बेबस बेटियों की दमदार आवाज थे भिखारी ठाकुर.

बेबस बेटियों की दमदार आवाज थे भिखारी ठाकुर.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की आज पुण्यतिथि है।

भिखारी ठाकुर ने अपने ‘नाच’ के माध्यम से न सिर्फ़ लोक रंगमंच को मज़बूती प्रदान की बल्कि समाज को भी दिशा देने का काम किया है.

कोख पर स्त्री अधिकार की पैरवी सबसे पहले भिखारी ठाकुर ने की थी

भिखारी ठाकुर ने कई दशक पहले बाल विवाह और मानव तस्करी के खिलाफ नाटक और लोक संगीत के माध्यम से हमला बोला था। ठाकुर को भोजपुरी भाषा और संस्कृति का बड़ा झंडा वाहक माना जाता है।

भिखारी ठाकुर लेखक कवि नाटककार गायक गीतकार भी थे। ‘नाच ह कांच, बात ह सांच, एह में लागे ना आंच’ गीत से मंचीय नृत्य की व्यथा को उजागर किया है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर ने सबसे रामलीला मंडली बनाकर भजन-कीर्तन कर मनोरंजन के साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी लोगों को जगाना शुरू किया तब लोग उन्हें टूट कर चाहने लगे और ग्रामीण महिलाएं उनके गीतों को अपने लोक परंपराओं में ढालने लगीं।

जिस प्रकार पारसी थिएटर एवं नौटंकी मंडलियां देश के अनेक शहरों में जा-जा कर टिकट पर नाटक दिखाया करती थीं उसी प्रकार नाच मंडलियां भी टिकट पर नाच करती थीं. भिखारी ठाकुर ने असम, बंगाल, नेपाल आदि जगहों पर खूब टिकट शो किया. अपने समय में भिखारी ठाकुर नाच विधा के स्टार कलाकार बन गए थे.

आज यानी 10 जुलाई, 2021 को हम सभी भिखारी ठाकुर की 50वीं पुण्यतिथि मना रहे हैं. भिखारी ठाकुर देश के ऐसे कलाकार रहे हैं जिन्होंने अपने ‘लौंडा नाच’ (launda naach) के माध्यम से न सिर्फ़ लोकरंगमंच को मज़बूती प्रदान की बल्कि नाच से समाज को भी दिशा देने का काम किया है.

अंग्रेज़ों ने ‘राय बहादुर’ की उपाधि दी तो साहित्यकारों के बीच ‘भोजपुरी के शेक्सपियर’ और ‘अनगढ़ हीरा’ जैसे नाम से सम्मानित हुए. उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी उनके नाच के सामने कोई सिनेमा देखना तक पसंद नहीं करते थे. उनकी एक झलक पाने के लिए लोग कोसों पैदल चल कर रात-रात भर नाच देखते थे.

अक्सर भिखारी ठाकुर के नाच को ‘बिदेसिया’ (Bidesiya) शैली कहा जाता है. अकादमिक जगत एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ-साथ शहरी रंगकर्मी भी भिखारी ठाकुर की शैली को ‘बिदेसिया’ शैली का नाम देते हैं. इस नामकरण के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि बिदेसिया की प्रसिद्धि की वजह से इस नाम का उपयोग उनके शैली के लिए किया गया है. परंतु ध्यान देने वाली बात यह है जितने भी विद्वान बिदेसिया को एक शैली के रूप में उसके तत्व और प्रस्तुति प्रक्रिया के साथ परिभाषित करते हैं वो सभी तत्व एवं प्रस्तुति प्रक्रिया नाच विधा की है.

भिखारी खुद अपने नाटकों में विरह से ग्रसित महिला का अभिनय करते हुए रो-रो कर उस महिला का हाल सुनाते थे। भिखारी ने अपने नाटकों में महिलाओं की समस्या को खुल कर स्थान दिया। भिखारी अपने नाटकों में उस दौर के स्थानीय सामाजिक समस्याओं पर भी बेखौफ सवाल उठाते थे।

भिखारी ठाकुर से पहले के नाच में मुख्यतः लोककथाओं पर आधारित नाटक या छोटे-छोटे सामाजिक प्रसंग पर नाटक करने का सूत्र मिलता है. परंतु भिखारी ठाकुर ने सामाजिक विषय पर तत्कालीन समय के हिसाब से नाटक रचे. इतना ही नहीं अपनी नाटकों में भोजपुरी समाज में प्रचलित लोक गीत, नृत्य की विधाओं को भी खूब शामिल किया.

नाटकों के चरित्र, समाजी, लबार, सूत्रधार, संगीत, नृत्य, को सुदृढ़ किया. अपनी धुन एवं अपना ताल विकसित की और रच डालें कई नाटक, प्रसंग एवं गीत.

भिखारी ठाकुर के नाटक (Bhikhari Thakur ke Natak)
1. बिदेसिया
2. भाई-बिरोध
3. बेटी-बियोग उर्फ़ बेटी-बेचवा
4. बिधवा-बिलाप
5. कलियुग-प्रेम उर्फ़ पिया निसइल
6. राधेश्यम-बहार
7. गंगा-स्नान
8. पुत्र-बध
9. गबरघिचोर
10. बिरहा-बहार
11. नकल भांड आ नेटुआ के
12. ननद-भउजाई

भजन-कीर्तन, गीत-कविता
1. शिव-विवाह
2. भजन कीर्तन (राम)
3. रामलीला गान
4. भजन-कीर्तन (श्रीकृष्ण)
5. माता-भक्ति
6. आरती
7. बूढ़शाला के बेयान
8. चौवर्ण पदवीं
9. नाई बाहर
10. शंका-समाधान
11. विविध
12. भिखारी ठाकुर परिचय.

Leave a Reply

error: Content is protected !!