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क्या भारत में कभी सेना शासन कर सकती है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बेरोजगार क्रांतिकारी शेख हसीना को बिना किसी कारण दोषी साबित करने पर तुले हैं.. चुंकि इन्ही जैसे लफंगे क्रांतिकारियों ने बांग्लादेश में सत्ता गिराई है इसलिए इन्हें बस अपने लफंगों को सही साबित करना है.

हसीना कट्टरपंथ से निपट रही थीं.. जमात और आतंकी ग्रुप के आगे नहीं झुक रही थीं.. अल्पसंख्यकों की रक्षा कर रही थीं.. और यही सब वहां के बहुसंख्यक कट्टर इस्लामिस्ट को पसंद नहीं आ रहा था.. देश तरक्की पर था, जीडीपी ऊंचाईयां छू रही थी.. विशेषज्ञों का अनुमान था कि बांग्लादेश जल्दी ही बहुत बड़ी इकोनॉमी बन के उभरेगा.. मगर आतंकियों को जीडीपी से क्या लेना देना? उन्हें जीडीपी से ज़्यादा जन्नत में बैठी 300 फीट की हूरें आकर्षित करती हैं.. उनकी जीडीपी का अर्थ अलग है.. वो “जन्नत डेवलपमेंट प्रोग्राम” है.

देश और सत्ता चलाने के लिए सख्ती और बल दोनो आपको बराबर मात्रा में चाहिए होता है.. शासक अगर हर किसी की सुनने लग जाए और सबके हिसाब से देश चलाने लग जाए तो फिर उसे कभी गधे पर बैठना पड़ेगा तो कभी गधे को अपनी पीठ पर लादकर चलना पड़ेगा.. लोग तो जाने क्या क्या कहेंगे.. पचास पार्टियां और उनके सैकड़ों सिद्धांत.. करोड़ों जनता और उसके करोड़ों सिद्धांत, जाति, मज़हब.. सब को अपने हिसाब से कुछ न कुछ चाहिए.. देश इन सबसे पूछकर नहीं चलाया जाता है.

जो एक बड़ी आबादी और देश के भविष्य के लिए अच्छा होता है, शासक को वैसा निर्णय लेना होता है.. हसीना चाहतीं तो कट्टरपंथियों की बातें मान लेती, आरक्षण वाली बात मान लेती.. मगर वो जानती थीं कि भविष्य में क्या सही रहेगा इसलिए वो अपनी चीज़ों पर अड़ी थीं.. यही एक अच्छे शासक की पहचान है.

बाक़ी जो कहते हैं जनता जनार्दन होती है और सम्मान योग्य होती है ये बेकार का स्टेटमेंट है.. क्रांति करने वाली जनता बस भीड़ होती है जिनमें ज्यादातर लफंगे, लुच्चे, नशेड़ी और कामचोर लोग होते हैं.. जो ढंग की जनता होती है वो अपने काम धंधे में फंसी होती है, देश की जीडीपी बढ़ा रही होती है, टैक्स दे रही होती है, और इन लफंगों के एनजीओ को चैरिटी देकर इन्हें भी पाल रही होती है.

हसीना बहुत ही मज़बूत औरत हैं और उन्होंने जो भी किया बहुत अच्छा किया.. शासन ऐसे ही किया जाता है.. उनके शासन में कोई कमी नहीं थी.. जो लफंगे आज उन पर हंस रहे हैं वो दुनिया की हर अराजकता पर हंसते हैं और खुश होते हैं.. इन लफंगों से बचकर रहिए.. ये लफंगे दुनिया में कहीं भी शांति स्थापित नहीं होने देते हैं.. क्योंकि अराजकता से इन्हें “किक” मिलती है.

भारत की सेना का जैसा इतिहास रहा है, वहां पर अनुशासन ही सर्वोपरि है। उसका एक कारण यह है कि भारत की सेना के जो सिद्धांत हैं, वो पश्चिमी देशों से प्रभवित चलते हैं। असल में अंग्रेजों ने भारत पर राज किया, उनकी तमाम पॉलिसी का देश पर गहरा प्रभाव रहा, ऐसे में सेना भी इससे अलग नहीं रह पाई। छोटी-मोटी घटनाएं तो होती रहीं, कभी लगा कि सेना के अंदर भी बगावत हो सकती है, लेकिन एकजुटता का मंत्र ऐसा था कि इसने कभी भी सेना को लक्ष्मण रेखा पार करने नहीं दी।

दिलचस्प बात यह भी है कि 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने भारतीय सेना को जातियों में बांटना शुरू कर दिया था। उसी वजह से जाति आधारित रेजिमेंट तैयार की गई थीं। यह तो वो समय था जब जातियों के आधार पर ही अलग-अलग रजवाड़े भी बने हुए थे। लेकिन सेना की एकता में कोई कमी नहीं आई, वहां अनुशासन बना रहा।

1946 में भारतीय नेवी में भी विद्रोह दिखा था, लेकिन तब क्योंकि कुल भारतीय सैनिकों की संख्या 25 लाख से भी ज्यादा हो चुकी थी, ऐसे में उस विरोध का असर ना के समान रहा और वो नाराजगी कोई बड़े आंदोलन का रूप नहीं ले पाई। कह सकते हैं कि तब भी सेना सभी मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट रही।

 

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