शुक्ल जी स्कूल का नाम बदलिये !
प्रभा प्रकाश बालिका उच्च विद्यालय कैसे कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय बन गया
आलेख – संजय सिंह, पंजवार, रघुनाथपुर(सिवान)
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क-
साइकिल की चाल तेज हो चुकी थी । पैडल और पैर जैसे एक दूसरे में उलझ गये थे । कोई हार मानने को तैयार नहीं । टारी और पंजवार के बीच की ‘जोरी’ आज बहुत छोटी हो चली थी ।
गुरुजी ने साइकिल किनारे लगाई । खादी का झोला हैंडल से निकाला । हाथ मुंह धोया । एकांत में बैठकर ध्यानस्थ हो गये । रह रहकर एक ही बात बार- बार कौंध रही थी – “अकेले लइकन के स्कूल में एतना दूर थोड़े भेजतीं ! लइकिन के स्कूल रहित त कवनो बात ना रहे !”
आज मोती माट साहब का बुलावा आ गया था । गुरुजी को जाना पड़ा । दसवीं क्लास का सेक्शन । कुल साठ विद्यार्थी । छात्राएं सिर्फ ग्यारह ।
लइकी लो काहें कम आइल बा !
अतने जानी के नाम लिखाईल बा गुरुजी !
पंजवार से कव जानी बा लो !
एको जानी ना !
काहें ?
“राउर गांव दूर बा नू , एहिसे लइकी लो हाई स्कूल में पढ़े ना आवेला ।”
तू लो आपन -आपन परिचय द !
टारी से चार….भांटी से दू….पिपरा से तीन…नेवारी से एक ….कचनार से एक ! एक हद तक ठीक ही बताया था पहली बेंच पर सबसे किनारे बैठी हुई छात्रा ने !
दूर त कचनारो बा ! तोर गोड़ ना दुखाला टारी आवे में !
बात दोसर बा गुरुजी ! बाबूजी कहेलन कि तोर भाई ओहि स्कूल में पढ़ेला एसे तोरा के जाये देतानी । अकेले लइकन के स्कूल में एतना दूर थोड़े भेजतीं ! लइकिन के स्कूल रहित त कवनो बात ना रहे !
जून का महीना ! आसमान में बादलों के बीच दौड़ चल रही थी । पंजवार गांव भी हरदेव बाबा की ओर भागता चला जा रहा था । गुरुजी ने गांव की मीटिंग बुलाई थी । रामजन्म माट साहेब, राधा बाबू, केदार नाथ सिंह, शिवपूजन बाबू, पंचम सिंह, यमुना राय, भरत दुबे ,दशरथ दादा……पूरे गांव ने अपनी बात कही । इसी बीच अपनी बुलंद आवाज में दशरथ दादा ने उद्घोष किया -“इस जमीन पर राजा हरिश्चन्द्र आये और चले गये ! संस्थाएं रह जाती हैं ! जितनी जमीन कम पड़ेगी अकेले मैं दूंगा !'” फैसला हो चुका था ..बालिकाओं के लिये हाई स्कूल खुल चुका था …….
2 अक्टूबर 1982 को स्वामी प्रेमानंद उर्फ पयहारी बाबा ने पांच छात्राओं के साथ पढ़ाई का शुभारंभ किया । स्कूल का नाम रखा गया -प्रभा प्रकाश बालिका उच्च विद्यालय ।
शुक्ल जी स्कूल का नाम बदलिये !
काहे ?
कॉंग्रेस की सरकार है ! जे पी के नाम से स्कूल है ! मान्यता में दिक्कत हो सकती है !
विजयशंकर दुबे की बात शुक्ल जी समझ चुके थे । स्कूल का नया नामकरण हुआ – कस्तूरबा बालिका उच्च विद्यालय , पंजवार ।
“पंचम जी सिवान चले के बा !”
का !
बिहार सरकार हर ब्लॉक में एगो बालिका हाई स्कूल खोले के निर्णय लेले बिया ! आपन स्कूल मंजूरी खातिर भेजल जाव !
बस में अगली सीट पर रामेश्वर सिंह बैठे थे ।
“कहां जातारs लो घनश्याम ?”
सिवान !
का हो !
स्कूल के मंजूरी खातिर !
उ ना हो सके !
काहें ?
ब्लॉक मुख्यालय से नजदीक हमनी के स्कूल बा ! मंजूरी हमनी के मिली !
रउआ स्कूल से पुरान हमनी के बा ! मंजूरी हमनी के मिली !
कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी थी ! लोअर कोर्ट ….हाई कोर्ट….सुप्रीम कोर्ट ..
स्कूल के संचालन के लिए गुरुजी ने मुठिया का आह्वान किया । हर घर से एक मुट्ठी अनाज ..सुबह शाम निकलने लगा ! महिलाओं ने अपना और अपने परिवार का पेट काटकर मुठिया दिया । गांव की स्त्रियों ने गांव की बेटीयों की पढ़ाई का संकल्प ले लिया था । अखिलेश जी…महेश्वर सिंह….ललन सिंह….श्रद्धानंद दुबे….अशोक तिवारी जैसे दर्जनों नौजवान हर अतवार को मुठिया वसूलते । अनाज बेचा जाता विद्यालय खर्च निकल जाता !
ई का अखिलेश ! नेव पटावतारs लो का ?
ना गुरुजी ! मुरई आ पालकी बोआइल बा ! बाजार में बेचाई ! जवने दू चार पइसा मिली ! उस रात सो नहीं सके थे गुरुजी …रात भर खुशी से सुबकते रहे थे !
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की तारीख नजदीक आ रही थी ! गुरुजी वकील से मिलने गये ! वकील ने आश्वस्त किया !
केस हमलोग जीत रहे हैं !
मैं कैसे मान लूँ ?
आपको मनाने के लिए मैं कुछ नहीं कर सकता ! विश्वास करना होगा !
आप एक और वकील रखिये !
क्या ?
जी ! देश का सबसे बड़ा वकील ! फीस जितना लगे ! यह केस हारकर पंजवार नहीं जाउंगा , भले मेरी हड्डी जांत में पीस जाये !
सुप्रीम कोर्ट से जीतकर लौटे गुरुजी ! सभी स्टाफ सरकार से वेतन पाने लगे….पठन पाठन का आदर्श स्थापित हुआ …..
चांदनी रात ….रेडियो पर गांधीजी का प्रिय भजन बज रहा था…वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे ! आज फिर गुरुजी को पहले बेंच पर बैठी हुई उस लड़की की बात याद आ रही थी –
“अकेले लइकन के स्कूल में एतना दूर थोड़े भेजतीं ! लइकिन के स्कूल रहित त कवनो बात ना रहे !”
गुरुजी के हृदय में सदियों से जमा बर्फ पिघल चुका था ! रोम रोम हंस रहा था…आंखे बरस रही थीं । लता जी के सुर के साथ गुरुजी का सुर मिलता जा रहा था !
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे …..
लेखक परिचय –
संजय सिंह, पंजवार, रघुनाथपुर, सीवान (बिहार):
घनश्याम शुक्ला के अनन्य करीबी थे संजय सिंह
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