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एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को लेकर डॉ, शोधार्थी एवं वैज्ञानिकों के बीच अभी संसय बरकरार : वैज्ञानिक डॉ प्रवीण - श्रीनारद मीडिया

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को लेकर डॉ, शोधार्थी एवं वैज्ञानिकों के बीच अभी संसय बरकरार : वैज्ञानिक डॉ प्रवीण

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को लेकर डॉ, शोधार्थी एवं वैज्ञानिकों के बीच अभी संसय बरकरार : वैज्ञानिक डॉ प्रवीण

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# मरीजों से लिए गए नमूनों में किसी तरह का जीवाणु,विषाणु या अन्य सूक्ष्म कारक की पुष्टि नहीं हो पायी

श्रीनारद मीडिया, मनोज तिवारी, पटना (बिहार):

वर्तमान वैश्विक महामारी (covid -19 ), एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार) के मरीजों के प्रबन्धन के लिए एक चुनौती बन सकती है । एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम जिसे आम चाल की स्थानीय भाषा में चमकी बुखार भी कहा जाता है । हालांकि इस बीमारी को लेकर डॉक्टर्स, शोधार्थी, एवं वैज्ञानिको के बिच अभी तक संसय बनी हुई है, जिसका कारण है इसके कारको का सही से पता ना होना । इन्ही वजह से इस चमकी बुखार को ‘रहस्य्मयी बीमारी’ से भी सम्बोधित किया जाता रहा है । इस बीमारी को रहस्य्मयी बताने का एक प्रमुख कारण ये भी है की इसके अधिकतर मरीजों से लिए गए नमूनों में किसी भी तरह का जीवाणु/विषाणु/ या अन्य सूक्ष्म कारक इत्यादि होने की पुस्टि नहीं हो पायी । हालांकि चमकी बुखार के कुछ मरीजों में जापानीज इन्सेफेलाइटिस, डेंगू, ज़ीका, वेस्ट नाइल, चांदीपुरा विषाणु एवं अन्य के होने की भी पुस्टि हुई है । परन्तु चालीस प्रतिशत (लगभग) से अधिक मरीजों में पूर्वकथित जीवाणु/विषाणु या किसी भी अन्य कारक के होने की पुस्टि नहीं हो पाई है। और इन्ही वजहों से बहुत हद तक एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम को एक रहस्मय बीमारी के नाम से जाना जाता है ।
परन्तु ध्यान देने वाली एक महत्व्यपूर्ण बात ये भी है की, यह बीमारी हर साल बिहार के कुछ जिलों (मुख्यतः मुज़्ज़फरपुर) के साथ साथ भारत के अन्य राज्यों में छिटपुट तौर पर एक विशेष मौसम में अधिकतम होती है । और इन्ही वजह से किसी विशेष जगह के मौसम को इस खास बीमारी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना एक वैज्ञानिक मत हो सकता है। अमूमन, विगत वर्षो में मेरे द्वारा हुए शोध से यह पता चला है की यह बीमारी बिहार में मध्य मई के बाद रिपोर्ट होनी शुरू हो जाती, एवं जून के महीने में इसके मरीजों की तादात काफी बढ़ने लगती है। रिपोर्ट होने वाले ज्यादातर मरीज बालकाल (१५ वर्ष से कम) के होते है, एवं खास तौर पे वे बच्चे कुपोषित भी पाए जाते है । ये वही महीने है जिस वक़्त सूर्य की तीव्रता काफी अधिक होती है साथ हीं मानसून के वर्षात की हल्की वारिष (प्री मानसून रेनफॉल) की वजह से आद्रता की भी अधिकता होती है । इसलिए इस तरह के मौसम (उच्च तापमान एवं आद्रता) मस्तिष्क विकृति का कारण बनती है ।
वर्तमान समय में स्वास्थ्य सेवाएं जहा COVID-19 से पीड़ित मरीजों के प्रबंधन में व्यस्त है, वहीं स्वास्थ्य सम्बन्धी संसाधनों की कमी को भी आंका जा रहा है| भारत में COVID-19 की सामुदायिक संक्रमण की भी पुस्टि की गयी है| ऐसी हालत आने वाले निकट भविष्य में रिपोर्ट होने वाले चमकी बुखार से पीड़ित मरीजों की इलाज एक चुनौती हो सकती है|

डॉ. प्रविण कुमार (पी.एच.डी.)
वैज्ञानिक, भारत मौसम विज्ञान केंद्र
Twitter: pra_bioin

यह जानकारी पटना से सामाजिक कार्यकर्ता आनंद पुष्कर के हवाले से दी गई है। उन्होंने बताया कि हम सभी को कोविड – 19 को लेकर पूरी तरह से सतर्क रहने की आवश्यकता है। चूंकि यह वैश्विक महामारी पर पूरे विश्व में शोध चल रहा हैं जिसमे अभी भी संसय बनी हुई है।

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