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बिहार के पंडौल में मिले 2000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष. - श्रीनारद मीडिया

बिहार के पंडौल में मिले 2000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जिले के पंडौल प्रखंड के इशहपुर व संकौर्थू गांव में खुदाई के दौरान करीब दो हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं. यहां ऐसे ईंट व खपड़ैल के भग्नावशेष मिल रहे हैं, जो अपने पीछे एक युग के इतिहास को समेटे हैं.

इतिहासकारों का कहना है कि खुदाई में मिले ईंट गुप्तकालीन या फिर उससे कुछ पहले के हो सकते हैं. ईंट के साथ मिले खपड़ैल के टुकड़े दो हजार साल पुराने युग से संबंध रखते हैं. महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा डॉ शिव कुमार मिश्र बताते हैं कि इस प्रकार के ईंट व खपड़ैल का उपयोग शुंग कुषाण काल यानि कि कम से कम दो हजार साल पहले किया जाता था.

जमीन के नीचे दबी है दीवार

इशहपुर में खुदाई में कई जगहों पर ईंट की दीवार मिल रही है. गांव के आनंद झा के खेत की जुताई के दौरान एक के बाद एक लंबी चौड़ी ईंट निकलने लगीं. खंती व कुदाल से खुदाई शुरू की गयी तो लंबी-चौड़ी दीवार दिखी.

इसी प्रकार बगल के एक तालाब की खुदाई के दौरान भी ईंट की पक्की दीवार दिखी. लोग बताते हैं कि आये दिन कुछ न कुछ अद्भुत सामान मिलते रहे हैं. कुछ लोग इसे दबा देते हैं तो कुछ जाहिर करते हैं. दीवार का मिलना इस ओर इशारा करता है कि यहां की सभ्यता बहुत पुरानी रही होगी.

पक्के मकान का होना साबित करता है कि उस समय यहां का नगर विकसित था. इन जगहों पर भी मिल चुके हैं अवशेष. इतिहासकार के अनुसार चार साल पहले इसी प्रकार की ईंट दरभंगा के हावीडीह, बहादुरपुर के सकुरी डीह, मुजफ्फरपुर के सबास बस्ती में भी मिली है.

देवनागरी लिपि में लिखा सिक्का भी मिला

इशहपुर गांव के समीर कुमार मिश्र को अपने खेत की जुताई के दौरान एक सिक्का मिला. सिक्के का इतिहास 150 से 200 साल पुराना बताया जाता है. इसे राम टंका कहा जाता है. इस संबंध में इंडियन इन्स्टीट्यूट आफ न्युमिस्मेटिक स्टडीज नासिक के निदेशक डॉ अमितेश्वर झा बताते हैं कि सिक्के पर देवनागरी भाषा में लिखा है.

इसका इतिहास डेढ़ से दो सौ साल पुराना है. उससे पूर्व मिथिलाक्षर में ही लिखे जाने का प्रचलन था और इसके साक्ष्य भी मौजूद हैं. ऐसे सिक्कों का उपयोग एक टोकन के रूप में किया जाता था जिसे राम टंका कहा जाता है.

पुरानी सभ्यता विकसित होने का हो सकता है सबूत : डॉ शिवकुमार मिश्र

डॉ शिव कुमार मिश्र बताते हैं कि शुंग कुषाण काल में नदी किनारे ही लोग अपना ठिकाना या नगर स्थापित किया करते थे. उस समय नदी ही यातायात का साधन था. नदी किनारे ही नगर बसाने पर सुविधा मिलती थी. इस इलाके में पुरानी नगर सभ्यता विकसित होने का एक सबूत यह भी हो सकता है.

पंचायत के मुखिया राम बहादुर चौधरी बताते हैं कि लगातार इस क्षेत्र में एक के बाद एक कर कई दुर्लभ वस्तुएं मिल रही हैं, जो निश्चय ही पुराने इतिहास का गवाह है. इस स्थल को संरक्षित करने के दिशा में सरकार को पहल करनी चाहिये.

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