मोदी के जन्मदिवस पर देश में चीता युग की वापसी
चीतों का मानव के साथ संघर्ष का नहीं रहा कोई इतिहास
सात दशक बाद चीतों की झलक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस कार्य के लिए पीएम मोदी के प्रति आभार प्रकट की है। उन्होंने कहा, ‘वह व्यक्ति और उनका विजन।’ राजे ने कहा कि भारत में चीते का फिर से संरक्षण और इको सिस्टम देखने को मिलेगा।’ उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से देश को गिफ्ट मिला है। उन्होंने इस काम के लिए मध्य प्रदेश सरकार को भी धन्यवाद दिया।
ओडिशा के बीजद नेता अमर पटनायक ने पीएम मोदी के इस मिशन के प्रति खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि सात दशक के बाद चीता वापस आया। प्रोजेक्ट चीता पहली अंतरराष्ट्रीय महाद्विपीय परियोजना है। नामीबिया से आए चीते को भारत में देखने को उत्सुक हूं। उन्होंने कहा कि यहां के मौसम में उसके देखभाल को लेकर चिंतित हूं।
आखिरी बार 1947 में दिखे थे चीते
चीतों को देश में आखिरी बार 75 साल पहले 1947 में देखा गया था। महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने तत्कालीन राज्य मध्य प्रांत और बरार (अब छत्तीसगढ़) के कोरिया जिले के जंगल में चीतों का शिकार किया था। भारत सरकार द्वारा 1952 में चीता प्रजाति को विलुप्त घोषित किया गया था।
बाड़े से जंगल में कैसे छोड़े जाएंगे चीते
चीतों को पर्यटक करीब तीन महीने बाद (जनवरी 2023 से) देख सकेंगे। एक माह तक ये चीते क्वारंटाइन बाड़े में रहेंगे, इसके बाद इन्हें बड़े बाड़े में छोड़ दिया जाएगा। इनके सामने शाकाहारी वन्यजीव हिरण-सांबर छोड़ा जाएगा। पहला नर चीता अगले साल जंगल में छोड़ा जाएगा।
जब वह जंगल से परिचित हो जाएगा और निर्भय होकर शिकार करने लगेगा तो माता चीते को जंगल में छोड़ा जाएगा और उसके बाद एक-एक कर अन्य चीतों को छोड़ा जाएगा। सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी आरजी सोनी का कहना है कि अफ्रीकी चीतों को मध्य प्रदेश की आवोहवा को लेकर किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है।
जंगल, खुले क्षेत्र और जलवायु यहां और वहां एक समान है। राजशाही में भी कई बार ईरान से चीतों को यहां लाकर यहीं बसाया जाता था।
चीता मित्रों से पीएम मोदी करेंगे संवाद
चीतों को क्वारंटाइन बाड़े में छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्क में मौजूद करीब दो सौ चीता मित्रों से बातचीत करेंगे।
कराहल में भी महिला सभा- प्रधानमंत्री कराहल में स्वयं सहायता समूहों की करीब एक लाख महिलाओं को संबोधित करेंगे। कालियाबाई और सुनीता आदिवासी से भी बात करेंगे।
चीतों के लिए पर्याप्त भोजन
चीता प्रोजेक्ट के प्रमुख की मानें तो वन्यजीवों के साथ मानव का संघर्ष वैसे भी तब होता है, जब मानव वन क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है या फिर वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर जाता है। फिलहाल चीतों के साथ ही ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है, क्योंकि कूनो में कोई ऐसे दाखिल नहीं हो सकता है।
उसकी सीमाओं को सुरक्षित किया किया गया है। वहीं कोई भी वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर तभी जाता है, जब उसे जंगल में पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। कूनो में ऐसा नहीं है। चीतों के लिए वहां पर्याप्त और पसंदीदा भोजन मौजूद है। इसके साथ ही चीतों के मूवमेंट पर नजर रखने के लिए उन्हें कॉलर आइडी से भी लैस किया गया है। यदि वह गांवों की ओर जाएंगे तो तुरंत पता चल जाएगा और गांवों को तुरंत अलर्ट कर दिया जाएगा।
कूनो के आसपास चीता मित्र तैनात
उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत कूनो के आसपास के प्रत्येक गांवों में चीता मित्र भी तैनात किए गए है। जो चीतों के गांव को ओर होने वाले किसी मूवमेंट का पता चलने पर तुरंत वन महकमे को अलर्ट करेगा। जिसके बाद चीतों को तुरंत ही संरक्षित वन क्षेत्र में लाया जाएगा। एक सवाल के जवाब में यादव ने बताया कि वैसे तो चीता किसी भी बड़े पालतू पशु को शिकार नहीं बनाता है लेकिन यदि वह उनके बच्चों या फिर बकरी आदि को शिकार बनाते है, तो पशु पालक को उसका मुआवजा भी दिया जाएगा। इसके लिए वन महकमे की एक गाइडलाइन भी है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग कूनो में तेंदुओं की उपस्थिति को लेकर भी सवाल खड़ा रहे है, लेकिन उन्हें तेंदुओं से कोई खतरा नहीं है। नामीबिया के जिन अभयारण्यों ने इन्हें लाया जा रहा है, वह वहां शेर और बाघों के साथ रहते है।
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