हर बिहारी के सम्मान व स्वाभिमान का प्रतीक है बिहार दिवस, सात समंदर पार तक फैली यहां की खुशबू
बिहार के मान-सम्मान और स्वाभिमान की ख्याति पूरी दुनिया में फैलाने के लिए पहली बार 2010 में ‘बिहार दिवस’ का आयोजन शासन के स्तर से हुआ तो सात समंदर पार तक बिहारी की मिट्टी की सोंधी सी खुशबू फैल गई। प्रदेश के गांव-गिरांव से लेकर दूर देश मॉरीशस, इंग्लैंड, अमेरिका, स्कॉटलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कतर, त्रिनिदाद एंड टोबैगो तक बिहारी लोक संस्कृति और वीरों व विभूतियों की गाथाएं सुनी-सुनाई गईं।
बिहार ही नहीं, दुनिया भर के बिहारियों का मिला समर्थन
विश्व गुरु बिहार के बिसर रहे किस्से-कथाओं से देश-दुनिया फिर रूबरू होने लगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘बिहार दिवस’ की पहल का न केवल बिहार में, अपितु दुनिया के हर उस देश और शहर में जबरदस्त समर्थन मिला, जहां बिहारी या शुभचिंतकों का बसेरा था।
2010 में शुरू हुआ सिलसिला, यह हर बिहारी का उत्सव
बिहार के स्थापना दिवस 22 मार्च को शासकीय स्तर पर ‘बिहार दिवस’ मनाने का 2010 में शुरू हुआ सिलसिला अब स्थापित हो चुका है। इस दिवस को अब हर बिहारी एक उत्सव के रूप में तो मनाता ही है, गर्व से उन विभूतियों और वीरों को याद भी करता है जिनकी ख्याति ने बिहार का सिर ऊंचा किया है।
बुद्ध की ज्ञानभूमि रहा है बिहार, बोधिवृक्ष की होती पूजा
बिहार की भूमि में ही ज्ञान प्राप्त कर सिद्धार्थ भगवान बुद्ध बने। बोधगया के निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या के बाद ही सिद्धार्थ की साधना पूर्ण हुई। जिस पीपल पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान का बोध मिला वह आज भी बोधि वृक्ष के नाम से पूजा जाता है।
24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मभूमि है बिहार
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की पवित्र जन्मभूमि होने का गौरव बिहार के वैशाली के ग्राम कुंडलपुर को प्राप्त है। अहिंसा और सत्य का ज्ञान दुनिया भर में फैलाने वाली भगवान महावीर की मोक्ष भूमि भी बिहार में ही पावापुरी में है।
बिहार के हीं थे दुनियां के महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट
प्राचीन भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के आविष्कारों का गवाह बिहार की धरती रही है। ढेर सारे ऐसे प्रमाण भी मिले हैं, जिसमें यह कहा गया है कि आर्यभट्ट का जन्म बिहार में हुआ है और उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है। खगोल विज्ञान, गोलीय त्रिकोणमिति, अंकगणित, बीजगणित सहित गणित व खगोल विज्ञान के ढेर सारे आविष्कारों को आर्यभट्ट ने बिहार की धरती से ही दुनिया तक पहुंचाया।
मौर्य शासन के सूत्रपात की है धरती, चाणक्य की भूमि
प्राचीन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण और शक्तिशाली राजा माने जाने वाले चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का सूत्रपात बिहार के पाटलिपुत्र की धरती से ही हुआ। पाटलिपुत्र ही मौर्य साम्राज्य की राजधानी भी रही है। नंद वंश का नाश करने का संकल्प लेकर चंद्रगुप्त को शासन की बागडोर तक पहुंचाने वाले आचार्य चाणक्य की भूमि होने का गौरव भी बिहार को है।
महान सम्राट अशोक की राजधानी रहा है पाटलिपुत्र
बिहार के पाटलिपुत्र को सम्राट अशोक के राज-पाट की राजधानी होने का भी गौरव हासिल है। कलिंग छोड़कर संपूर्ण भारत वर्ष सहित आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार तक अशोक का शासन हुआ करता था। कहा जाता है अशोक का शासन उस समय से आज तक का सबसे विशाल साम्राज्य रहा है।
अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले बाबू कुंवर सिंह की धरती
आजादी के पहले संग्राम के नायक बने बाबू कुंवर सिंह की जन्मभूमि भी बिहार के ही भोजपुर का जगदीशपुर गांव है। 80 वर्ष की उम्र में भी लड़कर जीत का जज्बा रखने वाले कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों की फौज के छक्के छुड़ाने वाले कुंवर सिंह ने अंग्रेजों की गोली लगने के बाद खुद ही तलवार से अपने हाथ काट लिए थे।
माउंटेनमैन ने पहाड़ों का सीना चीरने का दिखाया दम
पहाड़ों का सीना चीरकर रास्ते बनाने का दम भी बिहार में है। माउंटेनमैन के नाम से दुनिया में चर्चित हुए दशरथ मांझी बिहार के गया के गहलौर गांव के थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी से अकेले ही उन्होंने 360 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 25 फीट ऊंचे पहाड़ को काटकर सड़क बना डाली।
लौंगी भुइयां ने अकेले दम बनाया पांच किमी का पईन
गया के लौंगी भुइयां ने 20 वर्षों में अकेले दम करीब पांच किलोमीटर लंबे पईन का निर्माण कर दिया, जिससे आज सैकड़ों एकड़ खेतों की सिंचाई की जा रही है। यह काम उन्होंने अकेले किया।