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2021 तक करीब नौ लाख नागरिकों ने छोड़ी भारत की नागरिकता,क्यों?

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विदेश में बसने की बढ़ती प्रवृति.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कई अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में भारत को रहने के लिए दुनिया के बेहतर देशों में गिना गया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में साढ़े आठ लाख से ज्यादा लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी है। भारत सरकार के अनुसार 30 सितंबर, 2021 तक 8,81,254 नागरिकों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। वहीं वर्ष 2016 से 2020 के बीच 10,645 विदेशी नागरिकों ने भारत की नागरिकता के लिए आवेदन किया। इनमें पाकिस्तान से 7,782 और अफगानिस्तान से 795 नागरिक शामिल थे। ये आंकड़े अपनी तस्वीर खुद बयान करते हैं।

भारत से पलायन कर अमेरिका जाने वाले 44 प्रतिशत भारतीय बाद में वहां की नागरिकता हासिल कर वहीं बस जाते हैं। कनाडा और आस्ट्रेलिया जाने वाले 33 प्रतिशत भारतीय भी ऐसा ही करते हैं। ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और सिंगापुर आदि देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं। गृह मंत्रलय के अनुसार 1.25 करोड़ भारतीय नागरिक विदेश में रह रहे हैं, जिनमें 37 लाख लोग ओसीआइ यानी ओवरसीज सिटीजनशिप आफ इंडिया कार्डधारक हैं। हालांकि इन्हें भी वोट देने, देश में चुनाव लड़ने, कृषि संपत्ति खरीदने या सरकारी कार्यालयों में काम करने का अधिकार नहीं होता है।

पढ़ाई, बेहतर करियर, आर्थिक संपन्नता और भविष्य को देखते हुए भारत से बड़ी संख्या में लोग विदेश का रुख करते हैं। पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोग वापस भारत नहीं लौटते हैं। करियर की संभावनाओं को देखते हुए और अच्छे अवसर मिलने के कारण वे विदेश में ही बस जाते हैं। भारत में एकल नागरिकता का प्रविधान है। भारत का संविधान भारतीयों को दोहरी नागरिकता रखने की अनुमति नहीं देता है। भारत का तर्क हमेशा यही रहा है कि आपकी एक राष्ट्र के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। दो राष्ट्रों के प्रति आप एक साथ निष्ठा नहीं रख सकते।

नागरिकता संशोधन अधिनियम के मुताबिक कोई भी भारतीय नागरिक दो देशों की नागरिकता नहीं ले सकता। अगर वह ऐसा करता है तो अधिनियम की धारा-नौ के तहत उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त की जा सकती है। हालांकि इटली, आयरलैंड, पराग्वे और अर्जेटीना जैसे देशों में दोहरी नागरिकता के प्रविधान हैं।भारत में नागरिकता छोड़ने की फीस 175 डालर यानी (13,042 रुपये) है।

पाकिस्तान में यह फीस 150 डालर (11,179 रुपये) है। चीन इसके 39.33 डालर (2,931 रुपये) लेता है। पिछले दिनों अमेरिका ने नागरिकता छोड़ने की फीस में 422 फीसद इजाफा करके इसे 450 डालर से सीधे 2350 डालर (1,75,145 रुपये) कर दी। हालांकि दुनिया के बहुत से देश ऐसे भी हैं, जो इसकी कोई फीस नहीं लेते। इनमें जापान, आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। सवाल उठता है कि जब भारत में ‘सब बेहतर है’ तो फिर इतनी बड़ी संख्या में लोग नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं?

कई जानकारों का मानना है कि भारत से बड़ी संख्या में हो रहे पलायन की वजह आमतौर पर बेहतर करियर, आर्थिक संपन्नता और बच्चों का भविष्य बड़े कारण रहते हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, बीते कुछ सालों में देखा गया है कि विदेश पढ़ाई के लिए जाने वाले लोगों में से करीब 80 फीसदी लोग वापस भारत लौटते ही नहीं हैं और विदेशों में ही बस जाते हैं. माना जा रहा है कि आने वाले सालों में इस पलायन में और बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. इसकी वजह ये है कि अब बड़ी संख्या में भारतीय पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे हैं. ऐसे में भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी की आशंका है.

गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा को बताया कि इसी तरह बीते पांच सालों में 10,645 लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है. इनमें से 4177 को यह प्रदान की जा चुकी है. नागरिकता का आवेदन करने वालों में 227 अमेरिका के, 7782 पाकिस्तान के, 795 अफगानिस्तान के और 184 बांग्लादेश के हैं. राय ने बताया कि वर्ष 2016 में 1106 लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी. वहीं 2017 में 817 को, 2018 में 628, 2019 में 987 और 2020 में 639 को देश की नागरिकता दी गई है.

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