भोजपुरी के कवि मनोज भावुक जी का नवचेतना समिति, पंजवार, सीवान, बिहार की दिल्ली इकाई द्वारा किया गया अभिनंदन।

भोजपुरी के कवि मनोज भावुक जी का नवचेतना समिति, पंजवार, सीवान, बिहार की दिल्ली इकाई द्वारा किया गया अभिनंदन।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सभी को 77वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हमने भी एक पुनीत और दिव्य काम किया। भोजपुरी भाषा के लिए समर्पित सुप्रसिद्ध कवि मनोज भावुक जी का अपनी प्रतिष्ठित संस्था नवचेतना समिति, पंजवार, सीवान, बिहार की दिल्ली-एनसीआर इकाई द्वारा सफल अभिनंदन समारोह मनाया।

आज मेरे गुरुदेव सीवान के गाँधी घनश्याम शुक्ल होते तो बहुत खुश होते। खैर, वह जहाँ भी होगें, बहुत खुश होगें यह कार्यक्रम देखकर। उन्होंने हमेशा क्रियेशन को महत्व दिया। मनोज भावुक भी लंदन में इंजीनियरिंग की जमी-जमाई नौकरी छोड़कर इंडिया वापस आ गए भोजपुरी की सेवा करने। मुझे याद है कि गुरुदेव घनश्याम शुक्ल को भोजपुरी साहित्य से मनोज भावुक ने ही जोड़ा था। 1994 में अपने गाँव की बायोग्राफी ‘ कौसड़ का दर्पण ’ लिखने के बाद मनोज चर्चा में आ गए थे। उनके गाँव की जनगणना का पोस्टर आस-पास के कई गाँवों में लगा था, पंजवार में भी।

तब मनोज पटना से जब भी अपने गाँव आते, पंजवार भी आते। गुरुदेव के पलानी में (बैठका में) बैठकी लगती व मनोज अपनी कविताएँ सुनातें। तब मनोज की कविताएँ पंजवार की दिवाल पत्रिका में भी छपने लगी थी। दिवाल पत्रिका माने कविता दिवाल पर चिपका दी जाती थी। इसकी शुरुआत पंजवार में नवचेतना समिति ने ही की थी।


बाद में मनोज भावुक जब अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन और उसकी पत्रिका ‘ भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका’ से जुड़े तो गुरुदेव को भी पत्रिका का सदस्य बनाया और वह पत्रिका हमारे गाँव की लाइब्रेरी में आने लगी। फिर साल 1999 में अशोक नगर, कोठेयां, छपरा में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन हुआ जिसमें मनोज भावुक ने गुरुदेव को भी आमंत्रित किया। तब मनोज भावुक सम्मेलन के प्रबंध मंत्री थे। साल 2000 में जब पंजवार पुस्तकालय की रजत जयंती मनानी थी तो गुरुदेव पटना मनोज के पास पहुँचे और अपने मन की बात बताई।

उन दिनों मनोज अपनी एक कोचिंग भी चलाते थे – सिंह भावुक कोचिंग। मनोज गुरुदेव को लेकर भोजपुरी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले आचार्य पांडेय कपिल के पास गए। मनोज भावुक पांडेय कपिल के प्रिय शिष्य हैं। उन्होंने कहा, ‘ जब मनोजे आ गइल बाड़न त हम कइसे ना आएब। ‘’ यह घनश्याम शुक्ल की पांडेय कपिल से पहली मुलाकात थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए मनोज भावुक फिल्म गीतकार-गायक ब्रजकिशोर दुबे जी को राजी किए। स्मारिका के लिए बहुत सारी सामग्री जुटाए मनोज।

और इस तरह से पंजवार पुस्तकालय की रजत जयंती समारोह में आचार्य पांडेय कपिल और ब्रजकिशोर दुबे जी का आना हुआ। पांडेय कपिल ने कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता की। तंग इनायतपुरी ने संचालन किया। मनोज भावुक ने भी काव्य-पाठ किया- ‘ बबुआ भइल अब सेयान कि गोदिए नू छोट हो गइल। ‘

मै गुरुदेव का प्रिय शिष्य रहा हूँ। वह मुझसे बहुत सारी अंतरंग बातें भी साझा किया करते थे। वह दिल्ली आते तो मेरे पास ही ठहरते थे। गाँव-जवार की बातें होतीं। गुरुदेव बताते थे कि मनोज के पिताजी मजदूर नेता रामदेव सिंह का रेनूकूट, हिंडाल्को में बहुत नाम था। गुरुदेव तब रेनूकूट खूब जाया करते थे। रामदेव बाबू जेपी आंदोलन में भी सक्रिय थे। उनकी अगुआई में बहुत सारे दिग्गज थे, गुरुदेव भी। यह बात उन्होंने मनोज भावुक को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में भी कही है।

अफ्रीका और लंदन प्रवास के दौरान जब भी मनोज कौसड़ आए, गुरुदेव उन्हें अपने स्कूल सिसवन बुलाकर भाषण दिलवाए ताकि विद्यार्थी प्रोत्साहित हों। यही नहीं हाल के वर्षों में भी मनोज को उन्होंने बिस्मिल्ला खां संगीत महाविद्यालय में भी अपने बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए बुलाया। लिट्टी-चोखा पर तो अक्सर बुला ही लेते थे। कभी मनोज नहीं आ पाए तो गुरुदेव खुद ही उनके गाँव, उनके घर पहुँच जाते थे मिलने। यही गुरुदेव की सरलता और महानता थी और दोनों लोगों के संबंध की घनिष्टता थी।

तो अपने गाँव-जवार की जान और पूर्वांचल की आन-बान-शान व भोजपुरी आइकॉन मनोज भावुक का अभिनंदन कर नवचेतना समिति सचमुच गौरवान्वित अनुभव कर रही है ! विदित है कि हाल ही में भोजपुरी साहित्य व सिनेमा में मनोज भावुक के उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें फिल्मफेयर व फेमिना द्वारा सम्मानित किया गया है।
गुरुदेव चाहते थे, प्रतिभाओं का सम्मान हो। मनोज भावुक का सम्मान व्यक्तिगत सम्मान नहीं है, यह पूरे सिवान और पूरे बिहार का सम्मान है।

गुरुदेव ने मनोज भावुक जी के साथ अंतिम मंच डॉक्टर मंजेश पांडेय जी की संस्था रूट केयर फाउंडेशन के महात्मा गाँधी हाई स्कूल, गौर, महाराजगंज वाले कार्यक्रम में साझा किया था। वह मनोज को वहाँ देखकर बहुत खुश हुए थे और मंच से उनकी जमकर तारीफ की थी।

मनोज भावुक की सहजता और सरलता के बारे में गुरुदेव से सुना था लेकिन जब इनसे मुलाकात हुई तो कायल भी हुआ। अपनी विद्वता, अपने व्यवहार और अपनी सादगी से दिल जीत लेते हैं। विश्व स्तर पर भोजपुरी का पताका लहराने वाले अपने भाई मनोज भावुक को दिल से शुभकामनाएँ।

लेखक- मनोज कुमार सिंह उर्फ मुन्ना पंजवार के निवासी हैं और घनश्याम शुक्ल के प्रिय शिष्य हैं। वर्तमान में दिल्ली में एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मालिक हैं।

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