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पतइया बाबा के तप साधना के आगे झुका कड़ाके की ठंढ का तापमान - श्रीनारद मीडिया

पतइया बाबा के तप साधना के आगे झुका कड़ाके की ठंढ का तापमान

पतइया बाबा

पतइया बाबा के तप साधना के आगे झुका कड़ाके की ठंढ का तापमान

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पतइया बाबा के मुताबिक उनका जन्म 1918 यानी पूरे 105 वर्ष पूरे किये

श्रीनारद मीडिया, मनोज तिवारी, छपरा (बिहार):

पतइया बाबा

हाड़ काँपा देने वाले ठंड में एक ओर जहाँ लोग घरों में दुबके हुए हैं। आम जनजीवन अस्त ब्यस्त हो गया है। ठंड की वजह से मृत्युदर में जबरदस्त इजाफा हुआ है। वहीँ साधु-संत अपनी त्याग व तपस्या तथा भक्ति की मस्ती में कुछ अलग ढंग का जीवन यापन कर दुसरो को अचंभित करते रहे हैं।

कुछ ऐसा ही सारण जिले के माँझी प्रखंड के बहोरन सिंह टोला के समीप सरयू नदी के किनारे स्थित रामजानकी मन्दिर में। जी,हाँ। यहां के पुजारी आजकल चर्चा में है। दरअसल हम बात कर रहे है इस मंदिर के पुजारी रामजी दास उर्फ पतइया बाबा की, जो अपनी उम्र 105 वर्ष होने का दावा करते है। उनके दावे के मुताबिक उनका जन्म 1918 में हुआ था। परंतु इनकी दैनिकी ऐसी की युवा भी देखकर दांतों तले अपनी उंगली दबा लेते हैं।

हम बात करते है इनके दिनचर्या की। इस बर्फीली ठंडी मौसम में भी वे प्रतिदिन सरयू नदी में स्नान करते है वो भी सुबह साढ़े चार बजे। फिर शाम छह बजे। दरअसल वे स्नान करके ही दोनो समय भगवान का पूजन करते हैं। सिर्फ इतना ही नही दिन में भी शौच के उपरांत स्नान करना उनकी दिनचर्या में शामिल है।

इतने वृद्ध होते हुए भी इनका सालों भर खुद भंडारा बनाना, भगवान को भोग लगाना और सरयू नदी का ही जल पीना उन्हें अन्य लोगों से भिन्न करता है। वही दिन भर का समय वे मन्दिर परिसर की सफाई करने तथा नगर भ्रमण करने में बिताते हैं।

बताते हैं कि पतइया बाबा ने साठ के दशक में सेना की नौकरी छोड़ कर सन्यास धारण कर लिया था। तीस वर्षों तक धार्मिक तीर्थस्थलों तथा साधु संतों के सानिध्य में रहकर उन्होंने घोर तपस्या किया।

उनका दावा है कि वे अब भी पूरी तरह स्वस्थ हैं तथा कभी उन्हें इलाज की जरूरत नही पड़ी। राम जानकी मंदिर में वे लगभग तीस वर्षों से पूजा पाठ करते आ रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि वे जब से मन्दिर पर आए तब से कद काठी के मामले में वैसे ही हैं।इस बाबा की एक और अनोखी पहल के सब कायल हैं।

भक्त गण चढ़ावा स्वरूप उन्हें जो कुछ भी देते हैं, वे कुछ ही घण्टों में किसी जरूरतमंद को देकर फिर विरक्त हो जाते है। शरीर पर वस्त्र के नाम पर लंगोट के अलावा एक धोती को लपेट कर पूरा तन ढकते है। साधु बाबा स्वयं दिन रात मिलाकर दो बार भोजन ग्रहण करते है।वे साल का 24 एकादशी व्रत का भी विधिवत अनुष्ठान करते हैं।

 

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