बक्सर के लिट्टी-चोखा मेले का हुआ समापन
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार भारत के उन राज्यों में शुमार है, जहां सबसे ज्यादा त्योहार मनाए जाते हैं और उतने ही मेले लगते हैं. बिहार की इस पावन धरा पर लोगों का सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा पर अटूट आस्था है. यूं तो बिहार के सोनपुर मेले की ख्याति विश्व प्रसिद्ध है. लेकिन आध्यात्म की नगरी बक्सर में हर साल मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से पंचकोस मेले की शुरुआत होती है. पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले को पंचकोस या फिर लिट्टी-चोखा मेले के नाम से भी जाना जाता है.
गुरुवार को इस अनोखे मेला का हुआ समापन
बता दें कि विश्वामित्र ऋषि के पावन धरा पर इस बार लिट्टी चोखा मेले की शुरुआत बीते 13 नवंबर को मार्गशीर्ष(अगहन) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को हुई थी. पांच दिनों के बाद आज 17 नवंबर को इस महोत्सव का चरित्रवन बक्सर में विधि-विधान से समापन हुआ. लिट्टी चोखा मेले को पंचकोसी मेला के नाम से भी जाना जाता है. पांच दिनों तक लगने वाले इस मेले में देश भर से श्रद्धालु आते हैं और यहीं पर रहकर लिट्टी-चोखा बनाते हैं और भगवान श्रीराम का प्रसाद जानकर उसे खाते हैं. यह मेला अपने आप में बहुत अद्भुत है.
ऐसे पूर्ण होती है पांच कोस की यात्रा
लिट्टी चोखा मेला अपने आप में अद्भुत है. पांच कोस की दूरी तय कर समाप्त होने वाले इस मेले की शुरुआत बक्सर से सटे अहिरौली से होती है. जहां माता अहिल्या का मंदिर है. दूसरे दिन भक्त नदांव पहुंचते है, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव और पांचवे और आखिरी दिन भक्त बक्सर के चरित्रवन पहुंचते हैं. जहां विधिवत मेले का आयोजन होता है. इन पांच दिनों की यात्रा में श्रद्धालु अलग-अलग तरह का पकवान बनाकर श्री राम और माता जानकी को समर्पित करते हैं. पांचवे दिन चरित्रवन में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. क्या आम और क्या खास सभी मर्य़ादा पुरुषोत्तम की भक्ति में लीन होकर गोबर से बने उपले पर भक्ति भाव से लिट्टी-चोखा बनाते हैं. भगवान राम को लिट्टी चोखा का भोग लगाने के बाद श्रद्धालु बिहार के इस अनोखे व्यंजन को चखते हैं.
श्री राम मय रहा माहौल
बता दें कि प्रदेश में गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है. रातें सर्द होने लगी है. बावजूद सर्द रात में लिट्टी चोखा मेले में आये श्रद्धालु और संत समाज के सैकड़ों लोग बक्सर में जुटे रहे. पांच दिनों तक भक्तिमय माहौल बना रहा है.धर्म के जानकारों ने बताया कि इस पंचकोसी परिक्रमा मेले का महत्व और वर्णन वारह पुराण के श्लोक-1 से लेकर 197 तक विस्तृत वर्णन किया हुआ है. इसके अलावे श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इस महोत्सव के महत्व की चर्चा की गयी है.
मेले का पौराणिक महत्व व कहानी
धर्म के जानकार बताते हैं कि बक्सर में विश्वामित्र ऋषि के आग्रह पर आए भगवान श्री राम ने ताड़का, सुबाहु और अन्य राक्षसों का संहार कर किया था. इसके बाद जब वे क्षेत्र के महर्षियों का आर्शीवाद लेने के लिए पांच दिनों की यात्रा कर पांच ऋषियों के आश्रम में गए. वहां श्री राम ने लक्ष्मण का साथ रात्रि विश्राम किया. इस दौरान ऋषि मुनियों ने भगवान राम को भोजन ग्रहण करने के लिए लिट्टी चोखा दिया था. इसके बाद ही पंच कोसी मेले की शुरुआत हुई.
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