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जीवन शैली नहीं जीवन का महापर्व है छठ! - श्रीनारद मीडिया

जीवन शैली नहीं जीवन का महापर्व है छठ!

जीवन शैली नहीं जीवन का महापर्व है छठ!
लोक आस्था का महापर्व छठ भूमंडलीय स्तर पर अभी तक बाजारवाद से रहा है दूर
जो डूब रहा है उसका उदय निश्चित है यह संदेश देता है छठ का महापर्व
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
लोक आस्था का महान पर्व छठ, भगवान आदित्य के आराधना का महान पर्व छठ, प्रकृति के प्रति अदभुत प्रेम का महान पर्व छठ, वास्तव में सनातन परंपरा का ऐसा महान त्योहार है, जो वास्तव में जीवन का पर्व है जीवन शैली का नहीं। जीवन का पर्व होने के कारण इस पर्व में प्रकृति के साथ सुंदर सामंजस्य देखा जाता है। और शायद यहीं कारण है कि छठ के पर्व पर अभी तक बाजारवाद और उपभोक्तावाद जैसे तथ्यों का प्रभाव नहीं पड़ा है।
प्राकृतिक तथ्यों का सौंदर्य
जीवन का पर्व होने से आशय यह भी है कि छठ पर्व में प्राकृतिक तथ्यों का सौंदर्य ही दिखाई देता है। चाहे वो सीवान हो या सिडनी। कोई दिखावा नहीं कोई कृत्रिमता नहीं। बनेगा तो ठेकुआ और खजूर ही। चाहे वह कोई अमीर हो या गरीब। भगवान भास्कर को अर्घ्य सभी देंगे समान स्तर पर। परंतु जीवन शैली से जुड़े अन्य त्योहार आधुनिकता की चकाचौंध में दिखावे की भावना लाते दिख ही जाते हैं। जब कोई त्योहार जीवन शैली पर आधारित हो जाता है तो वह बाजारवाद की गिरफ्त में शीघ्र ही आ जाता है। लेकिन सदियों से छठ पूजा का प्राकृतिक कलेवर आज भी मौजूद है। यद्यपि डिजिटल क्रांति का दौर चल रहा है। उपभोक्तावाद चरम पर पहुंच चुका है। दिखावे की संस्कृति हमारी पहचान बन चुकी है। फिर भी छठ पर्व की मूल सांस्कृतिक छ्टा वैसी की वैसी ही है जैसे सदियों पहले थी।
सकारात्मकता का भरपूर संचार
छठ महापर्व जीवन को बड़ा संदेश भी दे जाती है। डूबना या अस्त होना सामान्य तौर पर एक नकारात्मक तथ्य ही होता है। परंतु जो अस्त हो रहा है, उसका उदय भी होगा, इस तथ्य को बताकर छठ महापर्व सकारात्मकता का भरपूर संचार कर जाती है। डूबते सूरज को अर्घ्य देकर रात में सुबह का इंतजार और फिर सूर्योदय होने पर भगवान आदित्य को अर्घ्य देने की परंपरा के निहितार्थ बेहद महत्वपूर्ण है। मानव जिंदगी में सुख – दुख, सफलता – असफलता, हार-जीत का क्रम आता जाता रहता है। एक के बाद दूसरे के आने का सिलसिला अनवरत चलता रहता है। लेकिन दुख, असफलता, हार से मानव मन व्यथित हो जाता है घबरा जाता है, तनाव में आ जाता है, ऐसे में छठ के महापर्व की परंपरा जीवन को एक बड़ा संदेश देते दिखती है। वह संदेश है सुख का, सफलता का, जीत का। संदेश धैर्य का भी होता है और विश्वास का भी। संदेश आस्था का होता है और श्रद्धा का भी।
भगवान आदित्य का अस्तित्व ही हमारी ऊर्जा का आधार
प्रकृति के संचालक के तौर पर भगवान आदित्य का अस्तित्व एक सार्थक प्रसंग है। वैज्ञानिक तथ्य और तार्किक दृष्टिकोण भगवान भास्कर की अगाध महिमा की पुष्टि करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान हमें सूर्य की किरणों की महिमा से हम अच्छी तरह परिचित हुए। भगवान आदित्य का अस्तित्व ही हमारी ऊर्जा का आधार है। सूर्य की किरणें ही हमारे आरोग्य की रक्षक है। लेकिन इस सृष्टि के सृजनहार के तौर पर खरना से सूर्यदेव को अर्घ्य की परंपरा प्रकृति के सारतत्व से समायोजन का संदेश ही देती दिखती है।
प्रकृति के प्रति अविरल प्रेम का संदेश
प्रकृति के प्रति अविरल प्रेम ही अवश्यंभावी विनाशलीला से हमें बचा सकता है। हम जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को निरंतर देख रहे हैं। कहीं बाढ़ आ रहा है तो कहीं सूखा पड़ रहा है। कही तापलहरी चल रही है तो कहीं शीतलहरी। समंदर से लेकर स्थलीय भूभाग तक पर्यावरण प्रदूषण के दुष्परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं। ऐसे में महापर्व छठ का प्राकृतिक कलेवर ही एक बड़ा संदेश बन जाता है। प्राकृतिक वस्तुओं का अधिकतम इस्तेमाल प्रकृति के प्रति स्नेह को उत्पन्न करने का ही एक सार्थक प्रयास होता है छठ महापर्व में।
प्राकृतिक आहार से सिर्फ स्वाद नहीं सेहत का भी संदेश
सेहत के आधार को मजबूत करने में प्राकृतिक जीवन शैली, प्राकृतिक आहार का महत्व सर्वविदित है। वर्तमान जीवनशैली में कृत्रिमता के समावेश और फटाफट संस्कृति के आवेश ने जीवन को संकट में डाल दिया है ऐसे में छठ महापर्व के दौरान प्राकृतिक आहार का आनंद सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत का भी संदेश देता है, जो जीवन शैली को नहीं जीवन के प्रति संजीदगी को संदर्भित होता है।
सांस्कृतिक बुनियाद को करता है मजबूत
सामाजिक समरसता, एकरूपता, संवेदनशीलता की त्रिवेणी बहाकर सूर्योपासना का महापर्व हमारे सांस्कृतिक बुनियाद को मजबूत करता है। अपने मिट्टी से जुड़ाव को प्रेरित कर परदेशियों के रिश्तों की डोर को संजीवनी प्रदान करता है। उस आत्मीय आभा को छठ महापर्व ऊर्जस्वित कर जाता है, जो घर तक आने के लिए प्रवासियों को संसाधनों और समस्याओं से भी ऊपर उठने का संदेश दे जाता है।
छठ आस्था का पर्व ही नहीं लोक आस्था का महापर्व है। छठ सनातन परंपरा के संदेश का शाश्वत सिलसिला है। छठ भगवान आदित्य के ऊर्जावान अस्तित्व का संदेश है। छठ सृष्टि के प्रति सार्वभौमिक स्नेह का संदेश है। छठ सामाजिकता के सबल आवाहन का संदेश है। छठ नारी शक्ति के प्रति श्रद्धा का संदेश है। लोक आस्था के महान पर्व छठ के संदेशों को समझ लिया जाए तो जीवन में भी सकारतमकता, संचेतना के सूर्य का उदय हो सकता है। और हां…भगवान आदित्य तो अर्घ्य के साथ ही सहाय हो उठेंगे।

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