देश में कोरोना से बड़ी राहत,नीचे पहुंचे नए मामले.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में कोरोना से बड़ी राहत की खबर है। देश में करीब 201 दिन बाद कोरोना के नए मामले 20 हजार के नीचे पहुंचे हैं। इसके साथ ही देश में कोरोना से होने वाली मौतें भी 200 से कम पहुंच गई हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में बीते 24 घंटों के दौरान कोरोना के 18,795 नए मामले सामने आए हैं। इस दौरान 179 लोगों की कोरोना संक्रमण के कारण मौत हुई है। इस दौरान 24,238 लोग कोरोना संक्रमण से मुक्त भी हुए हैं।

करीब 201 दिनों के बाद देश में पहली बार कोरोना के नए मामलों की संख्या 20 हजार के नीचे है। इससे पहले 9 मार्च को ऐसा हुआ था। देश में फिलहाल कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या में भी कमी आई है।

देश में कोरोना के कुल मरीजों की संख्या अब 3,36,97,581 हो गई है। देश में कोरोना संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा 4,47,373 पर पहुंच गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि देश में कोरोना वायरस के एक्टिव मरीज अब घटकर 2.92 लाख हो गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि पिछले 24 घंटों में देश भर में संक्रमण से 26,030 लोग ठीक भी हुए हैं, जिसके बाद कोरोना से अब तक ठीक होने वालों की संख्या 32,9,58,002 हो गई है। वहीं एक्टिव केस की संख्या फिलहाल 2,92,206 है, जो कुल मामलों का 0.87 प्रतिशत है। दैनिक पाजिटिविटी रेट 1.42 प्रतिशत है, जो पिछले 29 दिनों से 3 प्रतिशत से कम है। जबकि वीकली पीजिटिविटी रेट 1.88 प्रतिशत है, जो 95 दिनों से 3 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है।

केरल में सबसे ज्यादा केस

देश में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य केरल है। केरल में सोमवार को कोरोना संक्रमण के 11,699 नए मामले सामने आए तथा महामारी से 58 और मरीजों की मौत हो गई। इसके साथ ही कुल मामले बढ़कर 46,41,614 हो गए और मृतकों की संख्या 24,661 पर पहुंच गई।

एक दिन में 1 करोड़ वैक्सीन की डोज लगी

देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना वैक्सीन की 1,02,22,525 डोज लगाई गई, जिसके बाद कुल टीकाकरण का आंकड़ा 87,07,08,636 हो गया है. भारत में ये पांचवी बार है कि कोरोना वैक्सीन की 1 करोड़ से ज्यादा डोज दी गई है।

कोरोना महामारी से बचाव की दिशा में टीकाकरण ही उपाय है। भारत में फिलहाल दो डोज वाली कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी वैक्सीन लगाई जा रही हैं। इस दौरान कई बार यह सवाल मन में आता है कि आखिरी टीके की दूसरी डोज कितनी जरूरी है? अगर किसी कारण से तय समयसीमा में दूसरी डोज न लग पाए, तो क्या करना चाहिए?

…इसलिए है जरूरी : कई शोध में यह सामने आ चुका है कि कोरोना वैक्सीन की पहली डोज भी संक्रमण से काफी हद तक बचाने में सक्षम है। पहली डोज के बाद शरीर में कुछ हद तक एंटीबाडी बन जाती है, लेकिन वह पूरी तरह से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन दो डोज वाले टीकों को व्यापक शोध के बाद विकसित किया गया है।

अध्ययन बताते हैं कि पहली डोज से 40 फीसद एंटीबाडी का निर्माण हो जाता है और बाकी 60 फीसद के लिए दूसरी डोज जरूरी होती है। सीधे शब्दों में कहें तो संक्रमण के खतरे के खिलाफ मजबूत सुरक्षा चक्र बनाने के लिए दोनों डोज का लगना जरूरी है। हर व्यक्ति का यह प्रयास रहना चाहिए कि तय शेड्यूल के मुताबिक सही समय पर दूसरी डोज लग जाए।

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अभी बूस्टर डोज की जरूरत नहीं : दो डोज के बाद वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर भी लगातार चर्चा उठती रहती है। भारत में टीकाकरण की प्रक्रिया पर विशेषज्ञों की पूरी टीम नजर रखे हुए है। फिलहाल बूस्टर डोज की जरूरत महसूस नहीं की गई है। यदि समय के साथ ऐसा लगेगा, तो निश्चित तौर पर सरकार उस संबंध में निर्देश जारी करेगी।

चाकचौबंद है व्यवस्था : देश में टीकाकरण के लिए सरकार की तरफ से चाकचौबंद व्यवस्था बनाई गई है। टीके की पहली डोज लगने के बाद जैसे ही दूसरी डोज का समय आता है, अलर्ट मैसेज आने लगता है। ऐसे में यह उम्मीद की जाती है कि हर व्यक्ति तय समय के भीतर टीके की दूसरी डोज लगवा लेगा। चूक जाएं तो क्या करें? इस मजबूत व्यवस्था के बावजूद यह संभव है कि कोई व्यक्ति तय समय पर दूसरी डोज लेने से चूक जाए।

किसी भी कारण से दूसरी डोज से चूकना कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर सकता है। यदि तय समयसीमा के भीतर दूसरी डोज न लग पाए, तो इस स्थिति में एंटीबाडी टेस्ट किया जा सकता है। यदि शरीर में बिल्कुल एंटीबाडी न बची हो, तो उन्हें फिर से तय प्रक्रिया के तहत दोनों डोज लेनी चाहिए।

महामारी से लड़ाई में खुद को कमजोर न होने दें : किसी भी स्थिति में तय प्रक्रिया के तहत टीके की दोनों डोज नहीं लगवाना महामारी के खिलाफ जंग में अपने पक्ष को कमजोर करने जैसा है। किसी भी क्षेत्र में यदि कुछ लोग टीका नहीं लगवाएंगे या फिर दूसरी डोज में आनाकानी करेंगे, तो संक्रमण का खतरा बना रहेगा। खतरा केवल संक्रमण फैलने तक ही सीमित नहीं है। जितने ज्यादा लोग संक्रमित होंगे, वायरस के नए वैरिएंट बनने का खतरा भी उतना ही ज्यादा होगा। नया वैरिएंट कितना घातक होगा, यह कोई नहीं जानता है। खतरे को कम करने का एकमात्र तरीका यही है कि नए वैरिएंट विकसित न होने दिए जाएं।

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