क्या स्थानीय भाषा में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा सकता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दूनिया के अधिकतर देशों में स्कूली से लेकर उच्च शिक्षा तक वहां की भाषा में दी जाती है। माना जाता है कि मातृभाषा या स्थानीय भाषा में दी जाने शिक्षा के कारण बच्चों का न सिर्फ पढ़ाई में मन लगता है, बल्कि अध्यापक द्वारा बताई जाने वाली सारी बातें भी उन्हें अच्छी तरह से समझ में आती हैं। जापान, जर्मनी, इटली, पोलैंड, रूस, चीन जैसे तमाम देशों में शिक्षा इन देशों की अपनी भाषा में ही दी जाती है और ये देश अपनी तरक्की के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं।
तकनीक से लेकर इनोवेशन तक में इनका नाम है। भारत में बेशक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है, लेकिन देखा जाए तो देश के लगभग सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई की भाषा मुख्यत: अंग्रेजी ही रही है। दुनिया की संपर्क भाषा माने जाने के कारण अंग्रेजी पढ़ने और जानने को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन ऐसा अगर अपनी मातृभाषा की कीमत पर हो, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। अंग्रेजी में कमजोर होने या न समझ पाने के कारण ही पढ़ने की चाहत रहते हुए भी देश के अधिकतर बच्चों को उच्च शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसरों से वंचित रह जाना पड़ता है।
मुश्किलों से पाएं पार : अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही इस विडंबना को समझा। यही कारण है कि नई शिक्षा नीति-2020 में मातृभाषा में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने का संकल्प जताया गया। हालांकि आजादी के 75 वर्षो में इस दिशा में बरती गई उदासीनता के कारण जल्द इस पर अमल करना आसान नहीं है। इसके लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थानों में संचालित ज्यादातर कोर्सो का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण ज्यादातर किताबें अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं, जबकि हिंदी या अन्य स्थानीय भाषा में युवाओं को पढ़ने को प्रेरित करने के लिए सबसे जरूरी है कि उस भाषा में गुणवत्तायुक्त किताबें यथाशीघ्र उपलब्ध कराने के प्रयास किए जाएं।
शिक्षक-लेखक हों प्रेरित : अपनी भाषा में पढ़ाई को प्रोत्साहित करने के लिए किताबें भी तभी सामने आएंगी, जब इस दिशा में शिक्षकों को प्रेरित किया जाएगा। एक सफल शिक्षक के पढ़ाने की सार्थकता तभी होती है, जब छात्र उनकी बात को अच्छी तरह से आत्मसात कर लें और भावी जीवन में उन्हें इसका लाभ मिले। चूंकि तमाम अध्यापक ही पुस्तकों के लेखक भी होते हैं, इसलिए सरकारों और संस्थानों के स्तर पर यदि ऐसे लेखकों को हिंदी में अंग्रेजी के स्तर की या उससे भी अधिक गुणवत्ता वाली सरल-सहज पुस्तकें लिखने के लिए प्रेरित किया जाए, तो इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं और मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के संकल्प को पूरा करने की दिशा में बढ़ा जा सकेगा।
शिक्षण संस्थान भी लें रुचि : हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी पढ़ाई की उपलब्धता को लेकर सरकारी और निजी संस्थानों को भी रुचि लेकर पहल करनी होगी, ताकि यह कदम सिर्फ खानापूरी न होकर सही अर्थो में अपनी मंशा के अनुकूल समाज और देशहित में हो सके। इसके लिए उन्हें अपनी इच्छाशक्ति मजबूत करनी होगी। उन्हें समझना होगा कि यदि उनके द्वारा हिंदी या अन्य स्थानीय भाषा में उच्च शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है, इससे स्थानीय विद्यार्थियों को उनकी भाषा में पढ़ने और बढ़ने का अवसर मिलेगा। वे नवाचार और स्टार्टअप के लिए प्रेरित हो सकेंगे। इसलिए शिक्षण संस्थानों को अपने यहां न सिर्फ हिंदी में कोर्स संचालित करने की समुचित पहल करनी होगी, बल्कि इनके प्रति छात्रों का रुझान बढ़ाने के लिए भी आवश्यक प्रयास करने होंगे।
बढ़ेगी पढ़ने वालों की संख्या : हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा में उच्च तकनीकी शिक्षा उपलब्ध होने की स्थिति में निश्चित रूप से शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। देश के ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों को उच्च तकनीकी शिक्षा का अपना सपना पूरा करने का अवसर मिल सकेगा।
मातृभाषा में पढ़ने से और बढ़ेगा देश : बेशक आज हमारे युवा अंग्रेजी में भी किसी से कम नहीं हैं और देश के साथ दुनियाभर में अपनी प्रतिभा से पहचान बना रहे हैं, लेकिन यदि नई शिक्षा नीति के अनुरूप हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में उच्च तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है, तो इससे निश्चित रूप से और अधिक विद्यार्थियों की रुचि उच्च शिक्षा में बढ़ेगी। ज्यादा से ज्यादा संख्या में उच्च शिक्षित होने का लाभ समाज और देश को ही मिलेगा। ऐसे युवा नवाचार के लिए भी प्रेरित होंगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को और अधिक गति मिलेगी। वे नौकरी के साथ-साथ नौकरी उपलब्ध कराने की राह पर भी अग्रसर हो सकेंगे।
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