सावधान सियासत! अब सिर्फ जन आकांक्षा की राजनीति चलेगी!
विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों ने दिए सियासत को भावी संदेश
अंडर करंट बना सियासत का मजबूत फलसफा, जनता को बरगलाने के दिन लदे
✍️ गणेश दत्त पाठक‚ स्वतंत्र टिप्पणीकार
श्रीनारद मीडिया ः
विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे भारतीय सियासत को नवीन आयाम से परिचय करा रहे हैं। चाहे वो उत्तर प्रदेश के नतीजे हो या पंजाब के। दोनों राज्यों में अलग सियासी दलों को सफलता मिली है। परंतु जनता का संदेश साफ है जनाकांक्षा का ख्याल रखें सियासत। हर हाथ में मोबाइल ने जागरूकता के स्तर को बढ़ा दिया है। सियासी लोगों द्वारा जनता को बरगलाना अब इतिहास है। जनता की चेतना अब चुनाव के दौरान अंडर करंट का रूप लेती है, जो पांच साल के अनुभव के आधार पर तैयार होती है। चुनावी रैलियों, रोड शो में भीड़ अब जनता के मन का पैमाना नहीं रहा। इस चुनाव ने उस जन हुंकार को सामने लाया है, जहां जनता अपने आकांक्षाओं को ही पूरे होती देखना चाहती है और कुछ नहीं। निश्चित तौर पर यह संकेत भारतीय लोकतंत्र को और परिपक्व बनाएगा।
आभासी परिदृश्य के बहकावे में नहीं आ रही जनता
एक दौर था जब चुनाव के दौरान सियासी दल अपनी पूरी ताकत झोंक डालते थे। फिर मतदान के दिन तक जनता को बरगला पाने में काफी हद तक सफलता पा लेते थे। अभी भी चुनाव के बीच कुछ ऐसे माहौल बनाने की कोशिश की जाती है कि एक आभासी परिदृश्य उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है। जिसके आधार पर अपने अपने हित के अनुरूप सियासी दल गुणा भाग में जुट जाते हैं। रोड शो में भीड़, रैलियों में प्रायोजित भीड़ और खाली कुर्सियों को दिखाकर अपने अपने दावों को पेश किया जाता है। परंतु विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम खुले तौर पर घोषित करते हैं कि डिजिटल क्रांति के दौर में अब जनता इतनी मासूम भी नहीं रही। जनाकांक्षा अब उछाल मार रही है। बहुत सोच विचार के बाद अब फैसला लिया जा रहा है। यहीं सोच विचार चुनाव के दौरान अंडर करेंट के तौर पर प्रवाहित होती है। जिसे भांपने में सियासी रहनुमा गच्चा खा जा रहे हैं।
सत्ता में बदलाव अनिवार्य नहीं जन आकांक्षा महत्वपूर्ण
देश के बौद्धिक जगत द्वारा निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब के नतीजों को अलग अलग संदर्भ में आकलन किया जाएगा। जो कि एक आम परिपाटी इस देश में रही है। परंतु तथ्य यह भी है कि दोनों राज्यों में एंटी इनकंबेंसी के अलग अलग प्रतिरूप दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के संदर्भ में देखें तो सत्ता में परिवर्तन की उत्सुकता आम जनता नहीं दिखा रही है जब उसकी आकांक्षाएं पूरी हो रही है। जबकि पंजाब के संदर्भ में जन आकांक्षाओं को पूरी न करनेवालों को जनता धूल चटा रही है। परिवर्तन के लिए लहर नहीं सुनामी ला रही है। सियासत को समझना होगा जनता के मूड को।
जनता के विकास की हसरतें संजो रही नए सपने
जाति और धर्म भारतीय सियासत के महत्वपूर्ण आधार रहे हैं और अभी आगे भी रहेंगे। यदि ये कहा जाए कि जनता अब जाति और धर्म से दूर का रिश्ता रखती दिख रही है तो शायद ही इस तथ्य पर कोई भरोसा करें। लेकिन उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ब्राह्मण ठाकुर संदर्भ को देखा जाए, ओबीसी और जाटव तथा एससी एसटी के संदर्भ को देखा जाए। स्वामी प्रसाद मौर्य, कृष्ण पटेल आदि के संदर्भ पर भी गौर करें। बसपा की स्थिति को देखा जाय तो यह तथ्य महसूस किया जा सकता है। पिछले कई चुनाव के संदर्भ भी बार बार संकेत कर रहे हैं कि जाति धर्म के मायने धीरे धीरे ही सही लेकिन शिथिल पड़ रहे हैं। जनता के विकास की हसरतें अब नई सपनों को संजो रही है।
जनता की मर्जी जनता ही जाने
विशेष मुद्दे भी लोकतंत्र के उत्सव में कोई कमाल नहीं दिखा पा रहे है। किसान आंदोलन के संदर्भ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जितने नुकसान की आशंका जताई जा रही थी उतना नहीं हुआ। आवारा पशुओं का मसला भी जनता के मन में ही रहा। महंगाई की समस्या पर भी जनता मौन रही। परंतु आधारभूत संरचना और गुंडावाद पर जनता ने कोई समझौता करना उचित नहीं समझा।
आम जनता की हर परेशानी पर रहना होगा सचेत
विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे विशेषकर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उभार को परिलक्षित कर सकते हैं। परंतु सूबे में पिछले पांच साल के कानून और व्यवस्था के शासन पर जनता की मुहर भी तो हो सकते हैं। युद्ध हो या दंगा परेशान तो आम जनता ही होती है। सियासत को इस तथ्य को भी ध्यान में रखना समय की मांग है।
चुनावी नारे नहीं जमा पा रहे प्रभाव
नारे सियासत में बड़ी भूमिका निभाते रहते हैं लेकिन विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे तस्दीक करते हैं कि नारे अब जनता को बरगलाने तक आते आते प्रभावहीन हो जा रहे हैं। भले ही वो नारे गाने का स्वरूप धारण कर लें। लेकिन जागरूक जनता हर नारे का मर्म बखूबी समझ रही है। राजनीतिक प्रयोगशाला में सियासत को अब नारों नहीं रोड मैप पर मंथन करना होगा। जैसे पंजाब में स्वास्थ्य और शिक्षा के रोडमैप को जगजाहिर किया गया। निश्चित तौर पर आप ने दिल्ली के उदाहरणों को भजाया। लेकिन जनता अब अपनी समस्याओं को लेकर मुखर हो रही है।
देश की राजनीति में सांस्कृतिक तत्व भी होंगे मुखर
उत्तर प्रदेश देश की राजनीतिक दिल का धड़कन रहा है। जनता के संदेशों ने स्पष्ट कर दिया है कि देश की राजनीति में अब सांस्कृतिक तत्व भी मुखर होंगे। जिसे नए परिप्रेक्ष्य में भी समझना होगा। मंदिर मस्जिद पर सियासत की दस्तक सिर्फ आस्था के प्रकटीकरण के संदर्भ ही होंगे। इस संदर्भ में पूर्वाग्रह के दायरे से बाहर निकलना होगा। सता पर आसीन व्यक्ति की आस्था से जनता बेपरवाह है उसे तो सिर्फ अपने आकांक्षा के पूरा होने की आस है। निश्चित तौर पर यह आकांक्षा एक व्यापक फलसफे से संबंधित है।
हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजे जनता के जागरूक कलेवर की तरफ संकेत कर रहा है। जिसे सियासत को समझना होगा वरना सियासत गुणा भाग करती रह जायेगी और अंडर करेंट अपना कमाल दिखता रहेगा।
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