बिहार प्रदेश इंटक द्वारा 26 मई को काला दिवस के रूप में मनाया गया
प्रदेश अध्यक्ष सह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंद्र प्रकाश सिंह के निर्देशानुसार बिहार प्रदेश इंटक ने काला दिवस मनाया
श्रीनारद मीडिया, प्रकाश चन्द्र द्विवेदी, पटना (बिहार)
बिहार प्रदेश इंटक के प्रदेश सचिव अखिलेश पांडे ने कहा कि कृषि कानूनों को संसद से गैर-जनतांत्रिक तरीके से पास कर इसे लागू करने के विरोध में दिल्ली के बाॅर्डर पर 26 नवंबर 2020 से शुरू किए गए किसान आंदोलन को आज 6 माह पूरे हो गये। साथ ही मोदी सरकार को शपथ लिए हुए भी 26 मई बुधवार को 7 वर्ष पूरे हो गये। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा अपनी बैठक में लिए गए निर्णय के आलोक में किसान मोर्चा ने इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने भी इसे काला दिवस के रूप में मनाया। ट्रेड यूनियनों द्वारा भी कार्यस्थल पर काली पट्टी बांधकर, मांगों की तख्ती पकड़ एवं काले झंडे दिखाकर कार्यक्रम आयोजित किये गये। पांडे ने कहा कि काला दिवस के मौके पर हमारी प्रमुख मांगे कोविड से बचाव के लिए सभी को मुफ़्त टीकाकरण, मुफ़्त राशन, गैर आयकर दाता परिवारों को प्रतिमाह 7500 रुपये की आर्थिक सहायता, तीनों कृषि कानून वापस लेना, एमएसपी लागू करने हेतु केन्द्रीय कानून लाना, चारों लेबर कोड वापस लेना, भारतीय श्रम सम्मेलन का तुरंत आयोजन कराना, निजीकरण/काॅरपोरेटीकरण की नीति पर रोक लगाना हैं।
काला दिवस के अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष चंद्रप्रकाश सिंह ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा लगातार काॅरपोरेट घरानों व पूंजीपतियों के हित में सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, श्रम कानूनों को समाप्त कर श्रम कोड को कार्यान्वित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में केन्द्र सरकार की जनविरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी नीतियों को और अक्रामक तरीके से जारी रखा है। कोविड रोकथाम की आड़ में लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। आपदा में अवसर के नाम पर करोड़ों लोगों के रोजगार छीन गए। वेतन कटौती जारी है, पेट्रौल, डीजल व अन्य जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ा कर आम लोगों का जीना मुश्किल कर दिया गया है। प्रवासी मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल चलने व भूखों मरने पर मजबूर किया गया।
सिंह ने कहा कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में ट्रेड यूनियनों ने 26 नवम्बर 2020 को सफल देशव्यापी हड़ताल किया था। उसी दिन किसानों ने भी अपना आंदोलन दिल्ली के बाॅडरों पर शुरू किया था, जो अभी भी जारी है। कोविड की दूसरी लहर ने केन्द्र व राज्य सरकारों की बदइंतजामी की कलई खोल कर रख दी है। सरकारों ने पिछले साल आई महामारी से कुछ नहीं सीखा। जरूरत पड़ने पर पर्याप्त आईसीयू, बेड, आक्सीजन, जीवन रक्षक दवायें आदि भी देश के लोगों को उपलब्ध नहीं हो सकी। पूरे देश में इसके लिए हाहाकार मचता रहा, लोग रोते रहे, सड़कों पर तड़पते और मरते रहे। परंतु सरकार राजनीति में मस्त रही और दोषारोपण का दौर जारी रहा। बाजार में इन चीजों की जमकर काला बाजारी हुई और निजी अस्पतालों ने आमलोगों को जमकर लूटा भी। परंतु इस बीच सरकारी तंत्र मूकदर्शक बना देखता रहा। सरकारी व्यवस्था में बैठे आला अधिकारियों की बिना मिली भगत के यह सब संभव नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा कि अप्रैल व मई में हुई असमय मौत से लोगों को बचाया जा सकता था। परंतु सरकारों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की लगातार अपराधिक अवहेलना एवं निजी क्षेत्र पर आश्रित होने का ही नतीजा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की इन नाकामियों को व्यापक प्रचार से उजागर करने साथ ही जरूरतमंद लोगों तक राहत पहुंचाने की जरूरत है। इस अवसर पर बिहार के प्रत्येक जिला से ऑनलाइन पोस्ट एवं बिहार प्रदेश के सभी पदाधिकारियों एवं इंटक के साथियों ने अपने अपने कार्यस्थल पर काला बिल्ला लगाकर काला दिवस के रूप में मनाया।
इस अवसर पर पटना में प्रदेश महासचिव नंद मंडल, प्रदेश सचिव अखिलेश पांडेय, प्रभात कुमार सिन्हा, पवन कुमार, राम कुमार झा के नेतृत्व में, रघुनाथपुर में विजय कुमार भागवत के नेतृत्व में, आंदर में पिंटू कुमार के नेतृत्व में लोगों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया व विरोध प्रदर्शन किया।
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