मखाना में भविष्य की संभावनाओं को टटोलता बिहार!
बिहार को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रहा मखाना बिहार की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की रखता है क्षमता
बिहार दिवस 22 मार्च पर विशेष आलेख
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
कभी बिहार सतुआ और लिट्टी चोखा के लिए जाना जाता था। आज मखाना बिहार को अंतराष्ट्रीय पहचान दिला रहा है। अभी हाल में मॉरीशस के दौरे पर गए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ को बिहार का प्रसिद्ध मखाना बतौर उपहार भेंट किया। यह उपहार अंतराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना। अभी हाल ही में देश का बजट प्रस्तुत करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मखाना बोर्ड के गठन की बात कही। मखाना राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं क्योंकि कृषि के व्यावसायिक आयाम को गढ़ने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मखाना उत्पादन किसानों के लिए आमदनी बढ़ाने वाला भी साबित हो रहा है तो यह भारी संख्या में रोजगार सृजन की संभावनाओं से भी लैस है। ऐसे में बिहार मखाना में भविष्य की संभावनाओं को टटोल रहा है।
कुछ वर्ष पूर्व तक मखाने की खेती बिहार के लगभग 15000 हेक्टेयर में हुआ करती थी। पहले केवल तालाबों में ही मखाने की खेती होती थी। पहले दरभंगा आदि क्षेत्रों में साहनी समाज के लोग ही मखाने की खेती किया करते थे। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के अनुसंधान कार्यों के प्रचार, प्रसार से, सकारात्मक जननीतियों, सरकारी समर्थन , कृषकों और उद्यमियों की बढ़ती जन रूचियों, मौसम की अनिश्चिताओं के सापेक्षिक रूप से कम दुष्प्रभाव के कारण बिहार के तकरीबन 40,000 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर अब मखाना की खेती हो रही है। पहले मखाने की खेती सिर्फ तालाबों में होती थी अब खेतों में भी होने लगी है। बहुत सारे नए शिक्षित बेरोजगार युवा भी मखाने के उत्पादन, प्रसंस्करण में मखाने के मूल्य संवर्धन से जुड़ रहे हैं। अभी तकरीबन 25 हजार किसान मखाने की खेती से जुड़ चुके हैं। हाल ही में पटना में आयोजित मखाना महोत्सव में तत्कालीन कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर मखाना का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सब्सिडी दी जा रही है। उन्होंने बताया कि हमारा लक्ष्य अगले दो तीन साल में 50- 60 हेक्टेयर में इसकी खेती करने और 50 हजार किसानों को मखाने की खेती से जोड़ने का है।
बिहार, खासकर उत्तरी और पूर्वी बिहार में मखाना की खेती काफी महत्वपूर्ण है, जहां मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, सीतामढ़ी और किशनगंज जैसे जिले मखाना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।
बिहार भारत में मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जहाँ देश के 85% से अधिक मखाना का उत्पादन होता है।
पूर्णिया-कोसी इलाका मखाना उत्पादन का केंद्र है, जहाँ राज्य का 70% मखाना उत्पादित होता है। मखाना की खेती तालाबों और खेतों में की जाती है, जहां दरभंगा-मधुबनी में तालाबों में और सुपौल-किशनगंज में खेतों में पानी में मखाना उगाया जाता है। बिहार के मिथिला मखाना को जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग प्राप्त है। मखाना की खेती का क्षेत्र 2012-13 में 13,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2021-22 में 35,224 हेक्टेयर हो गया है।
मखाना के उत्पादन में भी 152% की वृद्धि हुई है।
बिहार सरकार मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए “मखाना विकास योजना” चला रही है।
बिहार का मखाना अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान और इंग्लैंड जैसे देशों में निर्यात किया जाता है।
बिहार वर्तमान में विश्व के तकरीबन 90 फीसदी मखाना का उत्पादन कर रहा है। बिहार में मखाना उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां मौजूद हैं। यहां की जलवायु गर्म और आर्द्र है जो मखाने के पौधे के लिए विशेष तौर पर उपयुक्त है। बिहार की जलोढ मिट्टी भी मखाने के उत्पादन के लिए पर्याप्त पोषक तत्वों को उपलब्ध करा देती है। यहां के तालाब और नदियों में भी पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो मखाने के पौधों के लिए एक बेहद अनुकूल परिस्थिति है।मखाना, अनुसंधान संस्थान, दरभंगा सहित कई अन्य कृषि संस्थान अपने शोध कार्यों से मखाने की खेती के लिए महत्वपूर्ण जानकारियों को प्रदान करते रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि हालिया बजट में घोषित राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान के शोध और अनुसंधान का लाभ मखाने की खेती को भी मिलेगा। साथ ही बिहार के मखाने को अंतराष्ट्रीय सुर्खियां और सम्मान भी मिल रहे हैं। यह भी देखा जा रहा है कि मखाने की खेती पर मौसम की अनिश्चिताओं का प्रभाव भी सापेक्षिक रुप से कम ही होता है। इसके आर्थिक और वाणिज्यिक महत्व को देखते हुए किसान भी इसकी खेती के तरफ विशेष तौर पर आकर्षित हो रहे हैं। सरकारी अनुदान और समर्थन की सहज उपलब्धता भी मखाने की खेती के लिए सकारात्मक संदर्भ है।
मखाना बिहार की पहचान बनता जा रहा है और यह राज्य की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का हिस्सा भी बनता जा रहा है। मखाना को एक पवित्र फल माना जाता है तथा विभिन्न त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के समय इसे बतौर फलाहार ग्रहण किया जाता है। बिहार का मखाना अपने विशिष्ट स्वाद, पौष्टिक गुणवत्ता के लिए जाना जाता रहा है।
हालांकि बिहार में मखाना उत्पादक किसानों को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता रहता है। सबसे बड़ी समस्या मखाने के उत्पाद के लिए व्यवस्थित मार्केटिंग के अभाव से जुड़ी है। बाजार की अनियमितता के कारण किसानों को अपने उत्पाद का सही मूल्य कभी कभी नहीं मिल पाता है। कभी कभी तापमान में वृद्धि और वर्षा की अनियमितता के कारण भी मखाने की पैदावार पर नकारात्मक असर पड़ता है। उच्च कोटि के बीज, उर्वरक, कीट और रोग आदि की समस्या का सामना भी मखाना उत्पादक किसानों को करना पड़ता है। उम्मीद की जा रही है कि हाल में देश के बजट में घोषित मखाना बोर्ड के अस्तित्व में आने के बाद मखाना उत्पादन के व्यवस्थित मार्केटिंग की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी तथा बीज, उर्वरक, कीट आदि चुनौतियों के सामना के संदर्भ में मखाना उत्पादक किसानों को सहायता प्राप्त होगी।
वर्तमान में मखाना बिहार के लिए एक आशा की किरण बन चुका है। यह एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि बन चुका है जिसमें मखाने के बीजों को तालाबों या खेतों में दिसंबर महीने में बोया जाता है। पौधों की देखभाल और सुरक्षा की जाती है। फिर मखाने के फूल आते हैं जिसकी कटाई जुलाई और अगस्त के महीने में होती है। फिर मखानों को सूखा कर सुरक्षित रख लिया जाता है। मखाने की खेती और प्रसंस्करण ने रोजगार के नवीन अवसरों का सृजन किया है। मखाना के निर्यात से बिहार को विदेशी मुद्रा की आवक भी हो रही है। जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल रही है। मखाने के कारण स्थानीय स्तर पर अन्य व्यवसायों को प्रोत्साहन भी मिल रहा है। सबसे बड़ा तथ्य यह है की मखाने की खेती से स्थानीय किसानों की आय भी बढ़ रही है। मखाने का स्वाद, गुणवत्ता और पौष्टिकता बिहार की राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा में चार चांद भी लगा रहे हैं।
मखाना बिहार के लिए एक उज्जवल भविष्य की गारंटी बनता जा रहा है। जितनी अधिक इसकी खेती का विस्तार होगा उतना ही अधिक यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती हासिल होगी। रोजगार सृजन के अवसर उपलब्ध होंगे। किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे। इसलिए बिहार सरकार मखाने की खेती के विकास के लिए सतत् समर्थन और सहयोग भी प्रदान कर रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि निकट भविष्य में गठित होने वाला मखाना बोर्ड मखाना उत्पादक किसानों की समस्याओं को संजीदगी से महसूस करेगा और मार्केटिंग संबंधी समस्याओं के निदान के साथ अन्य नवाचारी उपायों को मखाना उत्पादक किसानों तक पहुंचाएगा। मखाना कृषि से संबंधित अनुसंधानों को सहज तरीके से आम किसानों तक पहुंचाने की व्यवस्थाएं भी सुनिश्चित करनी होगी।
मखाना बिहार के लिए संभावनाओं की बानगी है। मखाना उत्पादन को और प्रोत्साहन देने उसके व्यवस्थित मार्केटिंग की सुविधा उपलब्ध कराने तथा मखाना उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचा की उपलब्धता सुनिश्चित करने से मखाना बिहार के सुंदर भविष्य को गढ़ने की क्षमता रखता है।
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