-इरिग्रेशनयानी सूक्ष्म सिंचाई पर भी ज्यादा ध्यान दिया गया। इससे सूक्ष्म सिंचाई का क्षेत्र 8.13 लाख हेक्टेयर से बढ़कर करीब 90 लाख हेक्टेयर हो गया। निश्चित रूप से इसका श्रेय सूक्ष्म सिंचाई निधि कोष को जाता है, जिसका बजट हाल में दोगुना कर 5,000 करोड़ रुपये किया गया है। सरकार ने पूरे देश में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी सराहनीय पहल भी की है। इससे किसानों को उनकी उर्वरक इनपुट लागत को कम करने के लिए सालाना प्रति हेक्टेयर औसतन 5,000 रुपये मिले। सरकार जीरो-बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। आंध्र प्रदेश ने 2024 तक 8 लाख हेक्टेयर भूमि पर शत प्रतिशत जीरो-बजट प्राकृतिक खेती की योजना तैयार की है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों का जोखिम कम करने के लिए शुरू की गई है, जिसमें किसान के लिए बहुत कम प्रीमियम भुगतान (फसल के अनुसार तकरीबन 1.5-2 प्रतिशत) तय किया गया है। इसके चलते खरीफ फसल के लिए बीमा कवरेज में 2.72 करोड़ हेक्टेयर से 3.75 करोड़ हेक्टेयर की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। ऐसी ही बढ़ोतरी समग्र बीमा राशि में भी हुई। फसल की अच्छी कीमत दिलाने के लिए मोदी सरकार ने ई-नाम (ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) योजना के माध्यम से कृषि मार्केटिंग में सुधार के लिए बुनियादी ढांचा तैयार किया। इसके जरिये खरीदार देश की किसी भी मंडी से कोई भी कृषि-उपज खरीद सकते हैं।
साल 2020 की शुरुआत तक 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों की तकरीबन एक हजार कृषि मंडियों को ई-नाम नेटवर्क से जोड़ा जा चुका था। इस साल हजार से ज्यादा और मंडियों को ई-नाम से जोड़ा जाना है। दूसरी तरफ, अब एपीएमसी या कृषि मंडी अपने बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड से भी मदद हासिल कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण बुनियादी ढांचा फंड के लिए आवंटन 30,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। पिछले बजट में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत ‘किसान रेलÓ की शुरुआत भी ऐसा ही एक कदम है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। यह कृषि उपज के लिए कोल्ड चेन बनाने में बहुत मददगार होगी।
किसानों को बाजार की प्रतिस्पर्धा का सामना करने में समर्थ बनाने के लिए सरकार अगले पांच वर्षों में 10,000 से ज्यादा नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने पर जोर दे रही है। ऐसे संगठनों को सरकार का समर्थन उन्हें बाजार में बेहतर शर्तों पर मोलभाव की क्षमता प्रदान करेगा, जबकि फाइनेंसिंग उन्हें बाजार की अनिश्चितताओं से निपटने में मदद करेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए कई कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए, सरकार ने 2019-20 में खरीफ और रबी फसलों के लिए एमएसपी बढ़ाया ताकि इन फसलों के लिए राष्ट्र स्तर पर आकलित औसत उत्पादन लागत का तकरीबन 1.5 गुने के स्तर पर पहुंच सके। इसमें गेहूं का ही मामला ले लें,
जिसकी एमएसपी 85 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाई गई, जिससे कुल रिटर्न 109 प्रतिशत हो गया। प्रतिशत के लिहाज से ही किसान को पिछले वर्ष की एमएसपी में 4.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी मिली। इस आमदनी में इजाफे के लिए सरकार ने 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना शुरू की। इसमें छोटे एवं सीमांत किसानों को 6,000 रुपये सालाना की मदद दी जाती है। इस योजना में अब देश के सभी किसानों को शामिल कर लिया गया है। वर्ष 2021 में तकरीबन 14 करोड़ किसान परिवारों के लिए 65,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। इसके अलावा मोदी सरकार ने दूसरे उपायों जैसे कि डेयरी के जरिये किसानों की आमदनी बढ़ाने वाली पहल की है। वर्ष 2025 तक मिल्क प्रोसेसिंग क्षमता 5.35 करोड़ टन से बढ़ाकर 10.8 करोड़ टन करने का लक्ष्य रखा गया है। ऑपरेशन फ्लड (डेयरी विकास कार्यक्रम) की ही तरह ऑपरेशन ग्रीन्स (आलू, प्याज और टमाटर का समन्वित उत्पादन कार्यक्रम) की शुरुआत गेहूं और धान से इतर फसलों की खेती को बढ़ावा देकर देश में कृषि फसलों का संतुलन कायम करने में दूरगामी असर वाली होगी।
नए कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शनों पर बहुत अखबारी स्याही खर्च की गई है, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों की मदद के लिए जो काम किया है, शायद ही उस पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। काम के इतने व्यापक दायरे को देखते हुए इस विषय पर किसी भी सरकार की आलोचना करना बहुत आसान है। हालांकि विचारशील लोगों को उन बेहतरीन सुधारों और कदमों पर गौर करना चाहिए, जो सरकार भारत के कृषि क्षेत्र को पटरी पर लाने के लिए कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह सरकार गरीब किसानों की जरूरतों से परिचित है और यह सुनिश्चित करने की गहराई से कोशिश कर रही है कि अगले दशक तक उनकी आमदनी बढ़ जाए।