बिहार इन्वेस्टर्स मीट 2022 का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार की राजधानी पटना में आज से बिहार इन्वेस्टर्स मीट 2022 का शुभारंभ हो रहा है. आज इसका उद्घाटन सीएम नीतीश कुमार ने किया. इस उद्घाटन कार्यक्रम में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद रहे. वहीं, इसमें उद्योग समूह के 100 से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं. इस मीट में बिहार में उद्योग लगाने को लेकर मंथन होगा.
सीएम नीतीश कुमार ने किया उद्घाटन
उद्योग विभाग का इन्वेस्टर्स मीट सीएम सचिवालय के संवाद कक्ष में आयोजन किया गया है. इसका उद्घाटन आज सीएम नीतीश कुमार ने किया. उद्योग मंत्री समीर महासेठ के अध्यक्षता में बिहार इन्वेस्टर्स मीट 2022 हो रहा है. इसमें उद्योग समूह के 100 से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं. कई नामचीन कंपनी के अधिकारियों के साथ चर्चा होने की संभावना है. वहीं, इस कार्यक्रम में वित्तमंत्री विजय चौधरी, उद्योग मंत्री समीर महासेठ सहित कई अधिकारी मौजूद रहे.
उद्योगपतियों ने रखी अपनी बात
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने एक बड़े उद्योगपति ने अपनी चिंता से अवगत कराया. माइक्रोमैक्स बायोफ्यूल्स के निदेशक राजेश अग्रवाल ने सुरक्षा को लेकर अंपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कहा कि लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन रहे, इस पर ध्यान देने की जरूरत है. इनके अलावा भी कई उद्योगपतियों ने भी अपनी बात रखी.
बिहार में उद्योग एक बड़ी समस्या
बता दें कि बिहार में उद्योग आज एक बड़ी समस्या है. अब महागठबंधन की सरकार पहली इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन कर रही है. इससे पहले बिहार में एनडीए की सरकार थी. एनडीए सरकार में उद्योग मंत्री के रूप में शाहनवाज हुसैन हैदराबाद में भी इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया था. दिल्ली में भी इन्वेस्टर्स मीट किया था और कई राज्यों में इसे करने की तैयारी थी. दिल्ली में आयोजित इन्वेस्टर्स मीट में अडानी, आइटीसी और लूलू ग्रुप समेत कई बड़ी कंपनियों ने बिहार में निवेश का ऐलान भी किया था. वहीं, अभी महागठबंधन सरकार में उद्योग मंत्री समीर महासेठ भी रोजगार को लेकर काफी सक्रिय हैं. इसको लेकर लगातार कई कार्यक्रम भी कर रहे हैं.
“पुराने उद्योगों के बंद होने तथा नए निवेशकों के नहीं आने के कारणों पर विचार करने पर एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं लालफीताशाही इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. मामूली काम के लिए परेशान होना पड़ता है. सही मायने में सिंगल विंडो सिस्टम काम नहीं करता है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यहां का सिस्टम ही नए निवेशकों के आने में बड़ी रूकावट है.” शायद यही वजह है कि 2005 में सरकार गठन के बाद राज्य में वर्ष 2016 में औद्योगिक प्रोत्साहन नीति बनाई गई. वहीं एक बड़ी कंपनी के प्रतिनिधि नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं, “अमूमन तो कागजी कार्रवाई में ही बहुत समय निकल जाता है. अगर आपको जमीन मिल जाएगी तो कब्जा लटक जाएगा. चलिए, कब्जा भी हो गया तो बैंक लोन नहीं देने के लिए हरसंभव हथकंडा अपनाता है. यह भी किसी तरह हो गया तो सरकारी लाइसेंस के लिए चप्पल घिसने पड़ते हैं.”
मिलों के बंद होने का प्रभाव खेती पर
मिल बंद हो गए तो इन इलाकों में गन्ना आधारित कृषि की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई. इन मिलों की स्थापना के लिए किसानों द्वारा दी गई जमीन भी उनके हाथ से निकल गई. उनके पास न तो रोजगार रहा, न ही जमीन रही. इसी तरह सीमांचल के कटिहार, अररिया व पूर्णिया में जूट मिलें हुआ करती थीं, किंतु ये सभी धीरे-धीरे स्थानीय समस्याओं व राजनीति की भेंट चढ़ गए.
जूट कैपिटल के रूप में विख्यात कटिहार में एक नेशनल जूट मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन नामक मिल थी जो 2008 में बंद कर दी गई, वहीं सनबायो मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड नामक दूसरी मिल भी काफी बुरी हालत में है. अकेले समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर में 80 एकड़ में स्थित 125 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली रामेश्वर जूट मिल के करीब चार साल पहले बंद होने से 4200 कर्मचारी तो बेरोजगार हो ही गए, इनके साथ ही उन हजारों जूट उत्पादक किसानों को भी झटका लगा जो इस मिल को अपना जूट बेचते थे.
अविभाजित बिहार में चीनी, जूट, पेपर, सूत व सिल्क उद्योग का गौरवशाली अतीत रहा है. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के समय में बिहार देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला राज्य था. बरौनी रिफाइनरी, सिंदरी व बरौनी उर्वरक कारखाना, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी डेयरी, भारी इंजीनियरिंग उद्योग (एचईसी), हटिया (रांची) उन दिनों ही स्थापित हुआ था. किंतु, सरकार की गलत नीतियों व इच्छाशक्ति में कमी की वजह से ये कल-कारखाने धीरे-धीरे बंद होते गए.
इसी के साथ रोजगार की समस्या भी विकराल होती चली गई. एक समय था जब देश में 40 प्रतिशत चीनी का उत्पादन बिहार में होता था. दरभंगा की सकरी, लोहट व रैयाम चीनी मिल, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, सिवान की एसकेजी शुगर मिल, समस्तीपुर की हसनपुर चीनी मिल, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर चीनी मिल, पूर्वी चंपारण की लौरिया, नवादा की वारसिलीगंज, गोपालगंज की हथुआ व वैशाली की गोरौल व गया की गुरारू चीनी मिल जैसी कई अन्य ऐसी चीनी मिलें थीं, जो एक-एक बंद हो गईं.
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