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बिहार @ कैसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा?

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श्रीनारद मीडिया सेट्रल डेस्क

संसद के दोनों सदनों में सोमवार को बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठा। इस पर केंद्र की ओर से कहा गया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कोई मामला नहीं बनता है। सरकार ने इसे लेकर 2012 में तैयार अंतर-मंत्रालयी समूह की रिपोर्ट का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘पूर्व में विशेष श्रेणी के दर्जे के बिहार की मांग पर आईएमजी की ओर से विचार किया गया था, जिसने 30 मार्च 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसने यह निष्कर्ष निकाला था कि एनडीसी के मौजूदा मानदंडों के आधार पर बिहार के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे का मामला नहीं बनता है।’ चलिए हम आपको बताते हैं कि किसी राज्य को विशेष दर्जा कैसे मिलता है और इसके लिए क्या शर्तें हैं।

साल 1969 में राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) की बैठक में पहली बार यह मुद्दा उठाया गया। इस दौरान डी आर गाडगिल समिति ने देश में राज्य योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता आवंटन को लेकर फॉर्मूला पेश किया। इससे पहले, राज्यों के बीच धन बंटवारे से जुड़ा कोई स्पेशल फॉर्मूला नहीं था। ऐसी स्थिति में योजना के आधार पर अनुदान दिया जाता था। एनडीसी से गाडगिल फॉर्मूला को मंजूरी मिल गई जिसमें असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड जैसे विशेष श्रेणी के राज्यों को प्राथमिकता दी गई। साथ ही, यह सुनिश्चित किया कि उनकी जरूरतों को पूरा करने में केंद्रीय सहायता में प्राथमिकता मिले।

गाडगिल फॉर्मूले के आधार पर हुए फैसले 
5वें वित्त आयोग ने 1969 में स्पेशल कैटेगरी स्टेटस का कॉन्सेप्ट पेश किया, जिसमें कुछ इलाकों के ऐतिहासिक पिछड़ेपन की पहचान की गई। ऐसे में कुछ वंचित राज्यों को केंद्रीय सहायता और टैक्स छूट जैसे लाभ मिले। राष्ट्रीय विकास परिषद ने इस आधार पर इन राज्यों को केंद्रीय योजना सहायता मुहैया कराई। इस तरह 2014-2015 वित्तीय वर्ष तक विशेष दर्जे वाले 11 राज्यों को कई लाभ और प्रोत्साहन मिले।

हालांकि, 2014 में योजना आयोग को भंग कर दिया गया और उसकी जगह नीति आयोग का गठन हुआ। इसके बाद, 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू कर दी गईं, जिससे गाडगिल फॉर्मूले पर आधारित अनुदान बंद हो गया। इसके बजाय, विभाज्य पूल से सभी राज्यों को हस्तांतरण 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया गया।

15वें वित्त आयोग की इसे लेकर क्या सिफारिश 
14वें वित्त आयोग की सिफारिशें साल 2015 से प्रभावी हुईं। इसके तहत, पूर्वोत्तर और 3 पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए स्पेशल कैटेगरी को समाप्त कर दिया गया। इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को ‘कर हस्तांतरण के जरिए भरा जाए। केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया गया। बाद में 15वें वित्त आयोग ने इसे बढ़ाकर 41% कर दिया। इस तरह यह प्रावधान जारी रखा गया ताकि एससीएस का विस्तार किए बिना संसाधन भिन्नता/अंतर को कम किया जा सके। सभी राज्य एकसाथ विकास के रास्ते पर आगे बढ़ें।

बिहार को लेकर क्या कहा गया? 
बता दें कि इस प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बिहार को इनकार को लेकर कुछ वजहें बताईं। उन्होंने कहा कि अतीत में राष्ट्रीय विकास परिषद ने कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में कुछ ऐसी विशेषताएं थीं जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत थी।

उन्होंने कहा कि इनमें पर्वतीय और दुर्गम भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या आदिवासी जनसंख्या की बड़ी हिस्सेदारी, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक और बुनियादी संरचना के लिहाज से पिछड़ापन और राज्य के वित्त की अलाभकारी प्रकृति शामिल रहीं। चौधरी ने कहा कि फैसला उक्त सूचीबद्ध सभी कारकों और किसी राज्य की विशिष्ट स्थिति के एकीकृत विचार के आधार पर लिया गया था।

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