नम आंखों से बरसते रहे दोन के कर्मयोगी के प्रति श्रद्धा के सुमन!
दोन स्थित जे आर कॉन्वेंट के प्रांगण में स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय जी के श्राद्ध कार्यक्रम में पहुंचे हजारों प्रबुद्धजन
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में सीवान सीवान मंगलवार का दिन। महाभारतकालीन गुरु द्रोण की नगरी दोन। दोन के सुनीता विद्यानगरी स्थित जेआर कॉन्वेंट के प्रांगण का माहौल बेहद गमगीन था। वहां मौजूद तो सैकड़ों थे, पर कहानी सभी की एक ही थी। सभी बाते कर रहे थे स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय जी की। बात करते करते अचानक कहीं खो जा रहे थे। शायद कर्मयोगी पांडेय जी की स्नेहिल यादें सभी की तरोताजा हो जा रही थी। बातों का क्रम भंग हो जा रहा था।
श्राद्धकर्म के सनातनी कर्मकांड की प्रक्रिया उनके सुपुत्र सतीश पांडेय निभा रहे थे तो बाहरी व्यवस्थाओं को पुत्र संजय पांडे देख रहे थे। उपस्थित प्रबुद्धजन नम आंखों से श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे थे। पिता को कर्मकांड के अनुसार अंतिम विदाई देती बेटियां जब बिलखने लगी तो प्रांगण में उपस्थित तकरीबन हर आंख से अश्रुधारा प्रवाहित हो उठी।
आखिर स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय जी की जिंदगी संदेश का सिलसिला रही है। कर्म के प्रति आग्रह और मां नारायणी के प्रति अगाध आस्था ही तो ताजिंदगी स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय जी की जमा पूंजी रही है। उनके कर्म के प्रति स्नेह और संस्कारों के प्रति अनुराग परिवार को मंगल आशीष से सिंचित करते दिख जाता है। उनकी पुस्तक ‘ अनुभवों का आकाश’ हर विकट परिस्थिति में जिंदगी का सुमंगल संदेश गुनगुना जाती है। दोन के सापेक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा और कौशल की बयार बहाने का उनका सदप्रयास सदियों तक उनके कृतित्व को अमर बनाए रखेगा।
बचपन में ही मां की ममतामई आंचल के स्नेह से वंचित होनेवाला मासूम बालक, मुंबई दिल्ली की दुश्वारियों में युवावस्था में विकट कष्टों को सहने वाला युवक, हुनर को अपनी सफलता का आधार बना कर उद्योगपति बनने वाले बिहारी सेठ, पांचवीं तक पढ़ने वाले तकरीबन आठ पुस्तकों के रचयिता संवेदनशील साहित्यकार, एक पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा और कौशल का उजास बहाने वाले कर्मयोगी स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय यद्यपि हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी यादें और उनका कृतित्व ही पता नहीं कितनी जिंदगियों को रोशन कर जाएगी।
चाहे वे रघुनाथपुर के बीडीओ श्री अशोक तिवारी, डॉक्टर रामेश्वर कुमार, डॉक्टर शरद चौधरी, डॉक्टर आर के सिंह, नारायण कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर परमेंद्र नारायण सिंह, समाजसेवी मंटू शाही आदि हजारों प्रबुद्धजनों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए और उनके स्नेहिल व्यक्तित्व और कर्मयोगी कलेवर को नमन किया। लेकिन सबकी जुबां पर यह बात जरूर थी….
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।
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