2050 तक हर चौथा व्यक्ति सुनने की क्षमता खो चुका होगा,कैसे?

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दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

म्यूजिक या फिर ओटीटी प्लेटफार्म पर तेज आवाज में शो देखते-सुनते हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी आदतों को धीरे-धीरे बदल लें। तेज आवाज से आपकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में तेज आवाज में म्यूजिक सुनने की वजह से लोग अपनी सुनने की क्षमता खो रहे हैं। इस समस्या से 60 प्रतिशत युवा और किशोर प्रभावित हो रहे हैं।

आज दुनियाभर में करीब 40 करोड़ लोग अपनी सुनने की क्षमता खो चुके हैं। वर्ल्ड हियरिंग रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक यह आंकड़ा 70 करोड़ से ज्यादा पहुंच जाने की आशंका है। वैसे तो सुनने की क्षमता खोने के कई कारण हैं, लेकिन एक बड़ा कारण लंबे समय तक तेज आवाज में संगीत सुनना भी है। लगातार ऊंची आवाज में म्यूजिक सुनने से कान के परदे और नसों में समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समस्या लंबे समय तक बनी रहती है, तो फिर सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

ईयरफोन से बेहतर हैं हेडफोन : कई बार ईयरबड्स और हेडफोन को एक ही समझ लिया जाता है, लेकिन वास्तव में दोनों एक ही चीज नहीं हैं। ईयरबड्स छोटे होते हैं। ये आमतौर पर सिलिकान या कठोर प्लास्टिक से बने होते हैं, जो कान में आराम से फिट हो जाते हैं। दूसरी ओर हेडफोन उन डिवाइस को कहा जाता है, जो कान के ऊपर बैठते हैं और पूरे कान को ढकते हैं। ईयरफोन और ईयरबड्स का डिजाइन आडियो को ईयरड्रम के करीब लाता है। इसमें साउंडवेव सीधे ईयरड्रम को हीट करता है। इससे ऊंची आवाज पैदा होती है, जो सुनने के लिहाज से इसे खतरनाक बनाता है।

हेडफोन का फिजिकल डिजाइन अवांछित आवाज को ब्लाक करने में मददगार होता है। हालांकि इसमें यह भी देखना होता है कि हेडफोन की पैडिंग (गद्दी) कान को किस तरह से कवर करती है। यह केवल कुछ ध्वनि को ब्लाक कर सकती है। अगर शोर ज्यादा है, तो आवाज कानों तक पहुंचती रहेगी। वहीं ओवर-ईयर हेडफोन आपके कानों को पूरी तरह से कवर करता है और बाहरी शोर को काफी कम कर देता है। कान के लिहाज से नियमित इनर-ईयर ईयरबड्स की तुलना में ओवर-द-ईयर हेडफोन कहीं अधिक सुरक्षित हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर तेज म्यूजिक बजाया या सुना जाए तो यह हानिकारक नहीं है।

नाइज कैंसिलेशन हेडफोन का करें उपयोग : यदि बाहरी शोर से बचने के लिए हेडफोन का वाल्यूम बढ़ा देते हैं, तो ऐसा करना धीरे-धीरे आपके सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। वाल्यूम को बढ़ाने के बजाय नाइज कैंसिलेशन वाले हेडफोन का उपयोग लाभप्रद हो सकता है। इसकी खासियत होती है कि यह बाहरी ध्वनियों को सीमित करता है। चाहें, तो एक्टिव नाइज कैंसिलेशन वाले हेडफोन भी आजमा सकते हैं, जो आसपास की आवाज की निगरानी करके बाहरी शोर को कम करने वाली तरंगें उत्पन्न करता है।

म्यूजिक से लें विराम : अपनी सुनने की क्षमता को ठीक रखना है, तो फिर हेडफोन या ईयरबड्स के उपयोग के दौरान वाल्यूम को कम रखें। अगर आप घर में टीवी देख रहे हैं या फिर साउंडबार की आवाज ज्यादा है तो वाल्यूम कम रखने का प्रयास करें। आपको बता दें कि आप जितनी देर तेज म्यूजिक सुनते हैं, आपके कानों को नुकसान होने की आशंका उतनी ही अधिक होती है। हर 30 मिनट में 5 मिनट या हर 60 मिनट में 10 मिनट का विराम लेने की कोशिश करें। कान की सुरक्षा के लिए 60/60 नियम का पालन करें। 60 मिनट के लिए डिवाइस के अधिकतम वाल्यूम को 60 प्रतिशत पर रखें और फिर एक विराम लें।

वाल्यूम सीमा सेट करें: कुछ डिवाइस की सेटिंग्स में कस्टम वाल्यूम सेट करने की सुविधा होती है। वाल्यूम सीमा निर्धारित करने के लिए डिवाइस की सेटिंग या फिर मैनुअल की जांच करें। अधिकतर स्मार्टफोन में वाल्यूम सेट करने की सुविधा होती है। वाल्यूम सेट करने की स्थिति में यदि आप वाल्यूम बढ़ाने का प्रयास करते हैं, तो सुरक्षित सीमा के बाद एक मैसेज पाप-अप होता है।

लगातार बढ़ रहा है खतरा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) द्वारा जारी हियरिंग रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 2.5 अरब लोग यानी 4 में से 1 व्यक्ति 2050 तक कुछ हद तक हियरिंग लास के साथ जी रहे होंगे। इनमें से कम से कम 70 करोड़ लोगों को कान की देखभाल करने की जरूरत होगी। अनुमान है कि लगभग एक अरब युवाओं को तेज आवाज के संपर्क में आने से हियरिंग लास का खतरा है। डब्ल्यूएचओ मध्यम शोर (आठ घंटे के लिए 85 डेसिबल) के निरंतर संपर्क में रहने या फिर बहुत तेज शोर (100 डेसिबल से ऊपर की ध्वनि 15 मिनट तक सुनने) को अल्पकालिक जोखिम के रूप में परिभाषित करता है।

  • इंसान सुरक्षित रूप से 70 डेसिबल (डीबी) तक की ही आवाज सुन सकता है
  • सामान्य बातचीत का औसत 60 डीबी है
  • लंबे समय तक 70 डीबी से ऊपर की आवाज इंसान की सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है
  • हेडफोन की अधिकतम आवाज 85 से 110 डीबी के बीच हो सकती है
  • 85 डीबी से ऊपर की ध्वनि स्थायी रूप से सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है

जोखिम को ऐसे करें कम

  • डिवाइस का वाल्यूम कम रखें। इसे 60-80 डीबी के बीच ही बनाए रखें। यदि यह 85 डीबी की सीमा पार कर जाता है, तो सुनिश्चित करें कि यह अवधि ज्यादा लंबी न हो
  • एक बार में लंबे समय तक ईयरफोन का उपयोग करने से बचें, खासकर जब आप सो रहे हों। अगर आठ घंटे से ज्यादा समय तक आवाज 80डीबी से अधिक रहती है, तो फिर जोखिम बढ़ जाता है
  • अपने ईयरफोन को नियमित रूप से साफ करते रहें, अन्यथा धूल आदि की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। डिवाइस को साफ करने के लिए निर्माताओं द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें
  • म्यूजिक समारोह, पार्टियों, खेल आयोजनों और नाइटक्लब के दौरान ईयरप्लग का उपयोग करें। साथ ही, नियमित रूप से ब्रेक लेकर अपने कानों को शोर के जोखिम से बचाने का प्रयास करें
  • सुनने की क्षमता को जांचने के लिए फोन पर एक हियरिंग टेस्ट एप डाउनलोड कर लें। अगर कोई दिक्कत है, तो ईएनटी से परामर्श लें

एप्स से मिलेगी मदद

अगर आप स्मार्टफोन में म्यूजिक सुनने के दौरान आवाज को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं, तो फिर कुछ एप्स की मदद ले सकते हैं:

साउंड मीटर: अपने सुनने की क्षमता को बचाए रखने के लिए साउंड मीटर का उपयोग कर सकते हैं। यह एंड्रायड एप एक तरह का डेसिबल मापने वाला सेंसर एप है। इसकी मदद से पता लगा सकते हैं कि आपका माइक्रोफोन कितना लाउड है। वाल्यूम को डेसिबल में देख सकते हैं। यह आपको ग्राफ के जरिए भी दिखाता है। हालांकि इसकी एक सीमा है। यह 90 डेसिबल से अधिक की आवाज के बारे में नहीं बताता है। यह जरूरत से ज्यादा वाल्यूम होने पर ही आपको एलर्ट करेगा। इससे कानों को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी। इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।

हियरिंग टेस्ट: यदि आप यह जांचना चाहते हैं कि आपकी सुनने की क्षमता सही है या नहीं, तो इसकी मदद से आप सुनने की क्षमता की जांच कर सकते हैं। यह भी डेसिबल और फ्रिक्वेंसी स्केल के जरिए कान की क्षमता को जांचता है। इसी तरीके का उपयोग आमतौर पर डाक्टर भी करते हैं। एप को डाउनलोड कर निर्देशों का पालन करें। टेस्ट के अंत में परिणाम दिखाई देंगे। हालांकि यह वास्तविक डाक्टर के पास जाने के समान नहीं है, फिर भी यह सुनने की क्षमता को जांचने का एक तरीका हो सकता है। अगर अधिकतर समय परिणाम अच्छे नहीं रहते हैं, तो फिर बेहतर होगा कि आप टेस्ट करवा लें या फिर डाक्टर से संपर्क करें।

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