डॉक्टरी के जादूगर थे बिधान बाबू, मरीजों को महज देखकर बता देते मर्ज.
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क
वे डॉक्टरी के जादूगर थे। मरीजों को महज देखकर उनका मर्ज बता देते थे, उन्होंने अपना सारा जीवन बीमार लोगों के इलाज में समर्पित कर दिया और जब राजनीति में कदम रखा तो वहां भी बतौर प्रशासक स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत संरचना को बेहतर करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। यह हैं डॉ बिधान चंद्र रॉय, चिकित्सा जगत में अमू़ल्य अवदान के लिए जिनकी जयंती और पुण्यतिथि (डॉ. रॉय का जन्म व निधन दोनों एक जुलाई को हुआ था) को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साउथ कोलकाता ब्रांच के अध्यक्ष डॉ. रामदयाल दुबे ने कहा-‘डॉ. बिधान चंद्र रॉय की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वे जिस चीज में हाथ लगाते थे, वह सोना बन जाता था। चिकित्सा के साथ उन्होंने राजनीति में भी अपार सफलता हासिल की और बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बने। राज्य के प्रशासनिक प्रमुख के तौर पर ढेरों जिम्मेदारियां होने के बावजूद वे मरीजों का निःशुल्क इलाज करना नहीं भूले।
मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने बंगाल में स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत संरचना को तेजी से उन्नत किया। जादवपुर टी.बी. हास्पिटल, चित्तरंजन सेवा सदन, कमला नेहरु मेमोरियल हॉस्पिटल विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन (कॉलेज) और चित्तरंजन कैंसर हॉस्पिटल उन्हीं की देन हैं। वे पहले ऐसे डॉक्टर थे, जिन्होंने लंदन में एमआरसीपी और एफआरसीएस दोनों एक साथ किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।’
कोलकाता के सबसे पुराने डॉक्टरों में से एक डॉ. अनंत कुमार चक्रवर्ती ने डॉ.रॉय के दौर को याद करते हुए कहा-‘बिधान चंद्र रॉय जैसा डॉक्टर उस जमाने में कोलकाता तो क्या, देश में कहीं नहीं था। उस समय आज जैसे उन्नत डायग्नोस्टिक सेंटर नहीं थे। बिधान बाबू मरीज को देखकर उसकी बीमारी समझ लेते थे और उसका जड़ से इलाज करते थे। उन्होंने अपना सारा जीवन मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया और 80 वर्ष की उम्र में निधन के दिन तक उन्होंने मरीजों का इलाज किया था।’
जब बिधान बाबू की बात सुनकर गांधीजी हो गए थे निरुत्तर
डॉ. रॉय महात्मा गांधी के व्यक्तिगत चिकित्सकों में से एक थे। सन् 1933 में जब महात्मा गांधी पुणे में अनशन कर रहे थे तो डॉ. रॉय उनके स्वास्थ्य की जांच करने वहां पहुंचे थे। गांधीजी ने उनसे दवा लेने से इन्कार कर दिया था। उन्होंने बिधान बाबू से पूछा-‘मैं आपसे इलाज क्यों कराऊं? क्या आप हमारे 40 करोड़ देशवासियों का मुफ्त में इलाज करते हैं? इसपर डॉ. राय ने कहा था-‘ मैं सारे लोगों का मुफ्त में इलाज नहीं कर सकता। मैं यहां मोहनदास करमचंद गांधी का नहीं बल्कि उस शख्स का इलाज करने आया हूं, जो मेरे देश के 40 करोड़ देशवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।’ बिधान बाबू की यह बात सुनकर गांधीजी निरुत्तर हो गए थे और उन्होंने दवा ले ली थी।
बिहार के पटना में हुआ था जन्म
एक जुलाई, 1882 को बिहार के पटना के बांकीपुर में बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे डॉ. राय बेहद मेधावी छात्र थे। उनके पिता प्रकाश चंद्र राय आबकारी विभाग में निरीक्षक थे जबकि मां अघोरे कामिनी देवी सामाजिक कार्यकर्ता थीं। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे बिधान ने पटना कॉलेजिएट स्कूल से मैट्रिक के बाद तत्कालीन प्रेसीडेंसी कॉलेज से आइए की डिग्री हासिल की।
उन्होंने पटना कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई की। डॉ. रॉय ने 1911 में एक साथ रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस का सदस्य और रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जंस का फेलो बनने की दुर्लभ उपलब्धि अपने नाम दर्ज की। चार फरवरी, 1961 को चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। एक जुलाई, 1962 को 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। 1962 में बीसी रॉय नेशनल अवॉर्ड्स की शुरुआत हुई और 1991 से एक जुलाई का नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में पालन होता आ रहा है।
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