कचरा चुनने वाली 50 से अधिक बेटियों की बदल दी किस्मत,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जीवन में बदलाव लाने के लिए शिक्षा से बड़ा कोई और माध्यम नहीं हो सकता है। यह पंक्तियां चरितार्थ हो रही बिहपुर प्रखंड के विभिन्न महादलित टोले में। बभनगामा, प्रखंड कालोनी आदि जगहों पर सड़क किनारे बनी झुग्गी में रह रहे महादलित परिवार के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है, तो उनके सपने भी बड़े होने लगे हैं।
नंदिनी स्कूल नहीं जाती थी। नंदनी की दिनचर्या कचरा चुनने से शुरू होती थी। दिन भर कचरा चुन कर वह घर लाती, ताकि उसके अभिभावकों को दो-चार पैसे मिल सकें। जिस दिन कचरा चुनने नहीं जाती थी, उस दिन सारा समय हमउम्र बच्चों के साथ खेलने-कूदने में बीत जाता था। प्रियंका, आरती, कोमल कुमारी की भी कहानी नंदिनी जैसी ही थी। अब इन बच्चियों की जिंदगी बदल गई है।
कचरे से दूरी के बाद इन बच्चियों की यारी किताबों से हो गई है। इनके सपने भी आकार लेने लगे हैं। कोई डाक्टर बनना चाहती हैं, तो कई शिक्षिका। इन बच्चियों की जिंदगी में बदलाव की वाहक बनी हैं बिहपुर प्रखंड की बीआरपी और राज्य शिक्षक संसाधन कोष के लिए चयनित शिक्षिका सुमोना रिंकू घोष। सुमोना ने घर घर घूम कर वंचित समुदाय की इन छात्राओं की सूची तैयार कर विद्यालयों में उनका नामांकन कराया है।
प्रखंड कालोनी की भी नूतन, करिश्मा कुमारी, मधु कुमारी आदि बच्चों का प्राथमिक विद्यालय प्रखंड कालोनी में नामांकन कराया गया। सुमोना ने कहा कि इन बच्चियों और उनके अभिभावकों को समझाने-बुझाने में थोड़ी मुश्किल पेश आई। अभिभावकों को विद्यालय में मिलने वाली सुविधाओं के बारे में जानकारी दी गई। उन्हें यह भी बताया गया कि आप ही के गांव-समुदाय के बच्चे विद्यालय जाते हैं।
उन्हीं में से कई इंस्पायर आवार्ड के लिए चयनित हुए, तो राज्य सरकार की ओर से दस हजार रुपये पुरस्कार दिए गए। विद्यालय में लड़कियों को पोशाक, किताब आदि की राशि दी जाती है, तो मुफ्त में भोजन (मध्याह्न भोजन) भी। नियमित स्कूल जाने पर छात्रवृत्ति भी मिलेगी। सुमोना कहती हैं- समझाने के बाद अभिभावक तैयार हुए। अब बेटियां जब झोपड़ी के आगे किताब पढ़ती हैं। कविता सुनाती हैं, तो अभिभावक भी अभिभूत हो जाते हैं। अब उनके अभिभावक भी अपनी बच्चियों के लिए बड़े सपने देखने लगे हैं। बेचन मलिक कहते हैं- बिटिया को अब खूब पढ़ाएंगे। बिटिया को शिक्षिका बनाएंगे।
सुमोना ने कहा कि अभी तक मैंने 50 से अधिक ऐसी बेटियों को स्कूल से जोड़ा, जो या तो स्कूल नहीं जाती थी या ड्रापआउट हो गई थी। सभी बच्चियां अब नियमित स्कूल जाती हैं। मैं ड्राप आउट बच्चों के विशेष प्रशिक्षण के लिए चयनित शिक्षकों की प्रशिक्षक भी हूं। मैं शिक्षकों से यही कहती हूं- स्कूल से बाहर रहने वाली बेटियों को स्कूल से जोडऩे के लिए उनके अभिभावकों को प्रेरित करना जरूरी है।
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