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BJP:अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। - श्रीनारद मीडिया

BJP:अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।

BJP:अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“बीजेपी यूट्यूब चैनलों और ट्विटर हैंडल से पैदा नहीं हुई है, बीजेपी जमीन पर काम करके, गरीबों के साथ तपकर आगे बढ़ी है।” देश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने यूं ही इस बात का जिक्र नहीं किया।

6 अप्रैल 1980 में भारतीय राजनीति के अस्तित्व में आई भारतीय जनता पार्टी (BJP) आज के समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। वहीं, प्राथमिक सदस्यता के मामले में यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दल है। कभी दो सीटों पर सिमटने वाली पार्टी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटों पर जीत हासिल की है।

श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्‍याय ने रखी नींव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी का इतिहास उसके नाम और चिह्न से भी पुराना है। सनद रहे कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने की शुरुआत दो लोगों के साथ हुई।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक भारतीय राजनीतिज्ञ बैरिस्टर और शिक्षाविद थे, जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के तौर पर काम किया। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर नेहरू से गहरे मतभेद होने के कारण उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर जनसंघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बना।

1951 के वक्त जनसंघ का चुनावी चिह्न दीपक हुआ करता था। श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी और सामाजिक कार्यकर्ता दीनदयाल उपाध्‍याय की जोड़ी ने इस पार्टी की बुनियाद खड़ी की, तो अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने पार्टी की पहुंच को देशभर में विस्तार देने का काम किया और आज के समय में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा पार्टी को भारतीय राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ बना दिया है।

भारतीय जनसंघ के नेता शुरू से ही कश्मीर की एकता, गोरक्षा, जमींदारी व्यवस्था और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज को खत्म करने जैसे मुद्दों पर मुखर रहे। हालांकि, साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव में यह पार्टी कुछ ज्यादा खास करने में नाकाम रही। पार्टी को महज 3 सीटें मिली।

‘कमल’ की जगह ‘हलदार किसान’ ने ले ली

वक्त गुजरता गया और देश की राजनीति में कई बदलाव आते चले गए। भारत की आजादी के बाद कांग्रेस एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी थी, जिसका पूरे देश में डंका बज रहा था। जवाहर लाल नेहरू के बाद कांग्रेस की कमान संभाल रही इंदिरा गांधी ने साल 1977 में आपातकाल खत्म करने की घोषणा की।

आपातकाल की वजह से देशभर में बड़ी तादाद में लोगों के मन में कांग्रेस को लेकर आक्रोश था। जनता कांग्रेस की जगह कोई और राजनीतिक दल के विकल्प की मांग कर रही थी। समाजसेवी जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर एक नए राष्ट्रीय दल ‘जनता पार्टी’ का गठन किया गया।

इसी दौरान जनसंघ को जनता पार्टी बनाने की मांग उठने लगी। जनता पार्टी की छत के नीचे कई छोटे राजनीतिक दल आकर खड़े हो गए। इसी दौरान भारतीय जनसंघ का चुनाव चिह्न ‘दीपक’ से बदलकर जनता पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हलधर किसान’ में बदल गया।

जनता पार्टी का बनना सफल साबित हुआ और देशवासियों ने इंदिरा गांधी की जगह जनता पार्टी पर भरोसा जताया। मोरारजी देसाई को देश के नया प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि, कुछ वक्त के बाद पार्टी में नेताओं के बीच कलह की खबरें आने लगी। यह पार्टी जनसंघ के आए नेताओं के दोहरे सदस्यता और विश्वास के मुद्दे पर टूट गई।

अटल और आडवाणी’ ने बदली तस्वीर

इसके बाद जनता पार्टी में मौजूद संघ के नेताओं का मानना था कि अब नए राजनीतिक दल बनाने की जरूरत है। इसके बाद योजना के तहत 6 अप्रैल 1980 के दिन मुंबई में एक नई राजनीतिक पार्टी की स्थापना हुई। पार्टी का नाम रखा गया ‘भारतीय जनता पार्टी।’ बता दें कि इसी दिन साल 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी यात्रा के बाद नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था। उस समय ‘अटल और आडवाणी’ भारतीय जनता में दो बड़े चेहरे बनकर उभरे।

साल 1984 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसी साल आम चुनाव कराए गए, जिसमें बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुई। इसके बाद साल 1986 में लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन की आवाज बुलंद की। पार्टी में एक ओर जहां लालकृष्ण आडवाणी जैसे हिंदू राष्ट्रवाद नेता मौजूद थे, जो हिंदू धर्म को लेकर काफी मुखर थे। वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसा नेता थे, जो गांधीवादी समाजवाद पर भरोसा रखते थे और वो काफी नरम मिजाज के माने जाते थे।

पार्टी ने उस वक्त एक बड़ा फैसला लिया और अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष का कमान सौंप दिया गया। 1980 से लेकर अगले 6 साल तक रहे वाजपेयी की जगह तेज-तर्रार और राम मंदिर के मुद्दे पर मुखर होकर बोलेने वाले आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला पार्टी के लिए सही साबित हुआ। साल 1989 में भाजपा ने 85 सीटें जीती।

देश में खिलने लगा ‘कमल’

इसके बाद भापा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1991 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 120 सीटें जीती तो साल 1996 में जीत का आंकड़ा 161 तक पहुंच गया। इस बार भी भाजपा के पास सरकार बनाने का संख्या बल नहीं था। हालांकि,सहयोगियों के समर्थन पर भरोसा करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया, लेकिन दूसरी पार्टियों से समर्थन न मिलने की वजह से उनकी सरकार महज 13 दिन तक ही चल सकी।

इसके अलावा, 1998 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 182 सीटें हासिल की। एक बार फिर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की गठबंधन सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया गया। यह सरकार 13 महीनों तक चली। इसके बाद साल 1999 में हुए मध्यावधि चुनाव में बीजेपी को 182 सीटें हासिल हुई। इस बार भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ पूरे 5 साल तक सरकार चलाया।

दस साल तक विपक्ष की भूमिका निभाई

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21वीं सदी की शुरुआत में हुई पहली लोकसभा चुनाव यानी साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के आगे बीजेपी की ‘इंडिया शाइनिंग और फील गुड’ का नारा बेअसर साबित हुआ। न सिर्फ साल 2004 में, बल्कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को विपक्ष की जिम्मेदारी ही निभानी पड़ी।

‘मोदी-शाह’ की जोड़ी ने किया कमाल

इसी दौर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘गुजरात मॉडल’ पूरे देश में जोर-शोर से सुनाई देने रहा था। गुजरात की राजनीति से निकलकर नरेन्द्र मोदी,  केन्द्र की राजनीति में आ गए। साल 2014 में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा।

वहीं, नरेन्द्र मोदी ‘अच्छे दिन’ का नारा देकर देशवासियों को भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा किया। यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और देश में बढ़ती महंगाई से परेशान जनता ने नरेन्द्र मोदी पर भरोसा जताया और भाजपा को दिल खोलकर वोट दिए।

282 सीटों के साथ पहली बार पार्टी केन्द्र में अपने दम पर सरकार बनाने के लिए तैयार थी। इस जीत के पीछे गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति भी थी। अगले पांच सालों में भाजपा और ताकतवार होकर ऊभरी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 303 सीटें हासिल करने में कामयाब हुई।

भाजपा कार्यकर्ताओं की मेहनत लाई रंग

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भाजपा पार्टी के पहले अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं ये भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।’

तकरीबन 43 साल बाद आज के समय भाजपा, देश की सबसे ताकतवर पार्टी बन चुकी है। हालांकि, इस शिखर तक पहुंचने के लिए पार्टी के अनगिनत कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की है। वक्त के साथ भाजपा ने अपनी राजनीति और रणनीति दोनों बदली है।

 

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