क्या भाजपा ही चुनाव की भव्य योजना बना सकती है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भाजपा का इतिहास ज़्यादा पुराना नहीं है। वैसे भारतीय जनसंघ की स्थापना 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण के लिए जनसंघ ने कुछ अन्य पार्टियों के साथ खुद का विलय कर लिया।
पार्टी का काडर लगभग यही था, उसके सदस्य और कर्ता-धर्ता भी वही थे, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सही मायने में स्थापना या गठन तो छह अप्रैल 1980 को ही हुई। तब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने इस पार्टी को गढ़ा था।
कहा जा सकता है कि अन्य पार्टियों के मुक़ाबले भाजपा का इतिहास ज़्यादा लम्बा नहीं है। भले ही शुरुआत में संसद में उसके दो ही सदस्य हुआ करते थे लेकिन जो ग्रोथ उसने पाई है, वह अपने आप में एक मिसाल है। चुनाव जीतने और उसकी प्लानिंग के जो नए – नए तरीक़े भाजपा लाती है, वे बड़े कमाल के होते हैं। अकाट्य और यूनीक भी। पेज प्रमुख या पन्ना प्रमुख के उसके आइडिया का अब तक किसी के पास कोई तोड़ नहीं है। पन्ना प्रमुख का यह आइडिया हर हाल में काम करता है। यह पूरी तरह से टेस्टेड भी है।
केवल कर्नाटक के परिणामों के नज़रिए से इसे नहीं देखना चाहिए। कई राज्यों के अनेक चुनावों में पन्ना प्रमुखों ने भाजपा की जीत निश्चित की है और सत्ता भी दिलाई है। अब मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने वाले हैं तो भाजपा एक और नया तरीक़ा खोज लाई है। नरेन्द्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भाजपा अब महा सम्पर्क अभियान चला रही है।
इसमें नया तरीक़ा यह है कि इस अभियान के तहत नए मतदाताओं का सम्मान किया जा रहा है। नए मतदाता यानी वे जिनकी उम्र अगले चुनाव में पहली बार वोट देने के लायक हो रही है। अब सोचिए, पहली बार जब वे वोट देने जाएँगे तो क्या अपने इस सार्वजनिक सम्मान को भूल पाएँगे? नहीं। तो फिर वोट तो उन्हें भाजपा को ही देना है। … और वे देंगे भी। दूसरी पार्टियाँ चाहे जो भी कर रही हों, लेकिन इस तरह के यूनीक आइडिया की उनके पास कमी तो है।
अन्य राजनीतिक दलों को चाहिए कि अगर उन्हें भाजपा से लड़ना है या जीतना है तो केवल आरोप-प्रत्यारोपों से काम नहीं चलने वाला। पन्ना प्रमुख या नव मतदाताओं के सम्मान जैसे नए तरीक़े खोजकर लाने होंगे। आज भी कई पार्टियाँ ऐसी हैं जिन्हें चुनाव के दिन बूथ कार्यकर्ता तक नहीं मिल पाते।
भाजपा के पन्ना प्रमुख ऐसे बूथों पर कर्मठता से अपना काम करते हैं और बाक़ी पार्टियाँ खुद को ठगा- सा महसूस कर रही होती हैं। हो सकता है, बात कड़वी हो, लेकिन आज के युग में जब मतदाता सब कुछ समझने लगा है और तर्क- वितर्क भी करने लगा है, तब पुराने ढर्रे पर चुनाव लड़कर आप जीत नहीं सकते। नए और यूनीक तरीक़े ईजाद करना ही पड़ेगा। दूसरा कोई चारा नहीं है। कोई भी नहीं।
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