पुस्तकें कुछ कहना चाहती हैं,तुम्हारे पास रहना चाहती हैं.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पुरानी कहावत है कि किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं. लेकिन अब दोस्ती के रिश्ते में दरार आ गयी है. कई बड़े शहरों में पुस्तक मेले और साहित्य उत्सव आयोजित होते हैं ताकि लोगों की किताबों के प्रति दिलचस्पी बनायी रखी जा सके. लेकिन ये प्रयास भी बहुत कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं. पिछले दिनों रांची में प्रभात खबर ने भी टाटा समूह के साथ एक ऐसे ही साहित्य उत्सव का आयोजन किया था.
लेकिन इसके प्रति लोगों में कोई खास उत्साह नजर नहीं आया. हम भी चाहते हैं कि साहित्य उत्सव के माध्यम से पठन पाठन को बढ़ावा मिले. यह सर्वविदित है कि साहित्य में एक जीवन दर्शन होता है और यह सृजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है. साहित्य की समाज में एक छोटी मगर महत्वपूर्ण भूमिका है. इसे पढ़े-लिखे अथवा प्रबुद्ध लोगों की दुनिया भी कह सकते हैं. आजादी की लड़ाई हो या जन आंदोलन सब में साहित्य और किताबों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
साहित्य की विभिन्न विधाओं ने समाज का मार्गदर्शन किया है. बावजूद इसके किताबों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. टेक्नोलॉजी के विस्तार ने किताबों के सामने गंभीर चुनौती पेश की है. एक अच्छे पुस्तकालय के बिना ज्ञान अर्जित करना मुश्किल है. वहीं ऐसी दुर्लभ किताबें मिलती हैं, जो आम तौर पर उपलब्ध नहीं होती हैं. अपने आसपास देख लें, जो अच्छे पुस्तकालय थे, वे बंद हो रहे हैं. यदि चल भी रहे हैं, तो उनकी स्थिति खस्ता है.
यह बहुत पुरानी बात नहीं, जब लोग निजी तौर पर भी किताबें रखते थे और उनमें गर्व का भाव होता था कि उनके पास किताबों का संग्रह है. पहले हिंदी पट्टी के छोटे-बड़े शहरों में साहित्यिक पत्रिकाएं और किताबें आसानी से उपलब्ध हो जाती थीं. अब हिंदी के जाने-माने लेखकों की भी किताबें आपको आसानी से नहीं मिलेंगी. छोटे शहरों में तो यह समस्या और गंभीर है. हिंदी भाषी क्षेत्रों की समस्या यह रही है कि वे किताबी संस्कृति को विकसित नहीं कर पाये हैं. नयी मॉल संस्कृति में हम किताबों के लिए कोई स्थान नहीं निकाल पाये हैं.
पिछले दिनों बिहार विधानसभा ने एक इतिहास रचा. भाकपा-माले के विधायक व बिहार विधानसभा पुस्तकालय समिति के सभापति सुदामा प्रसाद के नेतृत्व में विधानसभा के इतिहास में पहली बार पुस्तकालयों के बारे में एक प्रतिवेदन पेश किया गया. सुदामा प्रसाद का कहना था यह संभवत देश में भी पहला प्रतिवेदन है. यह प्रतिवेदन बिहार के 51 सार्वजनिक क्षेत्र के पुस्तकालयों को लेकर तैयार किया गया है, जिसमें पुस्तकों व आधारभूत संरचनाओं की जांच-पड़ताल की गयी है.
इस समिति ने राज्य के छह जिलों- कैमूर, अरवल, शिवहर, बांका, शेखपुरा व किशनगंज- में एक भी पुस्तकालय नहीं पाया तथा बाकी 32 जिलों में जो 51 पुस्तकालय हैं, उनमें से अधिकतर पुस्तकालयों की स्थिति बेहद खराब है. समिति ने पुस्तकालयों की स्थिति में सुधार के लिए अपनी अनुशंसाएं विधानसभा के पटल पर रखी हैं.
पोकरण का नाम आते ही हमारे दिमाग में भारत के परमाणु बम परीक्षण का दृश्य सामने आ जाता है. लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि राजस्थान के जैसलमेर जिले के कस्बे पोकरण में एशिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय भी है. लेकिन न तो लोगों को इसकी जानकारी और न ही वे इस सुविधा का लाभ उठा पा रहे हैं. वर्ष 1981 में जगदंबा सेवा समिति के संस्थापक व क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हरवंश सिंह निर्मल, जिन्हें भादरिया महाराज के नाम से जाना जाता है, ने भादरिया मंदिर के और विशाल धर्मशाला के साथ-साथ एक विशाल पुस्तकालय की भी नींव रखी थी.
यही पुस्तकालय आज एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है. यहां वर्तमान में हर विषय से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध हैं. पुस्तकों की देखरेख व संरक्षण के लिए करीब 562 अलमारियां हैं. इसी तरह दुर्लभ साहित्य की माइक्रो सीडी बनाने व उन्हें रखने के लिए अठारह कमरों का भी निर्माण हुआ है. पुस्तकालय में अध्ययन के लिए एक विशाल हॉल है, जिसमें चार हजार लोग बैठ सकते है. पता नहीं, यह कितना सच है, लेकिन सोशल मीडिया की चर्चाओं के मुताबिक यह पुस्तकालय अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है.
ऐसा नहीं है कि कुछ एक बुद्धिजीवी ही पठन पाठन को लेकर चिंतित हों. इस दिशा में समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने अनूठी पहल की हैं. सैलून में अमूमन मॉडल के पोस्टर, टीवी और गानों के अलावा एक अखबार भी उपलब्ध होता है. लेकिन तमिलनाडु के एक सैलून में टीवी, पोस्टर और गानों के शोरगुल बजाय एक छोटी सी लाइब्रेरी खोल रखी है.
आइएएस अधिकारी अवनीश शरण ने उनकी दुकान की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की और बताया कि अगर कोई ग्राहक इस सैलून में किताबें पढ़ता है, तो उसे बाल कटवाने पर डिस्काउंट मिलता है. महाराष्ट्र के सतारा जिले में 67 वर्षीय निवासी जीवन इंगले ने लोगों के बीच किताबें पढ़ने की आदत डालने का अभियान चला रखा है. इसके लिए वह अपनी साइकिल पर एक पुस्तकालय बना कर लोगों को किताबें बांटते हैं.
मध्य प्रदेश के सिंगरौली के हर्रई शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल में उषा दुबे शिक्षिका हैं. कोरोना काल में उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए खुद की स्कूटी में चलता-फिरता पुस्तकालय बनाया और बच्चों को शिक्षित करने का अभियान शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका जिक्र मन की बात में किया था. कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से भेंट में एक-दूसरे को किताबें देने की अपील की थी. लोगों ने इस बेहतरीन सुझाव का कुछ समय तो अनुसरण किया, फिर इसे भुला दिया. महात्मा गांधी के अनुयायी इंगले द्वारा 12 साल पहले शुरू किया गया यह चलता-फिरता पुस्तकालय काफी लोकप्रिय हो गया है.