परिवर्तन ही ऋत है ! अभियान गतिमान है ! प्रेरणास्रोत बनें ! दूसरों को प्रेरित करें ! आइए, मिलकर प्रेरित करें बिहार !
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु संकल्पित अभियान #LetsInspireBihar युवाओं के मध्य तीव्रता के साथ गतिमान है ! स्वैच्छिक रूप से प्रेरित एवं संकल्पित युवाओं द्वारा बिहार के सभी जिलों में अध्यायों (चैप्टरों) का गठन किया गया है जिसमें जिले में निवास कर रहे व्यक्तियों के साथ-साथ अप्रवासियों को भी जोड़कर सामूहिक रूप में संगठित सामर्थ्यानुसार #3Es यथा #शिक्षा (Education), #समता (Egalitarianism) तथा #उद्यमिता (Entrepreneurship) के विकास से संबंधित सकारात्मक कार्यों को संपादित करने का प्रयास किया जा रहा है । अनेक जिलों में अनुमंडल से लेकर प्रखंड के स्तर तक गठित उप-अध्यायों (सब-चैप्टरों) में सकारात्मक सामाजिक योगदान की दिशा में कार्य किए जा रहे हैं ।
बिहार के बाहर रह रहे मूल निवासियों को जोड़ने के लिए दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, पुणे जैसे अध्यायों का गठन किया गया है ताकि वैसे सक्षम बिहारवासी जो बिहार के बाहर रहते हुए भी अपने जिलों के अध्यायों से जुड़कर सामाजिक तथा शैक्षणिक योगदान करना चाहते हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर भी नित्य जुड़ाव की अनुभूति होती रहे और ऐसे सकारात्मक संगठन निर्मित हो जाएँ जो सहयोग की भावनाओं के साथ परस्पर अभिवृद्धि में सहायक सिद्ध हों । इसी प्रकार विदेशों में भी विशेष अध्याय गठित किए जा रहे हैं जिनकी भूमिका भविष्य में निश्चित ही अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी ।
इन क्षेत्रवार अध्यायों के अतिरिक्त कुछ अति विशिष्ट अध्यायों का भी गठन किया गया है जिनका उद्देश्य किसी एक विषय पर केंद्रित रहना है अथवा जिनमें किसी एक प्रकार की अहर्ताओं से संबंधित व्यक्ति ही जुड़े हैं । इन अध्यायों में #गार्गी (बुद्धिजीवी महिलाओं का अध्याय), #आर्यभट्ट (प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों का अध्याय), #चाणक्य (शिक्षाविदों का अध्याय), #याज्ञवल्क्य (चिंतकों का अध्याय) तथा #जीवक (चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों का अध्याय) प्रमुख हैं ।
#जीवकअध्याय की #प्रथमबैठक 24 अक्तूबर, 2021 (रविवार) को #पाटलिपुत्र के मौर्य होटल में आयोजित की गई जिसमें बिहार के अनेक क्षेत्रों से जुड़े युवा चिकित्सकों ने भाग लिया । संबोधन के प्रारंभ में जब मैंने उपस्थित युवा चिकित्सकों से यह पृच्छा की कि कितने व्यक्तियों ने अध्याय में जुड़ने के पूर्व महान आयुर्वेदाचार्य #जीवक का नाम सुना था तो लगभग सभी ने बताया कि उन्होंने पूर्व में कभी नहीं सुना था ।
तब मैंने भगवान बुद्ध के समकालीन तथा तत्कालीन सम्राट बिम्बिसार एवं स्वयं भगवान बुद्ध के भी चिकित्सक रहे उन महान जीवक के विषय में संक्षेप में बताया जिनका जन्म राजगृह में हुआ था और जिनकी ख्याति एक प्रसिद्ध चिकित्सक के रूप में तत्कालीन विश्व में तब सर्वव्याप्त हुई थी और जिनका स्मरण आज भी चीन, कोरिया, जापान, थाईलैंड सहित अनेक एशियाई राष्ट्रों में पारंपरिक चिकित्सा के अनेक सिद्धांतों के संस्थापक के रूप में किया जाता है ।
ऐसे आचार्य निश्चित ही हमारे प्रेरणास्रोत हैं जिनके संदर्भ में अनेक प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन करने पर उनके चिकित्सा-ज्ञान की व्यापक प्रशंसा देखने को मिलती है और जिनके विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि बिहार में चिकित्सा विज्ञान की भी अत्यंत प्राचीन परंपरा विद्यमान थी । यह अत्यंत प्राचीन परंपरा ही थी जिसकी अभिवृद्धि ने गुप्त काल में पाटलिपुत्र में अवस्थित धन्वंतरि के आरोग्य विहार को संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध कर दिया था । प्राचीन परंपरा को सशक्त रूप में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ।
जीवक अध्याय को प्रारंभ करने का श्रेय मुख्य रूप से डाॅ हर्ष राय, डाॅ रमण किशोर, डाॅ मनीष कुमार, डाॅ सरिता कुमारी तथा प्रोफेसर सतीश गांधी जी को जाता है । डाॅ रमण किशोर के साथ एम्स पटना के चिकित्सकों की बड़ी टीम अवकाश के दिनों में पटना के ग्रामीण क्षेत्रों में निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन करती रही है, जिसके 50वें शिविर के अवसर पर सभी चिकित्सकों तथा साथियों को सुपर 30 के सुप्रसिद्ध शिक्षक आनंद कुमार जी के साथ सम्मानित करने का अवसर मुझे भी मिला था ।
चूंकि जीवक अध्याय में ऐम्स पटना में अध्ययनरत तमिल नाडू निवासी डाॅ वेंकटेश कार्तिकेयन जैसै भी अनेक चिकित्सक जुड़े हुए हैं, जो राष्ट्र के अन्य राज्यों के मूल निवासी हैं, अतः मैंने सभा में उपस्थित सभी युवा चिकित्सकों से यह प्रश्न किया कि आज जब बिहार के बाहर के किसी व्यक्ति का चयन अखिल भारतीय प्रतियोगिता के परिणामस्वरूप बिहार के किसी शिक्षण संस्थान में अध्ययन हेतु अथवा बिहार के किसी प्रकल्प में सेवा हेतु होता है तो प्रतिक्रिया क्या होती है ?
उत्तर न देकर जब सभागार में सभी मुस्कुराने लगे तब मैंने प्रश्न करते हुए सभी को यह स्मरण कराया कि क्या बिहार ही वह भूमि नहीं है जो प्राचीन काल से ही ज्ञान, शौर्य एवं उद्यमिता की प्रतीक रही है ? क्या हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज नहीं हैं जिनमें अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित करने की क्षमता तब थी जब न आज की भांति विकसित मार्ग थे, न सूचना तंत्र और न उन्नत प्रौद्योगिकी ?
इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए तब मैंने कहा कि यह हमारे पूर्वजों के चिंतन की उत्कृष्टता ही थी जिसने बिहार को ज्ञान की उस भूमि के रूप में स्थापित किया जहाँ वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया । ज्ञान की परंपरा ने ही कालांतर में ऐसे विश्वविद्यालयों को स्थापित होते देखा जहाँ संपूर्ण विश्व के विद्वान अध्ययन हेतु लालायित रहते थे ।
बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य हेतु संकल्पित अभियान के संदर्भ में तब बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा कि वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम स्वत्व का बोध आवश्यक है चूंकि उर्जा निश्चित आज भी वही है और इसीलिए आगे बढ़ने के लिए आवश्यकता केवल इस चिंतन की है कि उर्जा का प्रयोग हम कहाँ कर रहे हैं ।यदि पूर्वजों के कृतित्वों से हम प्रेरित होते हैं तो स्वयं की असीमित क्षमताओं के विषय में भी हमें स्पष्ट हो जाना चाहिए ।
तब निश्चित ही यह दर्शित होगा कि यदि उर्जा शिक्षा (Education), समता (Egalitarianism) तथा उद्यमिता (Entrepreneurship) के भावों के समग्र विकास हेतु सकारात्मकता के साथ लग गई तो फिर भला उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण का अवरोध कौन कर सकेगा ! आवश्यकता केवल लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद आदि संकीर्णताओं से परे उठकर राष्ट्रहित में आंशिक ही सही परंतु कुछ निस्वार्थ सकारात्मक सामाजिक योगदान समर्पित करने की है । मैंने यह बताया कि आवश्यकता चिंता नहीं अपितु चिंतन करने की है, आपस में संघर्ष नहीं अपितु सहयोग करने की है तथा उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु मिलकर कुछ प्रयास करने की है ।
मैंने यह स्मरण कराया कि इतिहास की प्रेरणा में ऐसी अद्भुत शक्ति समाहित है जो बिहार समेत संपूर्ण भारतवर्ष के भविष्य को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है । मैने अपनी अनुभूतियों को साझा करते हुए बगहा तथा रोहतास जिलों में हुए प्रारंभिक रूप में असंभव प्रतीत हो रहे परंतु हुए साक्षात रूप में हुए परिवर्तनों का स्मरण करते हुए यह बताया कि यदि कालांतर में हमारा अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ और यदि हम पूर्व का स्मरण करते हुए वर्तमान में वैसा तारतम्य अनुभव नहीं करते तो इसका कारण कहीं न कहीं समय के साथ लघुवादों अथवा अतिवादों से ग्रसित होना ही रहा है
अन्यथा जिस भूमि ने इतिहास के उस काल में कभी महापद्मनंद को शाशक के रूप में सहर्ष स्वीकार जन्म विशेष के लिए नहीं परंतु उनकी क्षमताओं पर विचारण के उपरांत किया था, उसके उज्ज्वलतम भविष्य में भला संदेह कहाँ था ? यदि वर्तमान में हम विकास में अन्य क्षेत्रों से कहीं पिछड़े हैं और अपने भविष्य को उज्ज्वलतम देखना चाहते हैं तो आवश्यकता केवल और केवल अपने उन यशस्वी पूर्वजों का स्मरण करते हुए लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद इत्यादि से उपर उठकर राज्य एवं राष्ट्रहित में बृहतर चिंतन के साथ भविष्यात्मक दृष्टिकोण को मन में स्थापित करते हुए निज सामर्थ्यानुसार आंशिक ही सही परंतु निस्वार्थ सामाजिक योगदान अवश्य समर्पित करना होगा ।
मैने जीवक अध्याय द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए अध्याय के संयोजक डाॅ हर्ष राय तथा डाॅ रमण किशोर जैसे युवा चिकित्सकों की सराहना की जिन्होंने अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का संकल्प सुदृढ़ करने की दिशा में सभी प्रयासों को निरंतर गतिमान रखा है । सभा में इस बात पर सहमति बनी कि सभी चिकित्सा महाविद्यालयों में अध्ययनरत युवा चिकित्सकों के साथ-साथ सभी स्वैच्छिक रूप में समाज के प्रति संकल्पित चिकित्सकों को जोड़कर निश्चित ही जीवक अध्याय को असहायों की सेवा हेतु प्रासंगिक बनाया जा सकता है ।
विमर्श में यह बात भी आई कि परिश्रम के साथ अध्ययन हेतु युवा चिकित्सकों को प्रेरित करने हेतु प्रबुद्ध चिकित्सकों को आमंत्रित कर शिविरों का आयोजन किया जा सकता है जिससे उत्कृष्टता की प्राचीन परंपरा आगे बढ़े और संपूर्ण चिकित्सा जगत को बिहार के ज्ञान से प्रकाशित कर सके । अंत में निष्कर्ष यही था कि संभावनाए असीम हैं, आवश्यकता तो केवल एक वैचारिक क्रांति की है जो युवाओं के मध्य प्रसारित हो और जो भविष्य निर्माण के निमित्त संगठित रूप में संकल्पित करे । आवश्यकता आशावादिता के साथ आगे बढ़ने की है । जिस भूमि ने वैदिक काल से ही गार्गी वाचक्नवी एवं मैत्रेयी जैसी विदुषियों को नारी में भी समाहित विद्वता का प्रतिनिधित्व करते देखा हो, उसका भविष्य भला उज्ज्वलतम क्यों न हो ?
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