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हलाहल पीकर भगवान शंकर बन गये नीलकंठ महादेव-महर्षि श्रीदास जी महाराज - श्रीनारद मीडिया

हलाहल पीकर भगवान शंकर बन गये नीलकंठ महादेव-महर्षि श्रीदास जी महाराज

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श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

सीवान जिला के बड़हरिया प्रखंड के प्राचीन मंदिर में शिवशक्ति प्राणप्रतिष्ठा के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा में सोमवार की रात में अयोध्या से पधारे राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कथावाचक महर्षि श्रीदास जी महाराज ने समुद्र मंथन के कथाप्रसंग सुनाकर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया। उन्होंने भगवान नीलकंठ महादेव के बारे में श्रद्धालुओं को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में समुद्र मंथन किया गया था। इस दौरान समुद्र में से हलाहल भी निकला। सभी की रक्षा के लिए भगवान भोले नाथ ने हलाहल पिया, लेकिन उन्होंने उसे अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ का रंग नीला हो गया। नीले कंठ के कारण ही भगवान भोलेनाथ का नाम नीलकंठ भी है। शिव पुराण के अनुसार शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से ही जुड़ा हुआ है।

कहा कि भगवान भोले नाथ ने अग्नि के समान विष पिया तो उनका कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके भगवान शिव को शीतलता देने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है। बेल पत्र के बारे में बताया कि ये भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है। ऐसे में तीन पत्तियों वाला बेलपत्र शिवजी को बहुत प्रिय है। श्रावण मास में शिवजी की पूजा आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से भोले नाथ प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सभी दुख दूर करते हैं।

इस दौरान सभी भक्तों ने भगवान भोले नाथ के हर-हर महादेव आदि के खूब जयकारे लगाए, जिससे आसपास का वातावरण भक्तिमय हो गया। उन्होंने कहा कि श्री लक्ष्मी और विष्णु के विवाह का मनोहारी वर्णन करते हुए लक्ष्मी व दरिद्रता सगी बहनें बताया। उन्होंने कहा कि लक्ष्मी शौर्य, वैभव और पवित्रता का प्रतीक हैं तो विष्णु धरती के प्रतिपालक हैं। इस दौरान गांव की बच्चियों ने लक्ष्मी और विष्णु विवाह की झांकी प्रस्तुत कर कथा को रोचक बना दिया।

इस अवसर पर महायज्ञ समिति सदस्य कृष्णा सिंह, मदन प्रसाद, आनंद सिंह,राजेश्वर सिंह,धुरंधर साह,रमेश प्रसाद, गुड्डू कुमार, अनिल प्रसाद, नीतेश कुमार, रविरंजन, विश्वजीत सहित अन्य श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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