फिरंगी दासता के दौर में राष्ट्रीयता, समरसता, आत्मनिर्भरता की त्रिवेणी बहा गए भारतेंदु हरिश्चंद्र: गणेश दत्त पाठक

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पाठक विचार मंच द्वारा महान साहित्यकार, राष्ट्र भक्त भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर परिचर्चा का आयोजन

श्रीनारद मीडिया, गणेश दत पाठक, सेंट्रल डेस्‍क:

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य साधना के साथ राष्ट्रीय चेतना के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय जब भारतीय जनता फिरंगी हुकूमत के उत्पीड़न की शिकार होकर बेहद निराश और दुखी थी तब उन्होंने भारत की दुर्दशा को उजागर कर हर भारतीय की चेतना को जागृत किया, उसे झकझोरा।

अंग्रेजों के सांप्रदायिक विद्वेष के प्रसार के जवाब में सामाजिक समरसता के संदेश का संचार किया। तदीय समाज की स्थापना कर जहां वैष्णव धर्म का प्रचार किया वहीं मुहम्मद साहब की जीवनी का अनुवाद कर इस्लाम से परिचय कराया। निज भाषा के उन्नति की बात कर आत्मनिर्भरता का संदेश भी दिया। इस तरह तत्कालीन परिस्थितियों में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने देश में राष्ट्रीय संचेतना, सामाजिक समरसता और आत्मनिर्भरता की त्रिवेणी बहाई। जिससे उनकी साहित्य साधना राष्ट्र प्रेम की मजबूत आधार बन गई।

आज जबकि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो अपने स्वभाव में सामाजिक समरसता, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय चेतना का समावेश ही भारतेंदु हरिश्चंद्र को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। ये बातें पाठक विचारमंच द्वारा हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर सीवान के अयोध्यापुरी में स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर आयोजित संगोष्ठी में शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कहीं। इस अवसर पर रागिनी कुमारी, मोहन यादव, श्वेता कुमारी, दिव्या सिंह आदि मौजूद रहे।

परिचर्चा को संबोधित करते हुए श्री पाठक ने कहा कि भारतेंदु बाबू के बचपन में ही माता पिता का साया उठ गया। बड़े हुए तो ब्रिटिश हुकूमत से व्यथित, पीड़ित, प्रताड़ित समाज को देखा, भारत की तत्कालीन दुर्दशा ने उन्हें विकल कर दिया। फिर उनकी रचनाओं ने जनता को झकझोरा, निरंकुश शासकों को चेताया। वे सिर्फ साहित्यकार ही नहीं थे राष्ट्रीय चेतना के प्रसार के महान नायक भी थे।

परिचर्चा में श्वेता तिवारी ने कहा कि हिंदी को राष्ट्र भाषा के तौर पर सुदृढ़ करने मे भारतेंदु जी का विशेष योगदान रहा। रागिनी कुमारी ने कहा कि भारतेंदु जी द्वारा संपादित कविवचन सुधा पत्रिका तत्कालीन दौर में राष्ट्रीयता के प्रसार के लिए जानी जाती थी। मोहन यादव ने कहा कि गद्य के क्षेत्र में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने का श्रेय भारतेंदु जी को ही जाता है। परिचर्चा में दिव्या सिंह ने कहा कि राष्ट्र और साहित्य की सेवा जैसे भारतेंदु जी ने की, उसका कोई अन्य उदाहरण मिलना कठिन है।

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