क्या कमजोर लोगों में एकता हो जाए तो शक्ति के समीकरण बदल सकते हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जंगल का नियम रहा है कि जो सबसे मजबूत है वही जंगल में बचा रहेगा। लेकिन हकीकत में यह एक अमानवीय विचार है। यहां सवाल यह उठता है कि इस तरह तो फिर क्या कमजोर को जीने का अधिकार नहीं है ? और यह भी तो सच है कि प्रेम की नगरी पर तो सबका हक है। उस गीत की पंक्तियों की तरह कि ‘ नैन लड़ जैंहे तो मनवा में कसक होइबे करी… प्रेम की नगरी मा कुछ, हमरा भी हक़ होइबे करि’ तो यहां फिल्म के गीत की पंक्तियों में थोड़ा फेरबदल करके यह कहा जा सकता है कि प्रेम की नगरी मां सबका भी हक़ होइबे करि।

मनुष्य को तो मात्र मनुष्य होने पर ही जीने का हक मिल जाता है। धरती तो इतना देती है कि कभी कोई भूखा नहीं रहे लेकिन असल बात यह है कि हमारे लोभ-लालच ने असमान तथा अन्याय आधारित व्यवस्था को जन्म दिया है। इसमें गरीबी एक प्रोडक्ट की तरह है, जिससे साधन संपन्न व्यक्ति को सेवक मिलते रहें। यह लोभ-लालच की अति ही सारी समस्याओं की जड़ है।

यही नहीं संसार में खान-पान में अति करने वालों की भी कमी नहीं है और दुर्व्यसनों के मामले में भी लोग हदों को पार कर जाते हैं। गौरतलब है कि मदिरा पान के मामले में भी कुछ लोग इतना अतिरेक करते हैं कि उन्हें पिए बिना सांस भी नहीं आती। बिमल राय के निर्देशन में बनी फिल्म ‘देवदास’ में दिलीप कुमार अभिनीत पात्र का संवाद है कि ‘कौन कमबख्त है जो बर्दाश्त करने को पीता है, मैं तो पीता हूं कि बस सांस ले सकूं।’

बहरहाल, वर्तमान में जंगल नियम एक नए स्वरूप में सामने आए हैं कि विरोध को हुड़दंग द्वारा संचालित किया जा सके। गौरतलब है कि दीपा मेहता की फिल्म ‘वॉटर’ की शूटिंग बनारस में की जा रही थी। कथा तो दारुण दशा में रहने वाली विधवा महिलाओं की थी जो दयनीय और दुखद जीवन जीन को मजबूर थीं। लेकिन वहां इस फिल्म निर्माण के एक विरोधी ने फिल्म की शूटिंग रोकने के लिए गंगा में छलांग लगा दी और माना गया कि उसके प्राण चले गए। बहरहाल कुछ समय बाद इसी फिल्म ‘वॉटर’ की शूटिंग श्रीलंका में की गई जहां के कुछ घाट गंगा की तरह हैं।

2 वर्ष बाद दीपा मेहता को वह व्यक्ति दिल्ली में दिखाई दिया, जिसने शूटिंग के विरोध में गंगा में छलांग लगाई थी। बातचीत में उससे पता चला कि इस काम के लिए उसे धन दिया जाता है, इस तरह का काम करना उसकी रोजी-रोटी का हिस्सा है। हमारे जीवन में भी हुड़दंग इस तरह शामिल हुआ है, जैसे इससे कभी जुदा था ही नहीं। दीपा मेहता की बेटी दीपा साल्ट्जमैन ने ‘मेकिंग ऑफ वॉटर’ नामक किताब में सारा विवरण दिया है। तमाम चीजों के साथ-साथ हुड़दंग भी एक अजीबोगरीब ताकत बनकर उभरा है।

आए दिन खबरें आती रहती हैं कि तेंदुआ शहर में घुस आया लेकिन हकीकत यह है कि जब मनुष्य ने जंगल पर अपना राज कायम कर लिया, तो बेघर तेंदुआ भला कहां जाए? आज अभिनेता बनने की चाह रखने वाला शख्स स्टूडियो या एक्टिंग क्लास जाने के पहले जिम जाता है। बाहों में उछली हुईं मांसपेशियां ही उसे फिल्मी भवसागर पार कराएंगी। दरअसल, अभिनेता को पात्र की विचार प्रक्रिया का इंटरनलाइजेशन करना होता और पात्र की मनोदशा को अपनी मनोदशा बनाना पड़ती है।

मेकअप उतारने से ही पात्र की भावना से मुक्ति नहीं मिलती। कलाकार शूटिंग के बाद अपना मेकअप साफ करता है। ज्ञातव्य है कि मेकअप मटेरियल में थोड़ा अंश चूने का होता है। वर्षों मेकअप करने और उतारने की प्रक्रिया में चूने का थोड़ा सा अंश उस कलाकार की विचार प्रक्रिया में भी चला जाता है। चूना इस तरह भी लगता है। बहरहाल, सारे कमजोर लोगों में एकता हो जाए तो शक्ति के समीकरण बदल सकते हैं।

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