अखंड भारत के क्रांतिकारी अग्रदूत थे भगत सिंह!

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सर्वश्रेष्ठ बलिदानी भगत सिंह की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन

सर्वश्रेष्ठ बलिदानी भगत सिंह की जयंती पर विशेष आलेख

श्रीनारद मीडिया, गणेश दत्त पाठक, सेंट्रल डेस्‍क:
(विचार मंथन में सहयोग के लिए श्री पुष्पेंद्र पाठक का आत्मीय आभार)

अखंड भारत की संकल्पना के संदर्भ में हमारे दो महान स्वतंत्रता सेनानियों का विशेष तौर पर उल्लेख आता है। जिसमें सबसे पहला उल्लेख आता है 1943 में अखंड भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने सुभाष चंद्र बोस का, जिन्हें कुछ तत्कालीन राष्ट्रों ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी और दूसरा नाम सर्वश्रेष्ठ बलिदानी भगत सिंह का आता है, जिन्हें अखंड भारत का प्रथम लोकतांत्रिक सेनानायक मानना ही ज्यादा उचित लगता है। अमर क्रांतिकारी भगत सिंह उस उम्र में राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, जिस उम्र में आज के युवा अपनी जिंदगी का ध्येय भी स्पष्ट नहीं कर पाते। उस महज 29 साल के उम्र में भगत सिंह ने राष्ट्र को जिंदगी का ध्येय बना लिया। यहीं वह तथ्य है, जो आज के नकली आतंकवाद के दौर में देश के युवाओं के लिए बड़ी सीख बन जाती है। राष्ट्र के प्रति साहस के साथ सेवा और समर्पण का पाठ अमर क्रांतिकारी भगत सिंह जो पढ़ा गए, वह भारत की युवा पीढ़ी के लिए एक बड़ा संदेश ही है।

हिंसा के हिमायती तो कभी नहीं रहे

अमर क्रांतिकारी भगत सिंह ने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया । वे सिर्फ अपनी आवाज को ब्रिटिश हुकूमत तक पहुंचाना चाहते थे। इसलिए लोकतंत्र के मंदिर में उन्होंने बम जरूर फेंका लेकिन उसका उद्देश्य किसी की हत्या करना कभी नहीं रहा। वे बम फेंकने के बाद आसानी से भाग भी सकते थे लेकिन उन्होंने मोहनदास करम चंद गांधी जी के सिद्धांत सत्य के परिपालन में ब्रिटिश हुकूमत के समक्ष स्वयं को प्रस्तुत भी कर दिया, जो उनके साहस और दिलेरी के प्रतीक होने के साथ भारतीय लोकतांत्रिक व्यवहार का परिचायक तथ्य भी था।

भारत की समेकित संस्कृति के प्रति रहा विशेष अनुराग

अमर क्रांतिकारी भगत सिंह भारत की साझा संस्कृति के मूल्यों से ओत प्रोत भी दिखते हैं। वैदिक ऋचाओं के संकलन स्थल लाहौर में बीते उनके जीवन के कुछ अंश उनके विशुद्ध भारतीय सांस्कृतिक कलेवर को भी स्पष्ट करते दिखते हैं। निश्चित तौर पर आज भी लाहौर की गलियां अपने दिलेर रणबांकुरे की याद में रोती होंगी! भगत सिंह के व्यवहार और विचार में सदैव भारत की समेकित संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग दिखाई पड़ता है। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और चंद्रशेखर आजाद उस क्रांतिकारी विचारधारा के प्रतीक थे, जिन्हें लाल बाल पाल यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के विचारों ने प्रभावित किया। ये सभी अमर क्रांतिकारी भारतीय राष्ट्र के प्रति पूरी तरह समर्पित रहे और अवसर मिलने पर राष्ट्र के लिए प्राणों की आहुति देने में कभी पीछे नहीं रहे।

वास्तविक आजादी के रहे प्रबल पैरोकार

सर्वश्रेष्ठ बलिदानी भगत सिंह सदैव भारत की वास्तविक आजादी के प्रबल पैरोकार रहे। वास्तविक आजादी से उनका आशय भारत में सामाजिक न्याय की संकल्पना के पूरी तरह कायम होने से था। सामाजिक कुरुतियों और दुराग्रह के प्रति वे मुखर रहते थे तो तत्कालीन भारतीय समाज में मौजूद अस्पृश्यता की अवधारणा उन्हें बिल्कुल नहीं भाती थी। वे समाज में समरसता के आकांक्षी थे।

सत्य की रक्षा के लिए दी प्राणों की आहुति

सर्वश्रेष्ठ बलिदानी ने कभी हिंसा को जायज नहीं ठहराया। हमेशा लोकतांत्रिक व्यवहार का परिचय दिया। एक युवा के तौर पर राष्ट्र की आराधना के लिए, सत्य का साथ देने के लिए और भारतीय समेकित संस्कृति के मूल्यों की रक्षा के लिए बेहद कम उम्र में प्राणों की आहुति देने को तैयार हो गए फिर भी आश्चर्य इस बात पर जरूर होता है कि मोहन दास करमचंद गांधी जी और अन्य राष्ट्रीय नेताओं द्वारा गोलमेज सम्मेलन के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड इरविन से इस युवा क्रांतिकारी के जीवन को बचाने के लिए सार्थक प्रयास क्यों नहीं किए गए? यह बड़ा सवाल भारतीय इतिहास पढ़नेवाले हर व्यक्ति के मन में सदियों तक जरूर उठता रहेगा।

सामाजिक न्याय के प्रति विशेष अनुराग ने बढ़ाई लोकप्रियता

अमर क्रांतिकारी भगत सिंह के विचार समानता, समावेशन, सांस्कृतिक समरसता और सामाजिक न्याय से जुड़े होने के कारण ही उनकी तत्कालीन दौर में बड़ी लोकप्रियता का कारण भी था। आज भी भगत सिंह का साहस और राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव युवाओं को प्रेरित करता रहता है। भगत सिंह का जीवन उन नकली आतंकवादी ताकतों के लिए भी संदेश है जो देश में मासूम और निर्दोष लोगों की हत्या करते फिरते रहते हैं।

फ्रांसीसी क्रांति के मूल तत्वों स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के प्रति रही उनकी विशेष श्रद्धा

अंत में यहीं कहा जा सकता है कि जिस तरह फ्रांस की राज्य क्रांति में तीन तत्व समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व ने तत्कालीन फ्रांसीसी लोगों में राष्ट्रीय चेतना को उभारा था उसी तरह इन्हीं तीन बिंदुओं पर भगत सिंह ने भी विशेष जोर दिया था। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की आकांक्षा रखने वाला यह अमर क्रांतिकारी अपने साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ ब्रिटिश हुकूमत तले फांसी के फंदों पर झूल कर चिर निद्रा में अवश्य सो गया। लेकिन अमर क्रांतिकारी भगत सिंह अखंड भारत के प्रथम क्रांतिकारी अग्रदूत के तौर पर युग युगांतर तक हमारे दिलों में अवश्य रहेंगे।

आपको शत् शत् नमन शहीद ए आज़म! ??

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